किसान से सीखिए खस की खेती, जिसने कई युवाओं को दिया रोज़गार

Mohit ShuklaMohit Shukla   4 Feb 2020 8:52 AM GMT

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सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। कई साल तक गन्ने की खेती में सही समय पर भुगतान होने पर खस की खेती की शुरूआत करने वाले आलोक पांडेय आज खुद तो मुनाफा कमा ही रहे हैं, साथ ही गाँव के कई युवाओं को भी रोजगार भी दिया है।

उत्तर प्रदेश के राजधानी लखनऊ से 110 किलोमीटर दूर सीतापुर जनपद की परसेंडी ब्लाक के पांडेय पुरवा निवासी प्रगतिशील किसान आलोक पांडेय लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक के साथ साथ एलएलबी कर रखी है। आलोक बताते है, "एलएलबी करने के बाद वकालत न करके अपने गाँव आकर के पिता की पैतृक भूमि पर परंपरागत रूप हो रही खेती को बदल कर के गाँव मे खेती के साथ साथ गाँव के लोगो को रोजगार देने का ख्याल आया।" इसके बाद आलोक लखनऊ जाकर के सीमैप में खस की खेती के बारे में प्रशिक्षण प्राप्त किया। वर्ष 2000 में परंपरागत खेती गन्ना, धान को बदल कर कर खस की खेती 14 एकड़ भूमि पर शुरू किया था, लेकिन बाढ़ के आने से खेती डूब गई थी। इससे आलोक को गहरा सदमा पहुचा,वही से खस की खेती करना बंद कर दिया। उसके बाद में मेंथा की खेती शुरू किया।


आलोक पांडेय ने बताते हैं, "हम 25 एकड़ भूमि पर खस की खेती करते हैं, जिससे अधिक लागत आती है। लेकिन इस बार खेती में लागत शून्य करने के लिए खस की खेती में लागत को शून्य करने के लिए इस बार हम मेंथा की सहफसली लेंगे। ताकि हमारे खेत मे लगने वाली लागत शून्य हो जायेगी।

आलोक पांडेय बताते है कि पहले गन्ने की खेती में एक मुश्त कभी पैसा नही मिलता था। चीनी मिल सालों साल पैसा नही समय पर भुगतान करती थी। लेकिन जब से खस की खेती शुरू किया तब से एक मुश्त लाखों में पैसा मिलता है।

आज के समय मे खेती में सबसे बड़ी चुनौती छुट्टा जानवर बने हुए है,लेकिन खस की खेती को छुट्टा जानवर भी नुकसान पहुँचाते हैं। इसलिए यह आवारा पशुओं से परेशान किसानों के लिए भी अति उत्तम खेती साबित हो सकती है।

खेत की जुताई कर क्यारियां बनाकर ख़स की रोपाई कर देते हैं। फिर खेत में पानी भर देते हैं। एक तरफ पानी भरता रहता है। और दूसरी तरफ रस्सी के सहारे डेढ़ फिट पर पौधौं की बुवाई होती रहती है। थोड़े दिनों में हम खेत की गुड़ाई कर देते हैं।

इसके बाद जरूरत पड़ने पर सिंचाई और खाद डाली जाती है। सितंबर में बरसात के समय सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है। बरसात के बाद जब ख़स बिलकुल हरा-भरा हो जाता है तो नवंबर के अंत में इसकी कटाई पूरी कर ली जाती है।

खस की जड़ों को काटकर उन्हें पिपरमिंट की तरह पेरा जाता है। कटी हुई जड़ों को धुलकर आसवन यूनिट में भरा जाता है और नीचे से आग लगाई जाती है। आसवन विधि से निकले शुद्द तेल की अच्छी कीमत मिलती है इसलिए पेराई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

जैसे-जैसे दुनिया में शुद्ध और प्राकृतिक उत्पादों की मांग बढ़ी है, खस के तेल की कीमतों में न सिर्फ वृद्धि हुई है बल्कि खेती का दायरा भी बढ़ा है। खस पौऐसी कुल का बहुवर्षीय पौधा है। इसका नाम वेटीवर तमिल शब्द वेटिवरु से निकला है, साधारण नाम खस (वेटीवर) और वनस्पतिक नाम क्राईसोपोगान जिजैनियोइडिस है। सीमैप के अनुंसधान से पता चला है इससे मिट्टी में मौजूद हानिकारक तत्व और रासायनिक तत्वों की मात्रा को नियंत्रित करने में मददगार है, यानि खस एक तरह से मिट्टी को भी शुद्ध करती है।

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