शकील बदायूंनी से बेग़म अख़्तर की एक छोटी सी मुलाकात का किस्सा

'यतीन्द्र की डायरी' गांव कनेक्शन का साप्ताहिक शो है, जिसमें हिंदी के कवि, संपादक और संगीत के जानकार यतीन्द्र मिश्र संगीत से जुड़े क़िस्से बताते हैं। इस बार के एपिसो़ड में यतीन्द्र ने बेग़म अख़्तर और शकील बदायूं से जुड़ा एक दिलचस्प क़िस्सा सुनाया।

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ये किस्सा है मशहूर गायिका बेग़म अख्तर और शकील शकील बदायूंनी की दोस्ती का। ये किस्सा शकील बदायूंनी द्वारा लिखी 'ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पर रोना आया' को लेकर है।

हुआ यूं था की बेग़म साहिबा अपने एक मशहूर कंसर्ट के लिए बॉम्बे गईं थीं और उनके साथ उनकी शिष्या शांति हीरानंद भी उनके साथ थी जिन्हें वो प्यार से बिट्टन कहती थीं ये जानना जरूरी है कि उनकी दो महत्वपूर्ण गंडाबंद शिष्याएं हुईं अंजली बनर्जी और शांति हीरानंद। शांति के साथ वो पुरे देश में घूमती थीं।

शांति हीरानन्द बताती हैं, "उस दौर में साठ के दशक में तमाम सारे नए नए रेडियो खुल रहे थे और हर जगह इनॉगरल कंसर्ट के लिए अक्सर बेग़म अख़्तर को बुलाया जाता था तो इसी तरह की एक वाक्या से सम्बंधित एक कंसर्ट करने के लिए वो बम्बई गईं और बंबई से जब वो चलने लगीं बॉम्बे स्टेशन पर उनसे मिलने शक़ील साहब आये शकील साहब ने बाहर कुशल क्षेम पूछा और एक कागज़ मोड़ कर के बेग़म साहिबा को खिड़की के माध्यम से दिया उन्होंने कहा आपके लिए गज़ल कही है इसे आराम से पढ़िएगा और वहीं जब तक उन लोगों में और कुछ बातें होती ट्रेन आगे बढ़ गयी।"

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बेग़म अख्तर साहिबा ने जिगर मुरादाबादी, शक़ील बदायूं, कैफ़ी आज़मी, दाग़, मोमिन और ग़ालिब तक को गाकर के अपने संगीत से समृद्ध बनाया बेग़म साहिबा एक तरफ जहां पूर्वी ठुमरी, चैती, दादरा और तमाम तरह की उप-शास्त्रीय गायन में पारंगत थीं। गज़ल में बेगम साहिबा के लिए कहा जाता है की उन्होंने हमेशा अल्फाज़ को संगीत को और उसके पूरे प्रदर्शन को शायरी के तलफ़्फ़ुज़ को बहुत खूबसूरती से पिरो कर के सामान्य जन के लिए आसान बनाया। उनका नाम बहुत एहतराम से आज भी लिया जाता है।

शांति हीरानन्द आगे बताती हैं, "जैसा की उस ज़माने में भी चौबीस घंटे लगते थे बंबई से लखनऊ आने में रात में बेगम साहिबा को नींद आ गयी वो सो गयीं सुबह बहुत तड़के भोर में चाय पीते हुए अचानक बेगम साहिबा बोलीं "बिट्टन ज़रा निकालो तो वो कागज़ वो कहां रख दिया तुमने जो कल रात मैंने तुम्हे दिया था देखें शकील साहब ने क्या लिखा है।"

उन्होंने गज़ल पढ़ी और मुझे थमाते हुए जल्दी से अपना हारमोनियम निकाल मुझसे गज़ल के बोल पढ़ने को बोला और ख़ुद धुन देती गयीं। शकील बदायूं की हस्तलिखित गज़ल जो बाद में चलकर बहुत मशहूर हुई लेकिन इसको अमर गज़ल बेगम साहिबा ने बनाया।




  

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