महेसाणा (गुजरात) जिस उम्र में लोग काम छोड़कर आराम करने लगते हैं, उसी उम्र में नेनी चौधरी पशुपालन से न केवल अच्छा मुनाफा कमा रही हैं, साथ ही पशुपालन में नई-नई तकनीक का भी इस्तेमाल भी कर रही हैं।
गुजरात के महेसाणा जिले के विसनगर तालुका के रंगाकुई की रहने वाली हैं 65 वर्षीय नेनी चौधरी। वो बताती हैं, ” मैं अपने पिता के घर से ही पशुपालन करती हूं। ससुराल में आयी तो यहाँ पर भी करती हूं, लेकिन तीन साल से मैं पशुपालन को व्यवसाय के रूप में शुरू किया है, इससे मेरी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है।”
कभी इनके पास तीन पशु थे आज उनके पास 20 से ज्या गायें हैं, जिनसे हर दिन 120 लीटर से ज्यादा दूध का उत्पादन हो जाता है। वो आगे बताती हैं, “जबसे दूध निकालने की मशीन लाए हैं, एक साथ दस गायों का दूध निकाल लेते हैं, इससे काम बहुत आसान हो गया है। मुझे ये काम करना बहुत अच्छा लगता है।”
नैनी देवी के बेटे धर्मेंद्र चौधरी भी अपनी मां के काम में हाथ बंटाते हैं, वो बताते हैं, “उनकी वजह से हमें बहुत गर्व होता है, उनकी वजह से हमारे यहां बहुत सी नई टेक्नोलॉजी भी आ गई है, ट्रैक्टर वगैरह जितना भी कुछ अब हमारे यहां सब उन्हीं के इन्कम से खरीदा है। पहले हमारे घर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी, धीरे-धीरे करके हमारे घर की स्थिति अच्छी नहीं थी, पहले हमें भी यही लगता था कि पशुपालन घाटे का सौदा क्योंकि सारा टाइम उसी में चला जाता था, लेकिन जब से मशीनें आयीं काम भी आसान हो गया और आमदनी भी ज्यादा बढ़ गई है।”
वो आग कहते हैं, “पशुपालन एक ऐसा व्यवसाय है ,जो घाटे का सौदा नही दे सकता है’। पशु का चारा काटना हो या उनकी देख रेख खुद करती हैं। इन्होंने दूध निकालने के लिए मिल्किंग मशीन लगा रखी है, जिनसे इन्हें दूध निकालने में मदद होती है। पशुओं को खूंटे में न बांधकर उसे खुले में रखती हैं और साथ ही लोहे की रेलिंग है। इसमें दूध देने वाली गाय एक तरफ दूध न देने वाली दूसरी तरफ था उनके बच्चे अलग रखे जाते है। जानवरों को जब चारा खाना होता है तो लोहे की रेलिंग से बाहर मुंह निकालकर खा लेते हैं।”
इनके इस तरह के मॉडल को आज गाँव के और भी लोग अपना रहे है। नेनी कहती हैं, “खुले में जानवरों को रखने में यह फायदा है कि उनका दूध बढ़ता है।” आज ये तो खुद इस व्यवसाय से जुड़ी हैं साथ ही गाँव की और भी महिलाओं को इसमें जुड़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं।
ये आगे कहती हैं, “जब मैं पूरी तरह से इस व्यवसाय से जुड़ी नहीं थी तब बस खाने भर ही दूध होता था। लेकिन तीन साल पहले मेरे बेटे ने राय दिया कि क्यों न हम इसे बड़ा करें। तब मुझें भी लगा की सही बात है जिसके बाद पशुपालन के क्षेत्र में मैं पूरी तरह लगी और आज मैं खुद अपने हाथ से भी दूध निकालती हूँ। ये करने में मुझे कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि पशुओं के साथ तो हमारा जन्म का रिश्ता है।”
वहीं इनके बेटे कहते है कि ‘यह ऐसा व्यापार है जो घाटे का सौदा नही देता। सात दिनों के अंदर इसका फायदा मिलने लगता है।अब तो हर गाँव में डेयरी खुले हुए है ,जिससे अब दूध बेचने के लिए बाहर जाने की जरूरत भी नहीं पड़ती है।” आज गाँव की महिला अपनी योग्यता और काबलियत के दम पर लाखों रुपए कमा रही है।