कोविड-19 संक्रमण रोकने के लिए भारत में 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के साथ शुरू हुई तालाबंदी पूर्ण और आंशिक रूप से आज तक देश के कई राज्यों में जारी है। कोरोना से जूझते देश में पांच महीने के इस ‘लॉकडाउन’ के चलते लाखों लोग बेरोजगार हो गए हैं। आर्थिक गतिविधियां ठप हैं, जिसका सीधा असर लोगों की जेब और बैंक बैलेंस पर पड़ा है, हजारों लोगों को अपने घर की दाल-रोटी चलाने के लिए कर्ज़ लेना पड़ा।
लॉकडाउन के बाद देश के 23 राज्यों में कराए गए अपने तरह के खास सर्वे में गांव कनेक्शन (रूरल इनसाइट) ने 25,371 ग्रामीण लोगों से बात कर ये जानने की कोशिश की गई की कोविड-19 और लॉकडाउन का उनके जीवन पर कितना असर पड़ा।
सर्वे में लोगों से पूछा गया कि लॉकडाउन के दौरान आपको किन (कैसी) आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा? इसके जवाब में 31 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें हद से ज्यादा (extreme difficulty) आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। तो 37 फीसदी ने कहा कि बहुत ज्यादा कठिनाई हुई वहीं 21 फीसदी ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान कुछ आर्थिक (पैसे) की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। इस तरह देखों तो सर्वे में शामिल हर 10 में से 9वें व्यक्ति (89 फीसदी) ने माना कि तालाबंदी से उन्हें किसी न किसी रूप में आर्थिक मुश्किलों का सामना करना पड़ा। रेड जोन में रहने वाले लोगों को ओरेंज और ग्रीन जोन की अपेक्षा ज्यादा दिक्कतें हुईं।
लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर लोगों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा क्योंकि मोटे तौर पर देखें तो सर्वे में शामिल हर वर्ग को मिलाकर 93 फीसदी ने कहा कि उनका काम प्रभावित हुआ है।
राष्ट्रव्यापी सर्वे के दौरान सवाल पूछा गया की लॉकडाउन में आपका काम कितना प्रभावित हुआ, जिसके जवाब में 44 फीसदी लोगों ने कहा कि काम पूरी तरह बंद हो गया, 34 फीसदी ने कहा काफी हद तक ठहर गया जबकि 15 फीसदी कुछ-कुछ काम प्रभावित हुआ। पूरा अगर ये आंकड़ा जोड़े तो 93 फीसदी लोगों के काम पर लॉकडाउन का सीधा असर पड़ा।
गांव कनेक्शन के सर्वे में 71 फीसदी लोगों ने कहा (हर दस में से 7) लॉकडाउऩ के दौरान उनके परिवार की आमदनी में गिरावट आई।
इन तीन आंकड़ों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि लॉकडाउन के दौरान शहरी और आम लोगों की जो सोच थी कि ग्रामीण भारत पर लॉकडाउन का असर कम पड़ा है क्योंकि वहां कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या ज्यादा नहीं है। लेकिन गांव कनेक्शन का ये सर्वे उस सोच और भ्रम को तोड़ता है।
ये भी पढ़ें: लॉकडाउन में जेवर, फोन, जमीन तक बेचा, क़र्ज़ लिया, लेकिन सरकार के कामों से संतुष्ट हैं 74% ग्रामीण: गांव कनेक्शन सर्वे
भारत में लॉकडाउन का असर जानने लिए शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा मुंबई स्थित सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकानॉमी (सीएमआईई) के विशेषज्ञों ने भारत के कई राज्यों में कराए अपने विशेष सर्वे में कहा कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद भारत के 84 फीसदी परिवारों की आय में कमी देखी गई।
रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि तालाबंदी के चलते शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण भारत के लोगों को अधिक संकट में देखा गया। शहरी परिवारों में 75 फीसदी में कमी आई तो ग्रामीण भारत के 88 फीसदी परिवारों की आय में गिरावट देखी गई। इसके पीछे एक वजह ये भी बताई गई की शहरों में लॉकडाउन के बड़ी कई वर्गों के लिए वर्क फ्रॉम होम संभव था, जबकि ग्रामीण परिदृष्य में ये संभव नहीं।
गांव कनेक्शन के सर्वे में ग्रामीण भारत में रहने वाले 89 फीसदी लोगों को लॉकडाउन में आर्थिक मुश्किलें का सामना करना पड़ा। 93 फीसदी लोगों के काम पर असर पड़ा। 92 फीसदी ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन के दौरान घर का खर्च (रोजमर्रा) के काम में मुश्किलें आईं। लॉकडाउन में 76 फीसदी गरीबों, 69 फीसदी लोवर क्लास ने आर्थिक तंगी की बात की तो 49 फीसदी अमीरों ने भी कहा कि उन्हें लॉकडाउन में आर्थिक कठिनाई हुई।
सर्वे के संकेत ये बताते हैं कि कोविड संक्रमण लॉकडाउन के चलते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। लोगों की घरेलू आमदनी में कटौती हुई। बड़ी आबादी को दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष करना पड़ा है। गंभीर बात ये है कि सर्वे में जिस गरीब और लोवर क्लास में सबसे ज्यादा प्रभावित होने की बात कि वो उनमें से बड़ी संख्या पहले से आर्थिक दिक्कतों से जूझ रही थी।
सर्वे में शामिल 75 फीसदी गरीब, जबकि 74 फीसदी लोवर क्लास ने कहा लॉकडाउन में आदमनी कम हुई। उन घरों में आर्थिक कठिनाई, पैसों की दिक्कत का सामना ज्यादा करना पड़ा जहां, जिन घरों के लोगों का काम प्रभावित हुआ (शहर से खाली हाथ लौटना, दुकान बंद हुई, नौकरी छोटी, मजूदरी नहीं मिली आदि)।
लॉकडाउन के चलते जिन लोगों का काम प्रभावित हुआ उनमें प्रशिक्षित 60 (फीसदी) और अप्रशिक्षित (64 फीसदी) लोगों का काम सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। इसके साथ ही 38 फीसदी किसान और 48 फीसदी खेतिहर मजदूरों, पॉल्ट्री और डेयरी से जुड़े 30 फीसदी, 40 फीसदी दुकानदारों और 55 फीसदी सर्विस पर्सन (कामकार- कर्मचारी) ने कहा उनका काम प्रभावित हुआ।
जिन लोगों का सर्वे किया गया उनमें 26 फीसदी किसान, 20 फीसदी खेतिहर मजदूर, 10 फीसदी दुकानदार या ट्रेडर और 25 फीसदी लोगों में प्राइवेट जॉब डॉक्टर. शिक्षक समेत दूसरे नौकरी पेशा लोग थे।
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र संघ (वर्ड पॉपुलेशन प्रोस्पेक्ट-2019) के अनुसार साल 2020 में भारत की आबादी करीब 138 करोड़ होगी। जिसमें से 65 फीसदी लोग ग्रामीण इलाकों में निवासी करते हैं, जबकि शहरी आबादी 35 फीसदी है।
लॉकडाउन में ऐसे लोगों को अपना घर चलाने में ज्यादा दिक्कतें हुई जो पहले से आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे।
सर्वे में सवाल पूछा गया कि लॉकडाउन के दौरान आपको घर चलाने में कितनी मुश्किलें हुई? जिसके जवाब में 35 फीसदी बहुत ज्यादा दिक्कत हुई, 38 फीसदी कुछ दिकक्तें हुई, जबकि 19 फीसदी ने कहा उन्हें कुछ कुछ दिक्कतें हुई, सिर्फ 2 फीसदी लोग ऐसे थे जिन्होंने कहा कि किसी तरह की दिक्कत नहीं हुई। इस तरह अगर ये आंकड़ा पूरी मिला दें तो 92 फीसदी लोगों के मुताबिक उन्हें घर चलाने यानि रोजमर्रा की जिंदगी को चलाने में मुश्किलें हुईं।
सर्वे में उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर और लद्दाख के लोगों ने कहा कि लॉकडाउन में उनकी मुश्किलें ज्यादा बढ़ गईं। उत्तराखंड के 86 फीसदी लोगों ने कहा उनकी कठिनाई हुई, जबकि प्री लॉकाउन में ये आंकड़ा सिर्फ 22 फीसदी था यानि 64 फीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसी तरह लद्धाख और जम्मू- कश्मीर के 87 फीसदी ग्रामीण लोगों के मुताबिक उनकी मुसीबत बढ़ी, जबकि लॉकडाउन के पहले सिर्फ 36 फीसदी लोगों के मुताबिक वो मुश्किल में। बाकी राज्यों की बात करें राज्यों की बात करें तो राजस्थान में 63, पंजाब में 62, महाराष्ट्र में 83, त्रिपुरा में 66, छत्तीसगढ़ में 53, हिमाचल प्रदेश में 60 और मध्य प्रदेश में ये आंकड़ा 76 फीसदी है।
केरल ऐसा राज्य हैं जहां लोंगों ने कहा उनकी मुश्किल लॉकडाउन में कम हुई हैं। गांव कनेक्शन ने सवाल पूछा था लॉकआडउन के पहले और लॉकडाउन के दौरान उन्हे कितनी मुसीबत हुई। जवाब में 47 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्हें मुश्किल हुई जबकि लॉकडाउन से पहले 48 फीसदी लोग खुद को मुश्किल बताया।
इसकी बड़ी वजह केरल सरकार द्वारा लॉकडाउन के दौरान अपने निवासियों को दी जाने वाली सरकारी मदद भी हैं।
अपने काम की अपेक्षा दूसरों के यहां काम करने वाले वाले लोगों को लॉकडाउन के दौरान घर की जरुरतों को पूरा करने में ज्यादा दिक्कतें हुई। खुद का काम करने वाले 72 फीसदी तो दूसरों के यहां काम करने वाले 75 फीसदी लोगों ने कहा घर चलाना मुश्किल हुआ। इऩ लोगों की मुश्किलों में 16 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
अगर जातिगत आंकड़ों की बात करें तो हिंदू दलितों और सिखों पर लॉकडाउन सबसे ज्यादा भारी पड़ा है। लॉकडाउन से पहले 60 फीसदी दलितों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता था, जो लॉकाडउऩ में 80 फीसदी तक पहुंच गया वहीं, सिख रेस्पोडेंट को 37 फीसदी ज्यादा दिक्कतें हुई, जो पहले 20 फीसदी आर्थिक तंगी से गुजरते थे जो लॉकडाउन में 63 फीसदी हो गईं, इसी तरह 76 फीसदी मुस्लिमों ने कहा उनकी आर्थिक मुश्किलें बढ़ी, पहले ये आंकड़ा 60 पर था। 68 फीसदी यानि हर तीन में 2 लोगों ने कहा कि उन्हें आथिक कठिनाई हुई।
76 फीसदी गरीबों, 69 फीसदी लोवर क्लास ने आर्थिक तंगी की बात की तो 49 फीसदी अमीरों ने भी कहा कि उन्हें लॉकडाउन में आर्थिक कठिनाई हुई।
तालेबंदी के दौरान सरकार ने जिन लोगों के खातों में (जनधन, उज्जवला, वृद्धावस्था पेंशन, पीएम किसान निधि आदि) सीधी मदद मदद भेजी इनमें से 69 फीसदी ने कहा उन्हें लॉकडाउन में आर्थिक तंगी हुई। सर्वे में इन्हीं लोगों ने भी बताया कि सरकार ने जो मदद भेजी वो उनके लिए पर्याप्त नहीं थी।
लॉकडाउन के दौरान लगभग हर चौथे व्यक्ति ने कहा उन्हें लॉकडाउन में घर चलाने के लिए पैसे उधार या कर्ज़ लेना पड़ा। सर्वे के मुताबिक 23 फीसदी लोगों को कर्ज़ या उधार लेना पड़ा। 18 फीसदी ग्रामीण व्यक्तियों ने अपने पड़ोसी से अनाज जैसे खाद्य पदार्थ लेना पड़ा। 5 फीसदी को जमीन बेचनी पड़ी या बंधक रखनी पड़ी। जबकि 7 फीसदी को ज्वैलरी बेचनी या गिरवी रखनी पड़ी।
अगर राज्यों की बात तो पंजाब, असम, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश में लोगों को अन्य लोगों की अपेक्षा ज्यादा कर्ज उधार लेने की पडी। पड़ी जबकि पश्चिम बंगाल में लोगों को जेवर आदि गिवरी रखनी या बेचनी पड़ी
यूपी में 20 लोगों को अनाज आदि, 29 फीसदी लोगों को पैसे उधार या कर्ज़ लेना पड़ा। 7 फीस्दी ने जमीन गिरवी रहीं या बेची, 8 फीसदी को अपनी कोई कीमती चीजें बेचनी पड़ी वहीं 8 फीसदी ज्वैलरी बेचनी या गिरवीं रखनी पड़ी।
बिहार में 17 फीसदी को अनाज लेना पड़ा, 28 फीसदी को कर्ज़ या उधार या कर्ज़ लेना पड़ा। जबकि पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 22 फीसदी को को ज्वैलरी बेचनी या गिरवी रखनी बड़ी इऩ्हें लोगों में 17 फीसदी अपनी कीमती सामान भी बेची।
पंजाब में 49 फीसदी हाउसहोल्ड को कर्ज़ या उधार लेना पड़ा। हरियाणा में सबसे ज्यादा 65 फीसदी के साथ कर्ज़ या उधार की नौबत आई,जिसके बाद असम में 31 फीसदी को कर्ड़ या उधार लेना पड़ा।
गांव कनेक्शन के सर्वे में जिन लोगों ने कर्ज़-उधार लेने, कीमती बेचने या गिरवीं रखने की बात कही, उनसे ये भी पूछा गया कि कि उन्हें ये पैसे किस लिए चाहिए थे, जिसके जवाब में जिन 23 फीसदी लोगों ने कर्ज़ लिया है, उन्होंने बताया कि ये पैसा उन्हें घर के खर्च को चलाने के लिए लेना पड़ा। 10 फीसदी को दवाओं, अस्पताल खर्च और 8 फीसदी कृषि कार्य जबकि 11 फीसदी में लोगों ने कर्ज़-उधारी आदि कि वजह दूसरे कार्य बताए।
लॉकडाउन के दौरान दोस्त औ पड़ोसी बड़े मददगार साबित हुए जिन 23 फीसदी को कर्ज़ या उधार लेना पड़ा जिनमें से 57 फीसदी ने अपने दोस्तों और पड़ोसियों से उधार लिया, जबकि 21 ने साहूकार मनी लैंडर से, जबकि सिर्फ 5 फीसदी को बैंक से लोन मिला, वहीं 7 फीसदी को रिलेटिव और 8 फीसदी अदरस रहे, तीन ने जवाब नहीं दिया।
सर्वे में दो तिहाई हाउसहोल्ड ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन में खाद्य सामग्री की दिक्कत हुई। आंकडों की बात करें तो 32 फीसदी ने कहा कि उन्हें लॉकडाउन में फूड एक्सेस के लिए हद से ज्यादा दिक्कत हुई। जबकि 36 फीसदी ने कहा कि उन्हें काफी दिक्कतें हुई जबकि 22 फीसदी के मुताबिक कई बार या कुछ कुछ दिक्कतें हुई।
जिन राज्यों में खाने की समस्या हुई तो इनमें सबसे ऊपर जम्मू कश्मीर और लद्धाख हैं, यहां 56 फीसदी ने कहा (वेरी हाई) दिक्कत, जबकि उत्तराखंड में 47फीसदी, बिहार में 43, पश्चिम बंगाल में 41, हरियाणा में 40 और झारखंड में 39 फीसदी रहा। केरल में सिर्फ 9 फीसदी लोगों को खाने की दिक्कत हुई। सर्वे में साफ नजर आया कि जिन लोगों को किसी तरह की भी दिक्कतें हुई उनमें गरीब सबसे ज्यादा थे।