बेल है इनके कमाई का जरिया, यहां से कई शहरों तक जाते हैं बेल

Mo. AmilMo. Amil   26 Sep 2019 6:19 AM GMT

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एटा (उत्तर प्रदेश)। इस छोटे से गाँव में हर एक घर में इस बेल दिख जाएगा, क्योंकि चार महीने में बेल से इतनी कमाई कर लेते हैं कि साल भर खर्च चल जाता है। यहां के व्यापारी किसानों से अमरबेल खरीदकर देश के दूसरे बड़े शहरों में भेजते हैं।

मथुरा-बरेली राजमार्ग पर एटा जिले की मारहरा विकासखण्ड का छोटा सा गांव पिवारी देश के कई शहरों में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। इतना ही नही इन अमरबेल के कारण पूरे गांव को चार महीने के लिए रोजगार भी मिलता है। इन दिनों गांव में घर-घर बेल को छीलते हुए महिलाएं व बच्चे मिल जाएंगे। साथ ही गांव से होकर गुजरने वाले मथुरा-बरेली राजमार्ग के किनारे बड़ी संख्या में बेल पड़े देख सकते हैं।

बेल के व्यापारी दुर्गेश माहेश्वरी बताते हैं, "गांव में वर्षो पहले मेरे पिताजी स्व. श्याम सुंदर माहेश्वरी ने इसकी शुरुआत की थी। धीरे-धीरे बेल का कारोबार फैलने लगा। अब यह कारोबार पूरे गांव में फैला हुआ है। इस कारोबार से गांव के लोगों को रोजगार भी मिलता है। यहां के बेल उत्तर प्रदेश के शहरो के अलावा उत्तराखंड, हरियाणा व पंजाब भी जाते हैं। गांव में बेल का व्यापार होने से किसान भी अब बेल के पेड़ लगाने लगे हैं। यह फायदे का सौदा है। बेल से 4 महीने तक गांव में घर-घर रोजगार मिलता है।"


चार महीने तक होता है कारोबार, किसानों से खरीदते हैं बेल

दुर्गेश माहेश्वरी बताते हैं, "बेल का कारोबार जन्माष्टमी से शुरू होता है और यह पूरे चार माह तक चलता है। यह कारोबार दीपावली के करीब 15 दिन बाद समाप्त हो जाता है। हम बेल को किसानों से उनके बागों में जाकर खरीदते हैं। हमारे प्रतिष्ठान पर भी किसान अपने बेल लाकर बेचते हैं। अलमरबेल बेचने के लिए हमारे पास मुरादाबाद, बुलंदशहर, बरेली, बदायूं, कासगंज जनपद के भी किसान आते हैं। हम सभी किसानों को उनकी फ़सल का नगद भुगतान करते हैं।"

बेल से बनता है मुरब्बा, पूरे गांव को मिल जाता है रोजगार

दुगेश माहेश्वरी बताते हैं, "यह बेल मुरब्बे के काम आता है। यहां से जो भी अमरबेल जाता है उन्हें मुरब्बा बनाने वाली कम्पनियां खरीदती हैं जिनमे पंजाब, हरियाणा की कम्पनियों के अलावा बाबा रामदेव की पतंजलि कम्पनी भी शामिल है।" वह बताते हैं कि "हम किसानों से खरीदते हैं फिर उन्हें गांव के ग्रामीणों से छिलवाते हैं, जिसके एवज में ग्रामीणों को मेहनताना दिया जाता है। इसे छीलने में सबसे ज्यादा काम गांव की महिलाएं काम करती हैं। यह महिलाएं दिनभर में करीब 300 से 500 रुपए कमा लेती हैं।"


गांव की मुबीना बताती हैं, "हमे बेल छीलने का रोजगार मिलता है। हम घर के काम को पूरा करने के बाद अमरबेल छीलते हैं। एक दिन में 200 से लेकर 300 रुपए कमा लेते हैं। पूरे गांव की महिलाएं इस काम को कर रही हैं।"

गांव के हाजी वली मोहम्मद बताते हैं, "गांव में बेल ने रोजगार दिलाया है। यहा अधिकतर भूमिहीन किसान व मजदूर हैं। घर के आदमी तो मजदूरी या खेती करने के लिए घर से निकल जाते हैं, बेल की छिलाई के लिए घर की महिलाए व बच्चे जुट जाते हैं जिससे उन्हें घर बैठे ही एक अच्छा रोजगार मिल जाता है।"

पतंजलि से ऑर्डर न मिलने से व्यापार पर पड़ा है असर

गांव पिवारी से बेल मुरब्बे के लिए उत्तर प्रदेश के शहरों के अलावा हरियाणा, पंजाब के कई शहरों में भी जाता है, इसके अलावा उत्तराखण्ड़ के हरिद्वार स्थित बाबा रामदेव की पतंजलि कम्पनी में भी यहां के अमरबेल जाते हैं। दुर्गेश माहेश्वरी कहते हैं, "हर वर्ष बाबा रामदेव की पतंजलि से हमे छिले हुए बेल का बेचने का ऑर्डर मिलता है। इस बार कम्पनी ने कोई ऑर्डर नही दिया है, जिससे काम मे मंदी है। अगर पतंजलि से ऑर्डर मिला होता तो गांव के घरों में दोगुना माल पड़ा होता। पतंजलि कम्पनी में बड़ी तादात में मुरब्बे के लिए बेल खरीदा जाता है।"

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