यह गांव है मिसाल, वाई-फाई, सीसीटीवी कैमरा और शिकायत के लिए व्हाट्सएप ग्रुप

Daya SagarDaya Sagar   13 July 2019 1:31 PM GMT

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- दयासागर/ रणविजय सिंह

बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। नाली की ब्लॉकेज हो या कुड़े का ढेर या फिर टूटे हुए रोड की समस्या, जीनत बानो (22 वर्ष) को अब अपने गांव में कोई भी समस्या दिखती है तो वह तुरंत अपना मोबाइल निकाल कर उसका फोटो लेती हैं और उसे अपने गांव के व्हाट्सएप्प ग्रुप पर भेज देती हैं। इस व्हाट्सएप्प ग्रुप में गांव की प्रधान के साथ-साथ गांव के सभी प्रशासनिक अधिकारी जुड़े हैं। ग्रुप में फोटो जाने के बाद वे समस्या हल करने के लिए तुरंत जरूरी कार्यवाही करते हैं।

'राइजिंग चंदवारा': गांव का व्हाट्सएप्प ग्रुप

बाराबंकी के चंदवारा गांव की महिला प्रधान प्रकाशिनी जायसवाल ने अपनी अनूठी सोच और योजनाओं के दम पर अपने गांव को आदर्श गांव बनाने की तरफ कदम बढ़ा लिया है। उन्होंने गांव के लोगों को एक बेहतर और जागरूक नागरिक बनाने के लिए 'Rising Chandwara राइजिंग चंदवारा' नाम से एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाया है, जिसमें गांव के लोग अपनी शिकायतें दर्ज कराते हैं। इसके अलावा प्रकाशिनी जायसवाल ने गांव में वाई-फाई, सीसीटीवी कैमरे भी लगवाएं हैं ताकि उनका गांव डिजिटल रूप से साक्षर हो सके और गांव की सुरक्षा पर कोई खतरा भी नहीं आए।

जीनत बानो बताती हैं कि जब यह व्हाट्सएप्प ग्रुप बना था तो मैं हर गली-मुहल्ले में जाकर वहां की समस्याओं की फोटो और वीडियो ग्रुप में डालने लगीं। टीचर ट्रेनिंग कोर्स (बीटीसी) कर रही जीनत कहती हैं, "जल्द ही इन समस्याओं का समाधान भी मिलने लगा। इस व्हाट्सएप्प ग्रुप से ना सिर्फ ग्राम पंचायत की जवाबदेही तय हुई बल्कि गांव के लोग भी अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक भी हुए।"

जीनत आगे कहती हैं कि इस पहल में हमारी ग्राम प्रधान के जागरूक होने का भी खास योगदान रहा। "उनके और उनके परिवार की जागरूकता के बिना यह संभव नहीं था। हमारे पड़ोस में कई और भी गांव हैं, जहां पर सरकारी योजनाओं का पता भी नहीं चल पाता। लेकिन हमारी प्रधान और उनके शिक्षित पति ने अपनी जिम्मेदारियों को ठीक ढंग से समझा और योजनाओं को सही ढंग से क्रियान्वयित किया, जिसकी वजह से ही यह गांव आज सबकी नजरों में आ गया है।"


गांव को मिल चुका है पीएम और सीएम से सम्मान

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 50 किलोमीटर पूरब में स्थित चंदवारा गांव, आस-पास के गांवों से लेकर देश भर के लिए एक मिसाल है। इस आदर्श गांव को प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक से पुरस्कार मिल चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस गांव को पंचायती सशक्तिकरण पुरस्कार दिया था जबकि यहां की प्रधान प्रकाशिनी जायसवाल को राज्य सरकार की तरफ से रानी लक्ष्मीबाई पुरस्कार मिल चुका है।

गांव की प्रधान प्रकाशिनी जायसवाल कहती हैं कि अगर इरादे हो तो सब कुछ आसान हो जाता है। वह कहती हैं, "जब मैं प्रधान बनीं तो मैंने गांव के लोगों के साथ मिलकर बैठक की और उनकी परेशानियों, दिक्कतों और शिकायतों को समझा। इसमें मुझे अपने पति और घर वालों से भी सहयोग मिला। इसके बाद हम ने गांव की प्राथमिकता तय की और उसी प्राथमिकता के हिसाब से काम करना शुरू किया। अभी 3.5 साल में गांव की स्थिति काफी हद तक बेहतर हो चुकी है।"


'इच्छाशक्ति हो, तो कुछ भी संभव'

सरकार से मिलने वाले फंड और कठिनाईयों के बारे में पूछने पर प्रकाशिनी जायसवाल बताती हैं, "सरकारी कामों में मुश्किल तो आती है लेकिन अगर आपको अपने कर्तव्यों और अधिकारों के बारे में पता है तो आपको कोई रोक भी नहीं सकता। मैंने ग्राम प्रधानों के लिए आने वाले गाइडलाइन को पढ़ा है। हम ने जो भी सीसीटीवी या वाई-फाई लगवाएं हैं, वे सरकारी फंड की मदद से ही लगवाएं हैं। इसके अलावा गांव में पार्क, कूड़ा फेंकने और नष्ट करने के लिए अपशिष्ट गृह, प्राथमिक स्कूल में स्मार्ट क्लास, खेलने का मैदान, पार्क, झूला और वाटर प्यूरीफायर सब सरकारी फंड की मदद से ही बना है।"

स्कूल और कॉलेज के लड़कियों के लिए साइकिल बैंक

ग्राम प्रधान ने गांव से बाहर पढ़ने जाने वाली स्कूली लड़कियों के लिए एक साइकिल बैंक खोला है, जिससे उन लड़कियों को मदद मिली है। साइकिल बैंक के बारे में प्रधान कहती हैं, "जब हमने 3.5 साल पहले पंचायत में काम करना शुरू किया तो देखा कि गांव की कई लड़कियों की पढ़ाई छूटी हुई थी। इसके बाद हमारे दिमाग में साइकिल बैंक का इरादा आया। इसके लिए हमने गांव के कुछ समाजसेवी लोगों से मदद भी लिए और 15 लड़कियों को निःशुल्क साइकिल दिया। आगे आने वाले वर्षों में हमें इस योजना का और विस्तार करना है।"

गांव में सीसीटीवी कैमरे की उपयोगिता के बारे में वह कहती हैं कि इससे सुरक्षा की भावना को बल मिलता है और अपराध कम होते हैं। इसलिए 8 सीसीटीवी कैमरे गांव की मुख्य सड़क पर लगाए गए हैं। इसके अलावा बच्चों की पढ़ाई में मदद के लिए चार वाई-फाई लगाए गए हैं। कुछ ही दिन में ये पूरी तरह से चालू हो जाएंगे। इसके अलावा लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ई-रिक्शा ट्रेनिंग और कम्प्यूटर ट्रेनिंग कोर्स भी सिखाया गया है। जबकि गांव के प्राथमिक स्कूल को इतना बेहतर बना दिया गया है कि सरकारी स्कूल और कॉन्वेंट स्कूल में अंतर ही नहीं पता चलता। उन्होंने बताया कि इन प्रयासों से गांव के प्राथमिक स्कूल में बच्चों की संख्या बढ़ी है।



'गांव का नक्शा ही बदल गया'

गांव के सरवरे आलम (29 वर्ष) कहते हैं, "पिछले कुछ साल में गांव में काफी बदलाव आया है। गांव में जगह-जगह कूड़े के ढेर लगे होते थे लेकिन अब सभी जगहों पर सफाई है। पार्क खुलने से लोग सुबह-शाम उसमें ठहलने और मन बहलाने जाते हैं। इससे उनका स्वास्थ्य भी सही रहता है। इसके अलावा गांव में आगनबाड़ी केंद्र है, जहां पर समय-समय पर महिलाओं को आयरन की गोली मिलती है। टीकाकरण भी अब समय से होता है।"

गांव के परमहंस (27 वर्ष) कहते हैं कि पिछले कुछ साल में गांव का पूरा नक्शा ही बदल गया है। खड़ंजों को सड़कों में तब्दील किया गया। गली-मुहल्ले के सड़कों पर भी इंटरलॉकिंग हो गई है। पक्की नाली बनने से गांव में सफाई का भी माहौल बना है। इसके अलावा पानी की टंकी बन रही है, जिससे जल्द ही लोगों को आसानी से घर में टैप के माध्यम से पानी उपलब्ध होगा।


स्वच्छता पर भी पूरा जोर

चंदवारा के युवक गौरव यादव (20 वर्ष) भी कुछ ऐसी ही राय रखते हैं। उन्होंने बताया कि लोगों को सफाई करने के प्रति जागरूक करने के लिए प्रधान के नेतृत्व में एक टीम बनाई थी, जिसमें वह भी शामिल हुए थे। गांव के लिए योगदान देकर गौरव काफी खुश दिखें। उन्होंने गांव के व्हाट्सएप्प ग्रुप को भी एक प्रगतिशील कदम बताया।

एक तरफ भारत के बदहाल गांवों के लिए ग्राम प्रधानों को जिम्मेदार ठहराया जाता है, वहीं प्रकाशिनी जायसवाल जैसे ग्राम प्रधानों ने सरकारी योजनाओं को जमीन पर उतारने में सफलता पाई है। उन्होंने साबित करने की कोशिश की है कि बदहाल गांवों की दशा को भी बदला जा सकता है, बस उसके लिए एक मजबूत इच्छाशक्ति का होना जरूरी है।


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