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इन महिला किसानों से सीखिए मटका खाद बनाने की विधि

#Organic farming

रुबी खातून, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

रांची (झारखंड)। ये महिला किसान अब कीटनाशक खरीदने के लिए बाजार नहीं जाती हैं। खेती करने वाली ये महिलाएं अब घर में बनाई मटका खाद का इस्तेमाल करती हैं।

झारखंड के रांची जिले के अनगडा ब्लॉक के महेशपुर गाँव की महिलाएं भी पहले रसायनिक खाद का इस्तेमाल करती थीं, लेकिन रसायनिक खाद इतनी महंगी होती थी कि लागत निकालना भी मुश्किल हो जाता था। मटका खाद का इस्तेमाल कर रही महिला किसान रुक्मणी देवी बताती हैं, “हम जब दुकान दवाई खरीदने जाते थे तो हमारे पास इतना पैसा नहीं होता था कि महंगी दवाई खरीद पाएं, फिर दीदी ने हमें इस दवाई के बारे में बताया जो हम यूज कर रहे हैं।”

कृषक मित्र प्रभा देवी खुद तो खेती करती ही हैं, दूसरी सैकड़ों महिलाओं को खेती के लिए प्रेरित भी करती हैं। आस-पास के कई गाँवों की महिला किसान इन्हीं से जानकारियां लेने आती हैं। वो बताती हैं, “मटका खाद के बहुत से फायदे हैं, जो भी फसल लगा रहे हैं, अगर उसमें इस मटका खाद का छिड़काव करते हैं, तो फसल में अच्छा उत्पादन मिलता है। रासानिक खाद से उत्पादन तो अच्छा मिलता है, लेकिन उसके नुकसान भी बहुत हैं। इसे हमने खुद अपने खेत में डालकर देखा है, बहुत फायदा करता है।”


वो आगे कहती हैं, “फसल बुवाई के बाद इसे हम फसल पर स्प्रे करते हैं, जैविक खाद हमारे शरीर के लिए भी लाभदायक होता है। जबकि रासायनिक खाद शरीर के लिए नुकसान दायक होता है, तो हम यही कहना चाहेंगे कि सभी किसानों को जैविक खाद ही अपनाना चाहिए।”

आजीविका मिशन के तहत राज्य में प्रभा देवी की तरह आजीविका कृषक मित्रों की संख्या 4915 है, जिसमें पुरुषों की संख्या दो से तीन प्रतिशत है। आजीविका कृषक मित्र बनाने की शुरुआत वर्ष 2013 में हुई थी। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी राज्य के तीन लाख किसानों के साथ काम कर रहा है। राज्य में 25 हजार किसान ऐसे हैं जो जैविक खेती कर रहे हैं। आजीविका कृषक मित्र वही बन सकते हैं जो समूह से जुड़े हों और खेती करते हों। इन्हें प्रशिक्षित करके कम लागत में बेहतर आमदनी के तौर-तरीके सिखाने के साथ ही मार्केटिंग भी सिखाई जाती है जिससे 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो सके। एक कृषक मित्र अपनी ग्राम पंचायत में दूसरे किसानों को भी प्रशिक्षित करता है।

मटका खाद बनाने की विधि

एक मटका लें उसमें दो लीटर गोमूत्र, एक किलो गाय को गोबर और 50 ग्राम गुड़ मिला लेते हैं। इसके बाद उसमें नीम, करंज, जैसी पत्तियों को भी डाल देते हैं। उसके बाद उसे अच्छी तरह मिलाकर घड़े के मुंह पर कपड़ा बांध देते हैं। दस दिनों में ये खाद बनकर तैयार हो जाती है। इन दस दिनों में तीन-तीन दिनों में एक बार घड़े को हिला देते हैं। उसके बाद उसे छानकर इस रस को फसल पर छिड़काव करते हैं।

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