बाराबंकी(सीतापुर)। “पहले यह कारोबार बहुत बढ़िया चलता था, इसकी बहुत मांग भी रहती थी। लेकिन पिछली तीन चार सालों में यह कारोबार अब चौपट होने के कगार पर है। जीएसटी और बूचड़खाने के बंद होने की वजह से दोहरी मार पड़ी है, “अपनी अनोखी शिल्पकला के कई बार सम्मानित सत्तर वर्षीय शिल्पकार अबरार अहमद परेशान होकर बताते हैं।
अबरार अहमद उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के मेलारायगंज में शिल्पकला का काम करते हैं। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बूचड़खानों के बंद होने उनका ये धंधा धीरे पड़ गया है। वो कहते हैं, “बूचड़खानों के बंद होने से सात-आठ रुपये में मिलने वाली जानवरों की हड्डियां अब 24-25 रुपये की मिलती हैं। हर जगह रोका जाता है। किसकी हड्डियां हैं इस तरह के सवालों से गुजरना पड़ता है। जीएसटी लगने के कारण तो व्यवसाय और चौपट हो गया है।”
जानवरों की हड्डियों से बनी उनकी शानदार नक्काशी की दूर-दूर तक मांग है। बेहतरीन कारीगरी के लिए उन्हें केंद्र और राज्य सरकार दोनों से पुरस्कार मिल चुका है। लेकिन जिस व्यवसाय से अबरार अहमद ने इतने दिनों तक अपना घर चलाया आज वही व्यवसाय बैसाखियों पर है।
“जबसे हमने होश संभला है, तबसे हम यही काम करते आ रहे हैं। इस कला में हाथ आजमाने वाले पूरे भारत में अब बहुत कम ही लोग है। हमारी हड्डिया कमज़ोर हो गयी है इस वजह से अब काम कम कर पाते हैं। पहले ये कारोबार बहुत बढ़िया चलता था और इसकी मांग भी रहती थी।मगर इस समय करीब तीन-चार सालों से स्थिति बहुत खराब हो गयी है, “उन्होंने आगे बताया।
अबरार अपने परिवार के साथ एक छोटे से घर में रहते हैं। शिल्पकला से उनका 40 वर्षों से नाता है। पिछले चालीस सालों में उन्होंने कई सजावटी वस्तुएं बनाई है। उन्होंने जानवरों की हड्डियों से गहने-जेवरात, लैंप, चाकू, कंघी और कैंची समेत सैकड़ो ऐसी वस्तुएं बनाई है जिसकी नक्काशी की कई बार तारीफें भी की गई है।
अबरार को राज्य सरकार की तरफ से 2009 में हस्तशिल्प मिला था। इसके बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार से भी उन्हें 2016 में अवार्ड मिल चुका है। लेकिन सरकार की तरफ से अब बढ़ावा नहीं मिलने की वजह से अब उनका भी मोह इस कला से धीरे धीरे खत्म हो रहा है।