न बैंड-बाजा, न सात फेरे, संविधान की शपथ लेकर की शादी

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खरगोन (मध्य प्रदेश)। लोग शादी को भव्य बनाने के लिए जमकर फिजूल खर्च करते हैं। वहीं दूसरी तरफ खरगोन में एक ऐसी अनोखी शादी हुई जिसमें न तो कोई बैंड बाजा नजर आया और न ही दुल्हन का दहेज दिखाई दिया। शादी में रिश्तेदारों और परिचितों से लिफाफे और उपहार भी नही लिए गए। ख़ास बात यह है कि दूल्हा-दुल्हन ने अग्नि के समक्ष सात फेरे लेने के बजाए भारत के संविधान को साक्षी मानकर, संविधान की शपथ लेकर और केवल वरमाला पहनाकर अपने दाम्पत्य जीवन में प्रवेश किया।

समाज में सामने यह अनोखी मिसाल पेश की है खरगोन जिले के कसरावद निवासी दूल्हे वज्र कलमें और खरगोन की दुल्हन अंजली रोकड़े ने। शादी में होने वाले रीति-रिवाजों पर पैसे की बर्बादी को रोकते हुए समाज दूल्हा-दुल्हन ने नई मिसाल पेश की है। नव दम्पत्ति ने भारत के संविधान को साक्षी मानकर अपने दाम्पत्य जीवन की नई शुरुआत की। इस अनोखी शादी में पहुंचे लोगो ने भी दूल्हा-दुल्हन के इस साहसिक कदम पर खुशी जाहिर की है।

दूल्हे वज्र कलमें कहते हैं, “हम दहेज़ सहित अन्य जितनी भी कुरीतियों समाज में फैली हुई है उसे रोकना चाहते हैं ताकि कोई कर्ज तले न दबे। इसलिए हमने भारत के संविधान की शपथ लेकर शादी की है ताकि संविधान के प्रति सम्मान हो सके। साथ ही समाज में फैली कुरीतियों को रोकने का हम एक सार्थक प्रयास कर रहे हैं।”

ये पहली बार नहीं था जब कलमें परिवार ने कुछ अलग किया हो, इससे पहले दूल्हे वज्र कलमें ने अपने पिता की मौत के बाद देह मेडिकल कॉलेज को दान कर दी थी।

वहीं दुल्हन अंजली रोकड़े का कहना है कि सबसे पहले तो हम भारत के संविधान को प्राथमिकता देना चाहते हैं। साथ ही हम समाज और लोगो को यह बताना चाहते है कि कोई भी इस संविधान को हल्के में न ले। आज भारत में जितने भी काम हो रहे है वे संविधान के मुताबिक ही हो रहे है चाहे वह सरकारी काम हो या सामाजिक काम। रही बात धूमधाम से शादी करने की तो समय की बर्बादी और फिजूलखर्ची को रोकने के लिए दोनों ने यह कदम उठाया है।

“कलमें परिवार हमेशा समाज मे एक नया संदेश देते आ रहा है। पिछले दिनों दूल्हे के पिता का निधन होने के बाद देह मेडिकल कॉलेज में दान दी थी। अब उनके बेटे वज्र ने एक नया संदेश देते हुए फिजूलखर्ची को रोकते हुए भारत के संविधान की शपथ लेकर शादी की है। संभवत यह पूरे भारत में एक ऐसी अनोखी शादी है। ताकि समाज में अच्छा संदेश जा सके, “समाजसेवी रामेश्वर बड़ोले ने कहा। 

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