मध्य प्रदेश: नवाचार और सरकारी मदद से बुधनी खिलौना कारीगरों को दिख रही उम्मीद की किरण

लकड़ी के खिलौनों की मांग में कमी, बाजार की अनुपलब्धता जैसे कई कारण से बुधनी के लकड़ी के खिलौने बनाने वाले कारीगरों को चुनौतियों का सामना कर पड़ा है। लेकिन राज्य सरकार का उनके शिल्प को समर्थन देने का वादे और कुछ नवाचार की वजह से कुछ वृद्धि भी हुई है, जिससे इन कारीगरों को उम्मीद की एक किरण दिखाई है।

Satish MalviyaSatish Malviya   20 May 2022 11:17 AM GMT

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बुधनी (सीहोर) मध्य प्रदेश। मध्य प्रदेश के बुधनी कस्बे के 65 वर्षीय ठाकुर दास शर्मा का ताल्लुक ऐसे परिवार से है, जिनके पूर्वजों को सीहोर जिले में बुधनी खिलौना उद्योग का संस्थापक माना जाता है।

ठाकुर दास, जिसने शिल्प के उत्थान और पतन को करीब से देखा है, ने गाँव कनेक्शन को बताया, "विभाजन से पहले, मेरे दादा रामप्रसाद शर्मा रोजी-रोटी की तलाश में मुंबई गए थे। वहां, उन्होंने लकड़ी के खिलौने बनाने का हुनर सीखा। बुधनी लौटने पर, उन्होंने मेरे पिता मदनलाल शर्मा को यह शिल्प सिखाया, उन्होंने जल्द ही एक छोटी कार्यशाला खोला और इन खिलौनों को पहली बार बुधनी में बेचा।"

उन्होंने कहा, "जल्द ही, कई पड़ोसियों ने भी अपनी कार्यशालाएं बनानी शुरू कर दीं और धीरे-धीरे खिलौना बनाने वाले कुटीर उद्योगों का यह समूह पूरे देश में मशहूर हो गया और बुधनी की पहचान बन गया। लेकिन इन दिनों, शिल्प किसी न किसी तरह जिंदा है। इन दिनों खिलौना बनाने वालों को बहुत कम लाभ होता है।"

नर्मदा नदी के किनारे सीहोर जिले के बुधनी में बुधनी घाट पर बसा है प्रसिद्ध बुधनी लकड़ी के खिलौने बनाने वालों का ये मोहल्ला।

राज्य की राजधानी भोपाल से 69 किलोमीटर दूर एक छोटे से शहर बुधनी के चमकीले रंग के लकड़ी के खिलौने पारंपरिक रूप से छोटे बच्चों में पसंदीदा रहे हैं, लेकिन वक्त गुजरने और टेक्नोलॉजी के आने से, उनकी डिमांड में लगातार गिरावट आई है।

'हमारी दुकानें हाईवे में खो गईं'

भागीरथ शर्मा, एक 51 वर्षीय कारीगर जो 3 दशकों से अधिक से खिलौना बना रहे हैं। उन्होंने शिकायत की कि 2014 में बने राजमार्ग बुधनी के खिलौना बाजारों के लिए आपदा का कारण बना।"

भगीरथ ने गाँव कनेक्शन को बताया, "पहले अलग अलग राज्यों और शहरों के मुसाफिर रेलवे क्रॉसिंग के पास हमारी दुकानों से गुजरते थे। वे अक्सर हमारे खिलौने खरीदते थे लेकिन जब यह राजमार्ग (राष्ट्रीय राजमार्ग -46) 2014 में बना, तब से हमारी बिक्री में गिरावट आई है और ज्यादातर कारीगरों ने अपना शिल्प छोड़ दिया है,"

उन्होंने बताया कि मुश्किल हालात का बहादुरी से सामना करने वाले कारीगर भी अपनी वास्तविक क्षमता के लगभग 10 से 15 प्रतिशत पर काम कर रहे हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, "पहले इन खिलौनों को बनाने में कम से कम 40 घर लगे हुए थे, लेकिन अब मुश्किल से आठ से दस वर्कशॉप हैं।"

बुधनी में लकड़ी ढालने की मशीनों की तेज आवाजें हर घर से आती हुई सुनाई देती हैं।

उन्होंने बताया,"उद्योग ने पिछले दस वर्षों में इतनी तेज गिरावट कभी नहीं देखी है। लकड़ी के खिलौने अब सिर्फ सजावट तक सिमित हो गए हैं और पुराने दिनों की तरह अब उनकी मांग नहीं की जाती है। पिछले साल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हमसे यहां खिलौना बाजार स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन अब तक कुछ नहीं किया गया है।"

उनके पड़ोसी मुकेश शर्मा ने कारीगरों की कठिनाइयों पर अपने विचार व्यक्त किए।

उन्होंने बताया, "पहले मेरा पूरा परिवार खिलौना बनाता था, लेकिन पिछले 10 से उन लोगों ने पारिवारिक परंपरा में हिस्सा लेना बंद कर दिया है और अब वे दूसरे कारोबार कर रहे हैं। यहां तक कि खिलौना बेच कर जो हम कमाते हैं इस मुनाफे से घर का खर्च भी पूरा नहीं होता है। पिछली बार आपने किसी बच्चे को लकड़ी का खिलौना खेलते कब देखा है? चाइनीज प्लास्टिक के खिलौने बाजार में आ गए हैं। इस व्यापार को करके जिंदा रहना मुश्किल हो गया है।"

सरकार के सुनहरे सपने

पिछले साल 6 नवंबर को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बुधनी टॉय फेस्टिवल में शिरकत करते हुए आश्वासन दिया था कि शहर को टॉय कलस्टर की शक्ल में विकसित किया जाएगा और बुधनी के खिलौनों को ई-कॉमर्स के जरिए दुनिया भर के बाजारों से जोड़ा जाएगा।

लकड़ी के रंग-बिरंगे खिलौने दूधी की लकड़ी से बनते हैं। यहां के जंगलों में ये आसानी से मिलती हैं। फोटो: दिवेंद्र सिंह

गाँव कनेक्शन ने मध्यप्रदेश हस्तशिल्प एवं हथकरघा विकास निगम लिमिटेड के जिला प्रभारी से संपर्क किया तो अधिकारी ने बताया कि बुधनी में छह हेक्टेयर भूमि पर खिलौना उद्योग पार्क का क्लस्टर स्थापित करने का प्रयास चल रहा है.

हरीश सीता ने गांव कनेक्शन को बताया, "बुधनी में टॉय क्लस्टर के अलावा वहां एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स भी बनाया जाएगा और हम भोपाल ऐतिहासिक गौहर महल एक टॉय स्टॉल लगाने वाले हैं। हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि कारीगरों को जरूरी कच्चे माल की कमी न हो और हम उन्हें खिलौना रंगने के लिए प्राकृतिक रंगों के उपयोग की तरफ प्रेरित कर रहे हैं।"

नवाचार – आशा की किरण

कारीगरों की अपने नाकाम व्यापार के बारे में परेशानियों के विपरीत, 48 वर्षीय विनोद कुमार शर्मा अपनी शिल्प को नया करके दोबारा जिंदा करने के लिए आशान्वित हैं।

48 वर्षीय ने कहा, "पारंपरिक लकड़ी के खिलौनों की घटती मांग के बारे में कोई शक नहीं है। हम सभी को वक्त के बदलने के साथ खुद को बदलने की जरूरत है। मैं पहेली और शैक्षिक खिलौने बना रहा हूँ जिसकी इन दिनों बहुत मांग है। मुझे इन खिलौनों को बनाने के लिए महंगी लेजर मशीन खरीदी है।"

उन्होंने बताया, "हम इन खिलौनों को ग्रामीण इलाकों के स्कूली छात्रों के लिए बना रहे हैं और शिक्षा विभाग से बात कर रहे हैं जो स्कूलों के लिए हमारे खिलौने खरीदने को तैयार हैं। मैं छह से सात महिलाओं को लेजर कटिंग मशीन चलाने का प्रशिक्षण दे रहा हूँ ताकि वे अपने अंदर कौशल विकसित कर रोजी-रोटी कमा सकें।"


इसी दरमियान, एक अन्य कारीगर 70 वर्षीय हेमराज शर्मा ने शिकायती लहजे में कहा कि टेक्नोलॉजी के आने से और बेहतर खिलौने की मांग के लिए, उद्योग को मशीन खरीदने के लिए आसान क्रेडिट सुविधाओं की जरूरत है।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमें लघु उद्योग के रूप में नहीं माना जाता है और बैंक हमें कई कारणों का हवाला देते हुए लोन देने से इनकार करते हैं। अगर सरकार कारीगरों के लिए लोन प्रक्रिया को आसान बनाने में मदद करती है तो हमें बहुत राहत मिलेगी।"

अंग्रेजी में पढ़ें

अनुवाद: मोहम्मद अब्दुल्ला सिद्दीकी

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