बुंदेलखंड की चितेरी कला: जिसके बिना आज भी यहां नहीं होती हैं शादियां

बुंदेलखंड की पारंपरिक चितेरी लोक कला, जिसको शादी के समय घरों की दीवारों पर बनाया जाता है, अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रही है। झांसी प्रशासन इस 16वीं शताब्दी की कला को पुनर्जीवित करने और बढ़ावा देने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है।

Shivani GuptaShivani Gupta   4 July 2022 11:38 AM GMT

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झांसी, उत्तर प्रदेश। नृपेंद्र के घर में खुशी का माहौल है। हलवाई के लड्डू बनाने की खुशबू चारों तरफ फैली हुई तो शादी के गीत भी गाए जा रहे हैं। चमकीले कपड़ों में बच्चे हंसते-खेलते इधर-उधर भाग रहे हैं। जाहिर है, यह एक ऐसा घर है जहां शादी का जश्न मनाया जा रहा है।

दूल्हे नृपेंद्र के घर की दीवारें खूबसूरत से कला से सजाई जा रहीं हैं । उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में चितेरी कला शादी की रस्मों का हिस्सा है।

नृपेंद्र की चाची किरण श्रीवास्तव ने गाँव कनेक्शन को बताया, "इससे पता चलता है कि इस घर में शादी चल रही है। अगर दीवार पर पहले लड़के का नाम लिखा है तो इसका मतलब होता है कि यह दूल्हे का घर है। अगर लड़की का नाम पहले है तो इसका मतलब है कि यह लड़की का घर है।"

बुंदेलखंड के एक में चितेरी कला से सजी दीवारें। फोटो: यश सचदेव

घरों में चितेरी कला का इस्तेमाल यह भी बताने के लिए किया जाता है कि घर में लड़के या फिर लड़की शादी तय हो गई है, ताकि नए रिश्ते लेकर कोई न आए।

मोहित कुशवाहा एक चितेरी कलाकार हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "एक दीवार को चितेरी आर्ट से रंगने में एक घंटे का समय लगता है। हमारी लागत लगभग सौ रुपये है, जबकि हम प्रति परिवार 350 से 500 के बीच कमा लेते हैं।"

दीवार पर अपने हस्ताक्षर में चितेरी आर्ट जोड़ने वाले लोक कलाकार पिछले 12 वर्षों से कला की प्रेक्टिस कर रहे हैं। करीब दो महीने तक चलने वाले शादी के मौसम में वह 25 हजार रुपये तक कमा लेते हैं।

कौन सी चीज बनाती है चितेरी को खास

चित्तेरी बुंदेली कलाम शैली का एक हिस्सा है, जो एक शास्त्रीय कला है, लेकिन यह लोक कला भी है। कलाकारों का दावा है कि यह कला लगभग 16वीं शताब्दी से है, और यह कलाकृतियां झाँसी (उत्तर प्रदेश) और ओरछा (मध्य प्रदेश) के मंदिरों की दीवारों पर देखी जा सकती है।

बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के ललित कला संस्थान में सहायक प्रोफेसर श्वेता पांडे ने बताया, "चितेरी बेमिसाल कला है क्योंकि इस कला में पहले फिगर्स बनाए जाते हैं और उसके बाद उसकी आउटलाइन काले रंग से बनाई जाती है।"

हालांकि, इस लोक कला के तरीके पिछले कुछ वर्षों में बदल गए हैं। झांसी के एक प्रोफेसर ने गांव कनेक्शन को बताया, "पहले लोग खनिज और वनस्पति से बने रंग का उपयोग करते थे, अब वे चमकीले फ्लोरोसेंट रंगों का इस्तेमाल करते हैं।"

यहां कलाकार कई पीढ़ियों से चितेरी कला बनाते आ रहे हैं।

विवाह समारोह या दूसरे शुभ अवसरों जहां चितेरी कला बनायी जाती है इसके अलावा, हाल के दिनों में कोविड 19 बीमारी को रोकने के लिए मास्क पहनने आदि के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए भी इस कला का उपयोग किया गया है।

हालांकि पांडे ने अफसोस जताते हुए कहा कि चितेरी को देश की दूसरी लोक कलाओं की तरह का माइलेज नहीं मिला। पांडे ने बताया, "चितेरी कला मधुबनी या वरली कला की तरह अनूठी है, लेकिन इसको कम लोग ही जानते हैं। चितेरी आर्ट लोगों के घरों और कार्यालयों में नहीं मिलती है।" शायद ऐसा इस लिए है क्योंकि बहुत सारे युवा सोशल मीडिया पर वर्ली और मधुबनी आर्ट का प्रचार कर रहे हैं और चितेरी कला के साथ ऐसा कुछ भी नहीं है।

इस बढ़ती हुई चिंता को झांसी के एक पारंपरिक बुंदेली कलाकार विकास वैभव ने स्वीकार किया। उन्होंने गाँव कनेक्शन से बताया, "अगर चितेरी कला को लेने वाला कोई नहीं है, तो सब कुछ बेकार है।"

उन्होंने पूछा, "इसके अलावा, शादी का एक खास मौसम होता है, बाकी साल कलाकार अपनी आजीविका चलाने के लिए क्या करेंगे।"

मरती हुई कलाकृति का पुनर्जीवन

लेकिन झांसी जिला प्रशासन ने इलाके में खत्म हो रही लोक कला को जिंदा करने के लिए कलाकारों की आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए छिटपुट प्रयास किए गए हैं।

झाँसी डिविजन के कमिश्नर अजय शंकर पांडे ने गाँव कनेक्शन को बताया, "बुंदेलखंड, खास तौर पर झांसी डिविजन कला और संस्कृति में समृद्ध है। लेकिन लापरवाही की वजह से पारंपरिक कलाएं खत्म होती जा रही हैं। हम इन कलाकृतियों को संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। हमने साहित्य, नृत्य, कला, संगीत को बढ़ावा देने के लिए आठ अलग अलग विंग स्थापित किया है।"

झाँसी डिविजन के कमिश्नर अजय शंकर पांडे एक बार फिर इस कला को पुनर्जीवित करने के प्रयास में लगे हैं।

आयुक्त ने बताया कि मोहित कुशवाहा सहित सिर्फ पांच परिवार ही इस कला को थामे हुए है। बाकी पारंपरिक कलाकारों ने इस कला को छोड़ कर दूसरी नौकरियां करने लगे हैं।

कुशवाहा ने कहा, "हम नहीं चाहते कि इस कला का पतन हो। मेरे दादाजी इस लोक कला की प्रेक्टिस करते थे। हमारे कई पड़ोसियों ने भी इस कला की प्रैक्टिस की है। लेकिन अंततः उनको बेहतर आजीविका की तलाश में दूसरे शहरों में जाने और पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। हम आखिरी कुछ परिवार हैं जो इस कला को जीवित रखने की कोशिश में लगे हैं।"

कमिश्नर ने बताया कि कला को पुनर्जीवित करने के लिए एक क्षेत्र निर्धारित किया गया है जहां कलाकार अपनी कला की पेंटिंग और युवाओं को प्रशिक्षित कर सकते हैं।


उन्होंने आगे बताया, "कलाकारों को रंग, ब्रश आदि सभी मुफ्त दिए जाते हैं। हमने एक बाजार भी स्थापित किया है, और डिवीजन के सभी व्यापारियों से अपील किया है कि वे अपनी दुकानों में कम से कम एक चितेरी पेंटिंग जरूर लगाएं।"

जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मध्य जुलाई में उत्तर प्रदेश के 296 किलोमीटर लंबे बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने के लिए जालौन का दौरा करेंगे तो चित्तेरी कला को और बढ़ावा मिलेगा। आयोजन स्थल को चितेरी कला से सजाया जाएगा।

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