मोहित सैनी/वीरेंद्र सिंह
लखनऊ। “हमने लॉकडाउन खुलने का इंतजार किया था, खुल जाए तो हमारा फूल किसी तरह बिक जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पौधों पर इतने ज्यादा फूल लगे हैं कि पौधे झुकने लगे, अब कहां तक इंतजार करें फूल तो बिकने वाला नहीं है, तो सोचा अब खेत में खड़े फूल पर ही ट्रैक्टर से खेत की जुताई कर दें, ताकि दूसरी फसल की बुवाई तो कर सकें, “गेंदा के खेत में खड़े किसान सोनू ने बताया।
उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के रिठानी गाँव के रहने वाले सोनू पिछले आठ साल से फूलों की खेती करते आ रहे हैं। तीन लाख रुपए कर्ज लेकर इस बार भी 40 बीघा में गेंदा की फसल लगाई थी, लेकिन लॉकडाउन के चलते फूल ही नहीं बिके। अब उन्हें चिंता सता रही है कि कर्ज कैसे चुकाएंगे और आगे की फसल की बुवाई कैसे करेंगे।
गेंदा के खेत में खड़े सोनू बताते हैं, “हम हर साल फूल व सब्जी की खेती करते हैं, लॉकडाउन के चलते हैं हमारी फसल को काफी नुकसान हुआ है, जो हर साल 50 से 60 रुपए प्रतिकिलो बेचा जाता था, आज वह पशुओं को खिलाया जा रहा है, किसान की हालत सरकार क्या जाने। हमने 3 लाख रुपए ब्याज पर लिए थे, जिससे हम फूल से अच्छा मुनाफ़ा कमा सकें, पैसा डूब चुका है फसल पूरी तरह नष्ट हो चुकी है, मजदूरों का पैसा भी जेब से देना पड़ रहा है, क्या करें किसान तो सड़क पर आ गया है।”
लॉकडाउन से दूसरी फसलों के साथ ही फूलों की खेती करने वाले किसानों को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस समय मंदिरों, शादियों और दूसरे कई कार्यक्रमों में फूलों की मांग रहती है। लेकिन इस बार सब ठप्प पड़ा है। अब किसानों को चिंता है कि फूलों का क्या करें।
बाराबंकी जिले के देवा क्षेत्र में रहने वाले किसान मैनुद्दीन बड़े पैमाने पर जरबेरा और ग्लेडियस की खेती करते हैं। इस समय उनके यहां फूल टूट तो रहे हैं, लेकिन बाजार में बिकने के लिए नहीं बल्कि कूड़े में फेंकने के लिए। वो बताते हैं, “हमने यह सोचकर पाली हाउस में ग्लेडियस और जलबेरा जैसे महंगे फूलों की की खेती की थी कि 15 अप्रैल तक अपने यहां सहालक का दौर शुरू हो जाता है और हमारे फूलों के अच्छा दाम मिलेंगे लेकिन कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन होने से हम फूल की खेती करने वाले किसानों का सौ पर्सेंट नुकसान हो रहा है।”
वो आगे कहते हैं, “इस वक्त हमारे पॉली हाउस में तीन चार हजार ग्लेडियस के फूल प्रतिदिन निकलते हैं, जिन्हें तोड़कर कर कूड़े के ढेर में फेंकना पड़ता है। अगर लॉकडाउन ना होता तो एक फूल आठ से दस रुपए के लगभग बिक जाता और अट्ठारह से बीस हजार तक प्रतिदिन आराम से इनकम हो जाती, लेकिन इनकम तो नहीं हो रही है इन पौधों को सुरक्षित रखने के लिए ताकि शायद आगे कुछ मिल सके इन पर प्रतिदिन करीब 2000 हजार रुपए का खर्च आ रहा है।”
भारत, अमेरिका, नीदरलैंड, इंग्लैंड, जैसे कई देशों को फूल निर्यात करता है। एपीडा के अनुसार साल भारत 19726.57 मीट्रिक टन फूल निर्यात किए थे, जिनकी कीमत 571.38 करोड़ रुपए थी। जबकि 2019-20 में अब तक 405.84 रुपए कीमत का 13,298.40 मीट्रिक टन फूलों का निर्यात किया है। लेकिन कोरोना का असर इस पर भी पड़ा है।
रायबरेली के रहने वाले राजेंद्र राजपूत पिछले पांच वर्षों से हैदरगढ़ तहसील के भिखारी गांव में करीब पांच बीघा जमीन लीज पर लेकर फूल की खेती करते आ रहे हैं। राजेंद्र राजपूत बताते हैं, “इस बार भी हमने गेंदे की खेती की थी सोचा था नवरात्रि में अच्छे पैसे मिलेंगे लेकिन नवरात्रि में भी फूलों की कोई बिक्री नहीं हुई। उम्मीद थी की आगे शादी विवाह का सीजन आने वाला है। शायद तब तक कुछ राहत मिल जाए और हमारी खेती को कुछ फायदा मिले, लेकिन धीरे-धीरे शादी विवाह का दौर भी बीता जा रहा है और फूलों को तोड़कर खेत के बाहर फेंकना पड़ रहा है।
वहीं फूलों की खेती बड़े पैमाने पर करने वाले जैतपुर के किसान कमलेश मौर्य बताते हैं, “अब की बार हम फूल की खेती करने वाले किसानों के लिए यह कोरोना वायरस किसी कयामत से कम साबित नहीं हो रहा है, कोरोना की चपेट में हमारा परिवार आए ना आए लेकिन भुखमरी के कगार पर जरूर आकर खड़ा हो गया। आलम यह है कि घर में जो चंद पैसे थे वो खेती में लगा दिए और खेती से चार पैसे छूटने की कोई उम्मीद अब दिखती नहीं नजर आ रही है।”
राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के अनुसार देश में साल 2015-16 में लगभग 249 हज़ार हेक्टयर में लगभग 2153 हज़ार टन फूलों का उत्पादन हुआ था। देश मे फूल उत्पादन में तमिलनाडु, (20%), कर्नाटक (13.5%) पश्चिम बंगाल (12.2%) प्रमुख राज्य हैं। बाकी राज्यों में मध्य प्रदेश, मिजोरम, गुजरात, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, झारखंड, हरियाणा जैसे राज्य हैं।
बाराबंकी जिले हैदरगढ़ में बड़े पैमाने पर गुलाब की खेती करने वाले सत्यम बताते हैं, “हमारे पास करीब 2 एकड़ खेत में गुलाब की खेत हैं। लखनऊ, देवा ,महादेवा जैसे स्थानों पर हमारे यहां का गुलाब जाता था और हमें अच्छे पैसे मिलते थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से सारे मंदिर, मस्जिद बंद है। ज्यादातर शादियां अगले वर्ष के लिए टाल दी गईं और जो शादी विवाह हो भी रहें हैं उनमें इतनी धूमधाम नहीं होती है कि फूल वगैरह का इस्तेमाल किया जाए जिससे हम फूल की खेती करने वाले किसानों के लिए यह सबसे बड़ा मुसीबत का दौर है।”
वो आगे बताते हैं, “सरकार आलू और अन्य फसलों के लिए आर्थिक सहायता राशि दे रही है लेकिन हम फूल खेती करने वाले किसानों के लिए कोई मुआवजा राशि का ऐलान नहीं किया गया है जबकि अगर देखा जाए तो कोरोना वायरस के कारण जो लॉकडाउन हुआ है इससे सबसे ज्यादा हम फूल की खेती करने वाले किसान ही प्रभावित हुए हैं। हमारी खेतों में जो फूल का उत्पादन हो रहा है उसका एक पैसा भी हमें नहीं मिल रहा है सारे फूल तो तोड़कर खेत से बाहर फेंकवाना पड़ रहा हैं यहां तक पेड़ों से फूलों को हटाने के लिए मजदूर का खर्च भी घर से देना पड़ रहा है।”