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चुनाव की ये रिपोर्टिंग थोड़ी अलग है, जब गांव की एक युवती बनी रिपोर्टर

गांव कनेक्शन के लिए ये रिपोर्ट झारखंड के सुदूर इलाके पलामु से नयनतारा ने भेजी है। नयनातारा कम्युनिटी जर्नलिस्ट हैं। ये पहला मौका था जब वो मोबाइल पर महिलाओंं से बात कर रही थी। देखिए एक दुर्गम इलाके का ये वीडियो...
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नयनतारा, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

पलामु (झारखंड)। “मेरे गांव में पीने के पानी, खेत में सिंचाई के लिए बोरिंग या कुएं की व्यवस्था हो जाए। और पति को गांव में रोजगार मिलने लगे। बस मुझे सरकार ये यही चाहिए।” सुप्रिया देवी कहती हैं। सुप्रिया, झारखंड के सबसे पिछड़े इलाके पलामु जिले के पिपराखुद गांव की रहने वाली हैं।

सुप्रिया के लिए ये पहला मौका था जब वो किसी तरह की मीडिया (मोबाइल पर) बात कर रही थीं। ये मेरे लिए भी पहला मौका था जब मैंने मोबाइल पर इस तरह रिपोर्टिंग की थी। मैंने पिपराखुर्द गांव के अलावा पथरही और चौखड़ गांव की कई दर्जन महिलाओं से बात की। और उनसे जाना कि ये महिलाएं जब इस बार मतदान के लिए जाएंगी तो उनके दिमाग में क्या होगा ? वो कौन सा काम या मुद्दा है जो उनके लिए अहम है। इन तीनों गांवों में सड़क की बड़ी समस्या है। न तो कोई सरकारी अस्पताल है और न ही कोई अच्छा स्कूल। कई घरों में गैस तक नहीं मिली।

पथराही गांव में मुझे 10-15 महिलाएं मिलीं। इसी गांव की कविता गांव में काम न होने से बहुत परेशान हैं। वो कहती हैं, गांव के आसपास कोई काम ही नहीं मिलता। घर के पुरुष तो बाहर जाते ही कई महिलाएं भी घर चलाने के लिए दूसरी जगरों पर काम करने जाती हैं। अगर गांव में रोजगार मिले तो अच्छा होगा।’

पलामु पहाड़ी बाहुल्य आदिवासी इलाका है। यहां पर सिंचाई की समस्या है। इन गांवों में भी महिलाएं खेतों में काफी मेहनत करती हैं लेकिन सिंचाई के अभाव में उत्पादन अच्छा नहीं होता। चोखडा गांव की रंजना देवी कुछ ऐसा चाहती हैं कि वो पति के साथ काम करके अपने परिवार को चलाने के लिए चार पैसे कमा सकें।

पिपरा गांव की प्रियंका देवी चूल्हे पर खाना बनाती हैं। उन्हे गैस का इंतजार है। ज्यादातर ग्रामीण, गैस, घर, राशनकार्ड पर बात करते। लेकिन कई महिलाओं ने ऐसे मुद्दे उठाए जो जनप्रतिनिधियों पर सवाल खड़े करते हैं। पिपरा गांव की सड़क बदहाल स्थिति में है। गांव की पूनम बाला कहती है, सड़क 15-20 से कभी बनी ही नहीं। इस पर जो चलता है घायल होने का डर रहता है। आने जाने में बहुत दिक्कत होती है।’ थोड़ा ठहर कर वो आगे बताती हैं, गांव में एक सरकारी स्कूल है लेकिन वहां खिचड़ी बंटती है सिर्फ पढ़ाई नहीं होती। मजबूरी में हमें बच्चों बाहर भेजना पड़ता है।’  

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