Gaon Connection Logo

इस गाँव में आज भी होता है कंस और कृष्ण के बीच युद्ध

#narsinghpur

पुष्पेंद्र वैद्य, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

नरसिंहपुर (छत्तीसगढ़)। जिस तरह दशहरे के अवसर पर पूरे देश में रावण का दहन कर उसका वध किया जाता है। उसी तरह यहां कंस के वध की परंपरा चली आ रही है। इसके लिए एक गाँव भगवान कृष्ण का रथ आता है दूसरे गाँव से कंस का। दोनों आमने-सामने होते हैं और उसके बाद कंस का वध किया जाता है।

मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के मुड़िया गाँव में पिछले 150 वर्षों से भी ज्यादा समय से ये प्रथा चली आ रही है। कंस का वध बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। शुक्रवार को गाँव में इस परम्परा का निर्वाहन किया गया।

मुड़िया गाँव के सरपंच और कार्यक्रम के आयोजक ठाकुर सिंह पटेल बताते हैं, “150 साल पहले इस गाँव माहमारी फैली थी, जिससे बहुत मौतें हो गईं थीं, तब से ये परंपरा चली आ रही है। जब से कंस वध की परंपरा चल रही है, तब से यहां पर कोई माहमारी नहीं आयी।”

इस परम्परा को निभाने के लिए गाँव के लोगों ने अपने खेतों और घरों से मिट्टी लाकर गाँव के बाहर कंस की मूर्ति बनाते हैं और उसके मुकुट पर सफ़ेद फूल जिसे कलगी कहते हैं को लगाया जाता है। कृष्ण को आकर इस कलगी को मुकुट से निकालना होता है। इसे निकालने से कंस का सांकेतिक वध माना जाता है।

पूरी तैयारी के बाद गाँव के बच्चे दो हिस्सों में बंट जाते हैं। एक तरफ कृष्ण की सेना तो दूसरी तरफ कंस की सेना। फिर दोनों सेनाओं के बीच सांकेतिक युद्ध हुआ। देसी अंदाज में पूरे युद्ध की लाइव कामेंट्री भी की जाती है। लगभग चार से पांच घंटे तक युद्ध चलता रहा। इस दौरान बांस के लंबे टुकड़े से एक दूसरे पर सांकेतिक रूप से वार करते रहते हैं। अंत में कृष्ण ने कंस की मुकुट पर से कान्स की कलगी को उखाड़ लिया और युद्ध में कृष्ण की जीत हुई। इसी के साथ गाँव वालों ने जश्न मनाना भी शुरू कर दिया।

गाँव के डॉ विवेक सक्सेना बताते हैं, “हम सभी मिलकर गाँव के बाहर चौराहे पर मिट्टी से कंस की मूर्ति बनाते हैं और उसका वध किसी बालक द्वारा करते हैं, हमारा मानना है कि ये परंपरा जब तक चलती रहेगी हमारे गाँव में माहमारी नहीं आएगी।एक ग्रामीण के सपने में भगवान कृष्ण ने आकार कहा था कि गांव के प्रत्येक घर से कच्ची मिट्टी लाकर कंस का वध करें। ऐसा करने से तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे। तभी से ये परम्परा चली आ रही हैं।”

ये भी पढ़ें : नंदा देवी लोकजात यात्रा: उत्तराखंड की वर्षों पुरानी परंपरा


More Posts

छत्तीसगढ़: बदलने लगी नक्सली इलाकों की तस्वीर, खाली पड़े बीएसएफ कैंप में चलने लगे हैं हॉस्टल और स्कूल

कभी नक्सलवाद के लिए बदनाम छत्तीसगढ़ में इन दिनों आदिवासी बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलने लगी है; क्योंकि अब उन्हें...

दुनिया भर में केले की खेती करने वाले 50% किसान करते हैं इस किस्म की खेती; खासियतें जानिए हैं

आज, ग्रैंड नैन को कई उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाता है, जिसमें लैटिन अमेरिका, दक्षिण पूर्व एशिया, भारत...