छत्तीसगढ़ का मशहूर लोक नृत्य पंथी

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रायपुर (छत्तीसगढ़)। अपने नदी, जंगल, पहाड़ के लिए मशहूर छत्तीसगढ़ अपनी लोक कलाओं के लिए जाना जाता है। यहां के शादी-विवाह, फसल बुवाई, कटाई सब उत्सव ही होता है और सभी के लिए अलग नृत्य भी होते हैं। उसी में से एक नृत्य है पंथी नृत्य। गुरु घासीदास की जन्मतिथि के दिन उनके अनुयायी सफेद धोती, कमरबंद, घुंघरू पहने नर्तक मृदंग और झांझ की लय पर नृत्य करते हैं।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में महंत घासीदास स्मारक में छत्तीसगढ़ के सभी लोक नृत्यों की झलकियां लगी हैं, उन्हीं में से एक पंथी नृत्य की झाकीछत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में महंत घासीदास स्मारक में छत्तीसगढ़ के सभी लोक नृत्यों की झलकियां लगी हैं, उन्हीं में से एक पंथी नृत्य की झाकी

कबीर, रैदास और दादू आदि संतों का वैराग्य-युक्त आध्यात्मिक संदेश भी इसमें पाया जाता है। पंथ से संबंधित होने के कारण अनुयायियों के द्वारा किए जाने वाले नृत्य पंथी नृत्य के रूप में प्रसिद्ध हुआ है। साथ ही इस नृत्य में प्रयोग होने वाले गीतों को पंथी गीत के रूप में प्रसिद्धि मिली है।

छत्तीसगढ़ में सतनाम-पंथ का प्रवर्तन गुरु घासीदास ने 19वीं सदी में किया। उन्होंने समकालीन समय में धर्म-कर्म और समाज में व्याप्त अंधविश्वास, पांखड एवं कुरीतियों के विरुद्ध सदाचार और परस्पर भाईचारे के रूप में सतनाम-पंथ का प्रवर्तन किया। व्यवहारिक स्वरूप में व्यक्तिगत व सामूहिक आचरण के तहत इसे निभाने के लिए उन्होंने नित्य शाम को संध्या आरती, पंगत, संगत और अंगत का आयोजन गांव-गांव रामत, रावटी लगाकर किया।

समाज में निरंतर इस व्यवस्था को कायम रखने के लिए साटीदार सूचना संवाहक अधिकारी और भंडारी चंदा-धन एवं अन्य सामग्री के प्रभारी अधिकारी के रूप में नियुक्त किया एवं महंत जो संत-स्वरूप और प्रज्ञावान थे, की नियुक्ति कर अपने सतनाम सप्त सिद्धांत और अनगिनत उपदेशों व अमृतवाणियों का प्रचार-प्रसार करते भारतीय संस्कृति में युगान्तरकारी महाप्रवर्तन किया।

पंथ से संबंधित होने के कारण अनुयायियों के द्वारा किए जाने वाले नृत्य पंथी नृत्य के रूप में प्रचलित हुए। साथ ही इस नृत्य में प्रयुक्त होने वाले गीतों को पंथी गीत के रूप में प्रतिष्ठा हासिल हुई।

पथ का अर्थ मार्ग या रास्ता है, जिस पर चलकर अभिष्ट स्थल तक पहुंच सकें। इसी पथ पर अनुस्वार लगने से वह पंथ हो जाता है। इसका अर्थ हुआ विशिष्ट मार्ग। इस पर व्यक्ति का मन, मत और विचार चलता है और धीरे-धीरे वह परंपरा और विरासत में परिणत होकर संस्कृति के रूप में स्थापित हो जाता है। इसी सतनाम-पंथ की धार्मिक क्रिया व नृत्य ही पंथी नृत्य है। 

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