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यूरिया के लिए यूपी में घंटों लाइन लगा रहे किसान, 270 रुपये वाली यूरिया 100 रुपये बिक रही महंगी

यूरिया के लिए इन दिनों उत्तर प्रदेश में किसान हंगामा कर रहे हैं। सहकारी समितियों से यूरिया न मिलने से परेशान किसानों को अपनी फसल बचाने के लिए निजी दुकानों से महंगे दामों में यूरिया खरीदनी पड़ रही है।
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(लखनऊ से कुशल मिश्र, बाराबंकी से वीरेन्द्र सिंह, शाहजहांपुर से रामजी मिश्र, सोनभद्र से भीम कुमार और लखीमपुरखीरी से मोहित शुक्ला की रिपोर्ट)

इन दिनों उत्तर प्रदेश में किसान यूरिया के लिए सहकारी समितियों के बाहर घंटों लाइन लगा रहे हैं। कई दिन चक्कर लगाने के बाद किसानों को अपनी फसलों के लिए यूरिया नहीं मिल रही है। ऐसे में परेशान किसान कहीं हंगामा कर रहे हैं तो कहीं मारामारी की नौबत आ गई है। उत्तर प्रदेश में इन दिनों किसान यूरिया की किल्लत से बुरी तरह जूझ रहे हैं। ऐसे में अपनी फसल को बचाने के लिए किसान निजी दुकानों से 50 से 100 रुपये तक महंगी खाद खरीदने को मजबूर हो रहे हैं। वहीं प्रदेश के कृषि मंत्री ने बुधवार को कहा कि प्रदेश में यूरिया की कोई किल्लत नहीं है, खाद की कालाबाजारी करने वाले दुकानदारों के लाइसेंस निरस्त किए जाएंगे.. संबंधित खबर यहां पढ़ें

उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जिले की साधन सहकारी समितियों के बाहर इन दिनों किसानों की लम्बी लाइन लग रही है, मगर यूरिया न मिलने से परेशान किसान अंत में निजी दुकानदारों की ओर रुख कर रहे हैं। दुकानों में इन किसानों को जिंक का पैकेट भी खरीदने पर ही यूरिया की बोरी मिल रही है। कई किसानों का आरोप है कि सहकारी समितियों से कालाबाजारी होने की वजह से निजी दुकानों पर यूरिया खाद महंगे दामों में बेची जा रही है और बाजारों में खाद विक्रेता इसका जमकर फायदा उठा रहे हैं।

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यूरिया लेने के लिए किसानों की लगी लम्बी लाइन। फोटो : वीरेन्द्र सिंह 

शाहजहांपुर जिले के ब्लाक कटरा खुदागंज में तहसील तिलहर के किसान राकेश चन्द्र ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “जो यूरिया 270 रुपये कट्टा (प्रति बोरी) है, उसके साथ में हम लोगों को जबरदस्ती 80 रुपये का जिंक का थैला दिया जा रहा है और 350 रुपये का हम लोगों को मिल रहा है, जबकि उससे कोई लाभ नहीं है। हमारी तो लागत बढ़ ही रही है।”

इसी पंचायत के राघवपुर गाँव के किसान कल्लू बताते हैं, “खाद नहीं मिल रही, जिंक भी साथ में दे रहे, दुकानदार से कुछ बोलो तो कहते हैं कि यूरिया में कीमत भले ही नहीं बढ़ाएंगे, मगर जिंक साथ देंगे, तो जो पैसे लेकर आये यूरिया के लिए, तो जिंक क्यों खरीदें, लेकिन दे नहीं रहे, जिंक के साथ लो तो यूरिया दे रहे हैं।” 

इस समय किसानों को धान, मक्का और अन्य फसलों के लिए यूरिया खाद की जरूरत पड़ती है। धान में बाली निकलने के पहले और बरसात होने के बाद यूरिया का उपयोग किसान करते हैं। मगर साधन सहकारी समितियों में यूरिया स्टॉक न होने की वजह से या तो मिल ही नहीं रही है या कुछ ही किसानों को ही मुश्किल से मिल पा रही है, जबकि निजी खाद विक्रेता महंगे दामों में यूरिया बेच रहे हैं।

शाहजहांपुर के तहसील तिलहर में इंदरपुर गाँव में खाद विक्रेता भानु प्रताप ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “हमारे यहाँ यूरिया नहीं है क्योंकि किसानों को पता है कि हमारा यूरिया क्या भाव है, थोक विक्रेता को पता है हमें किस भाव मिल रहा है, मगर हम हैं छोटे दुकानदार, हमें यह भी नहीं पता कि हम किस भाव में बेचें, महंगी मिलती है तो बेच नहीं पा रहे, हमें सही दाम मिले तो हम किसानों को बेच पायेंगे।”

ऐसा ही हाल राजधानी लखनऊ से सटे बाराबंकी जिले का भी है। बाराबंकी के सिरौलीगौसपुर पंचायत में भी किसान यूरिया खाद न मिलने से निजी खाद विक्रेताओं से खाद खरीदने को मजबूर हैं। यहाँ भी किसानों को यूरिया के साथ जिंक का पैकेट खरीदने पर बाध्य किया जा रहा है।

इसी पंचायत के एक और किसान राजाराम को 270 रुपये की यूरिया की बोरी के साथ 80 रुपये में जिंक का पैकेट भी लेना पड़ा। मगर दुकानदार ने राजाराम को जिंक तीन साल एक्सपायरी डेट का थमा दिया। किसानों के हंगामे के बाद फिलहाल निजी दुकानदार का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया है।

सिरौलीगौसपुर पंचायत के गंगापुर गाँव के किसान रामचंद्र वर्मा ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “तीन-चार दिन से समिति में खाद के लिए चक्कर लगा रहे हैं, मगर जैसे-तैसे अब तक हमें सिर्फ दो बोरी खाद मिली है, इस वक़्त हमारे खेतों को यूरिया की जरूरत है, हमें और खाद चाहिए।”

यूरिया खाद की कमी के बारे में जिला कृषि अधिकारी राजीव कुमार ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “बाराबंकी में यूरिया की आपूर्ति का लक्ष्य 86,000 मीट्रिक टन है जिसमें अभी तक 62,000 मीट्रिक टन आ चुकी है, जबकि इंडोगल्फ कंपनी की 500 मीट्रिक टन यूरिया भी आई है, बाकी यूरिया आने के लिए डिमांड लगा दी गई है लेकिन रैक ना आने से यूरिया की कमी होने की समस्या आ रही है, किसानों द्वारा यूरिया की मांग बढ़ गई है।”

जिले में यूरिया की कमी और किसानों के बीच बढ़ते हंगामे को देखते हुए बाराबंकी के जिलाधिकारी की ओर से ट्विटर पर किसानों से अपील की गई है। बाराबंकी डीएम आदर्श सिंह ने किसानों से अनुरोध किया है, “जनपद में यूरिया के पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध हैं। आज नई रैक आयी है और भविष्य में भी पर्याप्त उपलब्धता रहेगी। जितनी आवश्यकता है उतना ही क्रय करें और अफवाहों में आकर आवश्यकता से अधिक क्रय करने से बचें। कालाबाज़ारी/अधिक मूल्य में बेचने वालों पर सख्त कार्यवाही होगी।” 

बाराबंकी से 450 किलोमीटर दूर सोनभद्र जिले के दुद्धी क्षेत्र की सहकारी समिति केन्द्रों पर किसानों की भारी भीड़ लगी हुई है। इस क्षेत्र के सहकारी समिति केंद्र पर बिडर गाँव के किसान गौरी शंकर दो दिन से यूरिया लेने के लिए चक्कर लगा रहे हैं, मगर अभी तक उनको यूरिया नहीं मिल सकी है।

किसान गौरी शंकर ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “दो दिन से लाइन लगा रहे हैं, वो भी पर्ची पर वितरण हो रहा है, कोई पा रहा है तो कोई नहीं पा रहा है, बाकी जो किसान हैं उनको पुलिस वाले खदेड़ रहे हैं, अब बताइए धान की रोपाई हो गई और फसलों में खाद नहीं पड़ा है, किसान अगर अनाज पैदा नहीं करेगा तो मर जाएगा, कम से कम सरकार किसानों के लिए समय से खाद की व्यवस्था तो करे।”

सोनभद्र में सभी सहकारी समिति केन्द्रों के सहायक आयुक्त एवं निबंधक सहकारिता टीएन सिंह ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “पिछले वर्ष 4500 मीट्रिक टन में सभी किसानों को खाद मुहैया कराई गई थी। इस साल अब तक 9200 मीट्रिक टन खाद जिले में वितरण किया जा चुका है, तो अभी भी किसानों को यूरिया की मांग है।”

सोनभद्र जिले के दुद्धी क्षेत्र की सहकारी समिति केंद्र के बाहर लगी किसानों की लम्बी लाइन। फोटो : भीम कुमार  

टीएन सिंह कहते हैं, “सोनभद्र के 71 क्रय केंद्र पर दो दिन के भीतर 1100 मीट्रिक टन खाद और उपलब्ध हो जाएगी जिसमें सभी किसानों को भरपूर उर्वरक मिल जाएगा। ऐसे में किसानों को किसी भी तरह की जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।”   

देश में यूरिया की खपत की बात करें तो दुनिया की सबसे बड़ी उर्वरक सहकारी समिति इफको ने वित्तीय वर्ष 2019-20 उर्वरकों का सबसे ज्यादा उत्पादन कर नया रिकॉर्ड बनाया है। इफको ने 133 लाख टन उर्वरकों की बिक्री कर सबसे बड़ा रिकॉर्ड बनाया। इसमें यूरिया का उत्पादन भी इस साल ज्यादा रहा। पिछले साल जहाँ 45.62 लाख टन यूरिया का उत्पादन किया था, वहीँ इस वित्तीय वर्ष में 48.75 लाख टन यूरिया उत्पादन हुआ।

देश में बढ़ते उत्पादन के बावजूद किसानों में यूरिया की मांग बढ़ने के सवाल पर द इंटरनेशनल प्लांट न्यूट्रीशन इंस्टीट्यूट (IPNI) – इंडिया प्रोग्राम के पूर्व निदेशक डॉ. केएन तिवारी ‘गाँव कनेक्शन’ से बताते हैं, “वास्तव में यूरिया फसलों में सीमित मात्रा में उपयोग की जानी चाहिए, ज्यादा उपयोग से उत्पादकता भी प्रभावित होती है, सरकार ने पहले खेतों में यूरिया की सीमित खपत के बारे में फैसला लिया भी था, मगर बाद में वापस ले लिया। ऐसे में जो समर्थ किसान हैं वो अपने पास यूरिया का स्टॉक कर लेते हैं।”

डॉ. तिवारी कहते हैं, “ज्यादा उत्पादन के लिए किसान अपनी फसलों में ज्यादा यूरिया डालता है, ऐसे में यूरिया की खपत भी बढ़ती जाती है और उसका खर्च भी बढ़ता है, इसलिए उत्पादन ज्यादा होने पर भी आम किसानों को समय पर यूरिया नहीं मिल पा रही है और मांग के अनुसार कमी सामने आ रही है।”

सोनभद्र जैसा हाल प्रदेश के लखीमपुरखीरी जिले में भी किसानों के सामने हैं। जिले के रमिया बेहड ब्लाक के सेमरी गाँव के किसान जय शंकर मिश्र बताते हैं, “हम पिछले दस दिनों से समितियों के चक्कर काट रहे हैं, लेकिन हम लोगों को यूरिया खाद नहीं मिल पा रही है। जब जाओ तो समिति पर ताला लटकता हुआ नज़र आता है। सचिव को फ़ोन करो तो बताते हैं कि अभी खाद की रैक नहीं आई है। वही प्राइवेट दुकानों पर 450 रुपये में यूरिया खाद ब्लैक में खुलेआम बिक्री की जा रही है।”

ऐसे में इन दिनों किसानों के बीच यूरिया के लिए मारामारी है। सहकारी समितियों से न मिलने पर उन्हें महंगे दामों में यूरिया खरीदनी पड़ रही है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि लॉकडाउन, बारिश और फसलों पर कीटों के हमले के बाद भी किसानों की मुश्किलें थमने का नाम नहीं ले रहीं हैं।

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