मोटे अनाज की खेती की तरफ लौट रहे बेमौसम बारिश और सूखे से परेशान बुंदेलखंड के किसान

Arvind Singh Parmar | Nov 19, 2019, 09:13 IST
#Millets
ललितपुर (बुंदेलखंड)। दो-तीन दशक पहले बुंदेलखंड में ज्चार, बाजारा, सावां, रागी जैसे मोटे अनाज की अच्छी पैदावार हुआ करती थी, धीरे-धीरे नये चलन में किसानों ने मोटा अनाज को बोना छोड़ दिया। लगातार सूखे और फिर बेवक्त बारिश से खरीफ की फसलें नष्ट हुई, किसान बर्बाद हुआ। बर्बादी को देख बुंदेलखंड के किसान एक बार फिर मोटे अनाज की ओर रुख कर रहे हैं।

पिछले साल खरीफ की उड़द के नुकसान को देखकर ताहर सिंह ने मोटा अनाज (ज्वार) बोने का मन बना लिया था। 14 एकड़ जमीन में से सात एकड़ में ताहर सिंह ने ज्वार की खेती की है। किसान ताहर सिंह ललितपुर जनपद से 45 किमी दूर महरौनी तहसील अंतर्गत जखौरा गाँव के रहने वाले हैं। उनके साथ गाँव के अन्य किसानों सहित अगौरा गाँव के करीब तीन दर्जन किसानों ने परम्परागत मोटे अनाज में ज्वार की खेती की।

342199-8a994c49-87c9-4d37-b441-c2092c744b1d
342199-8a994c49-87c9-4d37-b441-c2092c744b1d
अपने ज्वार के खेत में खड़े किसान ताहर सिंह उड़द की अपेक्षा ज्वार मे न के बराबर लागत आती हैं, पिछले साल उड़द में हुए नुकसान से ज्वार की खेती का मन बना चुके किसान ताहर सिंह (54 वर्ष) कहते हैं, "आधी जमीन में ज्वार की खेती का मन बना लिया था, वहीं हमने किया। मध्य-प्रदेश से हाथी खूटा नाम की ज्वार की किस्म के साथ 35 किलो बीज खरीद कर बोया। एक एकड़ में पाँच किलो बीज लगता है सही तरह से बरसात हो तो कम से कम एक हेक्टेयर में 35-40 कुंतल तक पैदावार होगी।"

बुंदेलखंड में सितम्बर से अक्टूबर के पहले सप्ताह तक हुई तीव्र बारिश से पककर खड़ी उड़द की फसल बर्बाद हो गई, किसानों के हाथ खाली होने की बात करते हुए ताहर सिंह कहते हैं,"सात एकड़ में बोई उड़द की उपज एक कुंतल 26 किलो ही हाथ लगी वो भी सड़ी गली। जो दो हजार रुपए कुंतल के भाव मंडी में बेचा। बेचने पर पच्चीस सौ रुपए हाथ लगे। सात एकड़ उड़द में 35 हजार लागत आयी थी, फायदा तो दूर की बात साढे बत्तीस हजार रुपए लागत के डूब गए।"

342200-d9455637-250e-4fd6-bb97-beee0b4d8275
342200-d9455637-250e-4fd6-bb97-beee0b4d8275

इस खेती में कीटनाशक, खरपतवार, फल-फूल वाली दवा हानिकारक रासायनिकों की जरूरत नहीं पड़ती। इसमें आने वाले खर्च की बचत के साथ लागत कम आती है, ज्वार में बाहरी रोग नहीं लगते। ताहर सिंह द्वारा पिछले साल ज्वार बोने के निर्णय की खुशी जाहिर करते हुए कहते हैं, "जुताई करने के बाद ज्वार बोने के बाद दो-तीन गुड़ाई की जाती हैं। पहले तो हल से होती थी, अब वो समय नही हैं ट्रैक्टर से ही एक बार गुड़ाई करवानी पड़ी। ज्वार में लागत ना के बराबर आयी।
ज्वार का भुट्टा दिखाते हुऐ ताहर सिंह कहते हैं, "जितना ये भुट्टे का आकार है सही बरसात होती तो ये भुट्टा इससे दोगुना होता। छोटे इस आकार के होते, पैदावार पर असर पड़ा हैं। ज्वार में बड़े भुट्टे नहीं निकल पाए, लेकिन ज्वार की फसल से उड़द की लागत के नुकसान की भरपाई हो जायेगी और फायदा भी होगा साथ ही रवि की फसल के लिए पैसा भी बच जायेगा, कुछ पैसा से घर का काम चलेगा।"

ललितपुर कृषि विभाग द्वारा 30 सितम्बर 2019 को जारी आंकड़ों के अनुसार, जनपद में ज्वार की बुबाई के लिए 500 हेक्टेयर लक्ष्य के सापेक्ष 501 हेक्टेयर में ज्वार की फसल बोयी गई, बाकी दूसरी फसलें।

342201-03d5e5f8-c902-4221-840d-721af90ba6ff
342201-03d5e5f8-c902-4221-840d-721af90ba6ff

बुंदेलखंड में अन्ना जानवर का बोल बाला हैं सुरक्षा की दृष्टि से ज्वार की फसल बचाने के लिए खेत के चारों ओर कटीला तार लगाने की बात कहते हुए ताहर सिंह कहते हैं, "सुरक्षा के बाद भी अन्ना जानवर और नील गाय घुस आती हैं। ज्वार की रखवाली को दिन रात खेत पर ही रहकर करनी पड़ती है। पक्षियों के झुंड के झुंड दाना खाने आते हैं, सुबह-शाम और पूरे दिन चिल्लाकर भगाना पड़ता है।"

उन्हीं के बगल मे लगे आठ एकड़ के खेत को महिला किसान देवकुंवर ने बटाई ले लिया, बटाई वाले खेत पर बीस साल बाद ज्वार की फसल बोयी, चिल्लाते हुऐ पशु पक्षियों को भगा रही देवकुंवर (50 वर्ष) कहती हैं ,"बीस बरस पहले ज्वार की खेती होती थी, ठंड के सभी महीने में ज्वार की ही रोटी बनती थी, उड़द की खेती करने से ज्वार बोना छोड़ दिया था। अब तो उड़द धोखा देने लगी, दो-तीन साल से एक भी दाना नहीं हुआ। घर पर विचार करके बो दी, बारिश से कुछ तो झड़ गई, अगर ज्वार नहीं बोई होती तो बच्चों को खिलाने तक की व्यव्स्था नहीं थी।"

342202-8a64c733-ca79-48a0-93dc-3e09f0d06133
342202-8a64c733-ca79-48a0-93dc-3e09f0d06133

भारतीय कृषि मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार, "देश में सन 1966 के करीब 4.5 करोड़ हेक्टेयर में मोटा अनाज की खेती हुआ करती थी, अब के समय में रकबा घटा हैं जो ढाई करोड़ हेक्टेयर के करीब है। खरीफ के सीजन में शेष 27 प्रतिशत मोटे अनाज उत्पादन में मक्का (15%), बाजरा (8%), ज्वार (2.5%) और रागी (1.5%) शामिल हैं।

342203-ddc832d2-ab61-4c2d-ae8a-4457e3f673de
342203-ddc832d2-ab61-4c2d-ae8a-4457e3f673de
डॉ दिनेश तिवारी, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र ललितपुर

बुंदेलखंड में दो दशकों से सूखा और बेवक्त बारिश से खरीब की फसलें बर्बाद हुई हैं, वहीं यहां की भूमि मोटे अनाजों के लिए उपयुक्त है। सरकार मोटे अनाजों पर जोर देने की बात करते हुए डॉ दिनेश तिवारी, विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान केन्द्र ललितपुर कहते हैं, "बुंदेलखंड के किसान नुकसान तो सहन कर रहे हैं, लेकिन मोटा अनाज बोने के लिए दिलचस्पी कम दिखा रहे हैं, लेकिन शुरूआत की हैं जो किसानों के लिए अच्छा हैं।
वो कहते हैं, "सांवा, बाजरा, कुटकी, ज्वार जैसे मोटे अनाजों में आयरन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, प्रोटीन, मैंगनीज जैसे जरूरी विटामिन की पर्याप्त मात्रा होती हैं, तभी सरकार कुपोषण को मिटाने के लिए आंगनवाड़ी में मिलने वाले पुष्टाहार में मोटे अनाजों का मिश्रण रहता हैं।"

सितम्बर के पूरे महीने हुई लगातार बारिश से खरीब की फसल में बीमारी बढ़ने की बात करते हुए डॉ तिवारी कहते हैं, "अन्य फसलों में बीमारियां बढ़ जाती हैं, पौधे नष्ट हो जाते हैं, जिसका खामियाजा किसान भुगतते हैं वहीं इस बार हुआ। वहीं मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों को राहत है। किसानों का अच्छा निर्णय हैं ज्वार मोटे अनाज की खेती करने लगे। इसमें लागत ना के बराबर है। बाहरी रोगों का प्रकोप भी नही है। अतिवृष्टि का कम ही असर पड़ता है। मोटे अनाज की खेती कम पानी में हो जाती हैं।"

Tags:
  • Millets
  • bundelkhand
  • video
  • story

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.