रामजी मिश्रा, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)। यहां पर पुल तो है लेकिन जब इसकी जरूरत सबसे अधिक होती तब ये पुल हटा दिया जाता है। बारिश में जब नदी पूरे उफान पर होती है तो पुल हटा दिया जाता है।
शाहजहांपुर जिले के बॉर्डर पर पड़ने वाला अंतिम गाँव भुंडा हरवंशपुर है। इसके बाद पीलीभीत जिला शुरू होता है। भुंडा गाँव तक पक्की सड़क है, और फिर बीच में गर्रा नदी। और उसके बाद शाहजहाँपुर जिले का सीमा का आखिरी गांव भुंडा हरवंशपुर। पुल बनाया जाता है लेकिन जब इसकी जरूरत सबसे अधिक होती है यानी बारिश के मौसम में तब पुल हटा लिया जाता है।
शाहजहांपुर जिले में पीलीभीत बॉर्डर पर भुंडी हरवंशपुर गाँव गर्रा नदी के किनारे बसा है, गाँव को जोड़ने के लिए नदी पर अस्थायी पीपे का पुल बना है, लेकिन बारिश में हर साल इसे हटा दिया जाता है, जिससे ये गाँव बाहरी दुनिया से कट जाता है।
गाँव के राजवीर सिंह बताते हैं, ” यह पैंटून पुल है। सैलाब आने पर बह जाता है इसलिए बारिश में इसे हटा दिया जाता है। हालाँकि इसकी सबसे अधिक जरूरत बारिश में ही पड़ती है।”
वहीं उम्र के तमाम पड़ाव देख चुके सफेद दाढ़ी और बालों वाले जगपाल सिंह बूढ़ी आंखों में आशा और उम्मीद संजोए हुए कहते हैं, “हम लोग पचासों साल से यह सब देख रहे हैं। सैलाब आता है तो मकान के मकान कटान में बह जाते हैं। हम गरीब हैं, इसलिए कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है। ग्रामीणों ने सरकार को अपनी समस्याएं लिखित भेजी हैं।” उन्होंने अपने भेजे प्रार्थना पत्र भी दिखाएं।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के जुलाई, 2018 के सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक बाढ़ से हर साल लाखों लोग प्रभावित, विस्थापित और बेघर होते हैं। जहां हर साल देश का एक हिस्सा जहां सूखे से प्रभावित होता है, वहीं दूसरा हिस्सा बाढ़ और नदियों की कटान की त्रासदी झेलता है।
गांव के वीरेंद्र पाल सिंह कहते हैं कि अगर नदी के किनारे पत्थर लगा दिए जाएं और तट ऊंचे कर दिया जाए तो उनका गांव हर साल होने वाली तबाही से बच सकता है। वह इसके लिए अधिकारियों और नेताओं से कई बार मिल चुके हैं। राजकुमारी की आंखों में सैलाब का खौफ है वह कहती हैं, “पुल बन जाए तो डर कम हो जाएगा, ऐसे हम सैलाब आने पर कहां जाएंगे। रहने की जगह नहीं रह जाती है कहां रहे। संपर्क मार्ग हटाये जाने से कोई मर भी जाए लेकिन हम उस पार नहीं जा सकते।”
गंगा, कोसी, यमुना, राप्ती, गंडक, ब्रह्मपुत्र और घाघरा जैसी नदियां हर साल उत्तर और पूर्व भारत के लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं। वहीं महानदी, गोदावरी, कावेरी, कृष्णा, स्वर्णरेखा और दामोदर जैसी नदियां दक्षिण भारत में तबाही मचाती हैं।
बाढ़ से हर साल औसतन 5000 करोड़ रूपए की संपत्ति का नुकसान होता है। वहीं लगभग 1.680 करोड़ रूपए की फसलें हर साल नष्ट होती हैं। जबकि लगभग एक लाख पालतू पशु अपनी जिंदगी खो देते हैं। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में बाढ़ से होने वाली मौतों की संख्या का 20 प्रतिशत हिस्सा सिर्फ भारत में ही होता है।
नदी के किनारे रहने वाले प्रिंस बताते हैं, “फिलहाल गांव के लोग नदी के घटते बढ़ते जलस्तर पर लगातार नजर बनाए रखते हैं। उन्हें रात रात जागना पड़ता है। सैलाब आने के बाद उनके मकान गर्रा नदी की तेज धार बहा ले जाती है। गांव के लोग पानी से घिर जाते हैं। लेकिन दूसरी ओर जाने का कोई रास्ता उनके पास नहीं होता है। उनके पास खाने के लिये भी कुछ नहीं होता है।”
प्रिंस के अलावा कई ग्रामीणों ने बताया भूख और नदी की तेज धार से खुद को बचाना एक बड़ी चुनौती होती है। हर तरफ लाचार और बेबस निगाहें सिर्फ और सिर्फ नदी की नब्ज टटोलती नजर आती हैं। पास के मीरपुर और गौटिया गाँव भी हैं जिनका सम्पर्क बारिश के मौसम में मुख्य मार्ग से टूट जाता है। जिससे मुख्य जगहों तक लोग नहीं पहुंच पाते हैं।
बारिश में यहां जिंदगी थम सी जाती है और हर ग्रामीण की आंखों में तमाम सवाल होते हैं। हर एक सवाल तमाम जिम्मेदारों को सवालों के घेरे में लेते नजर आता है। ग्रामीणों ने बताया कि यहाँ पर पुल बन जाने से बीसलपुर जैसी जगहों पर जाने के लिए सैकड़ों किलोमीटर का सफर महज 15 किलोमीटर में सिमट जाएगा। यह मार्ग एन एच 24 से कटरा , खुदागंज होते हुए बीसलपुर और वहाँ से सीधे पीलीभीत को जोड़ता है। जबकि यह मार्ग ना होने पर बीसलपुर पहुँचने के लिए या तो बरेली जाना पड़ेगा या फिर शाहजहाँपुर।