ये धुन सुनिए! ये आपको किसी दूसरी दुनिया में ले जाती है। आपके मन को शांत कर देती है। इस धुन के साथ आपका पोर-पोर रमने लगता है। है न? यह वीडियो मध्य प्रदेश के ग्वालियर की है। ग्वालियर किले के बाहर बैठा ये सारंगीवादक वहां आने जाने वाले लोगों का ध्यान बरबस ही अपनी तरफ खींच लेता है।
‘सारंगी’, शास्त्रीय संगीत का एक वाद्य यंत्र है। यह एक खोखली लकड़ी के लंबे डिब्बे जैसी होती है, जिस पर चम़ड़े की परत चढ़ी होती है। इसमें सिर्फ तीन तार होते हैं। इसे एक बो की मदद से बजाया जाता है जिसे ‘गज’ कहते हैं।
पुराने ज़माने में घुमक्कड़ जातियां सारंगी बजाया करती थीं। पहले इसे सारिंदा नाम से भी जाना जाता था। सारंगी शब्द हिंदी के ‘सौ’ और ‘रंग’ से मिलकर बना है, जिसका मतलब है सौ रंगों वाला। संगीत के रंग उसकी धुनें हैं। इस तरह से भारतीय शास्त्रीय संगीत में वाद्ययंत्रों में सौ तरह की धुन निकालने वाला यह एक वाद्य यंत्र है।
भारत में कई सारंगी वादक हुए। राम नारायण, सुल्तान ख़ान, अब्दुल क़रीम ख़ान, अब्दुल लतीफ़ ख़ान, गोपाल मिश्र, शकूर ख़ान। वहीं उस्ताद अल्ला रक्खा मुज़फ्फरी और डॉक्टर तैमूर ख़ान पाकिस्तान के मशहूर सारंगी वादक रहे हैं।
नए ज़माने के म्यूज़िक में सारंगी की धुनें लगभग लुप्त हो रही हैं। आज की पीढ़ी अपने इस शास्त्रीय संगीत के वाद्य को भूलने लगी हैं। ऐसे में कहीं अगर सड़क के किनारे बैठा संगीत वादक आपको अपनी यह कला दिखाए, तो दो पल ठहरे ज़रूर। जैसे हम ठहरे और आपके लिए लेकर आए ‘Folk Studio’ का यह नया ऐपिसोड। इस शो में हम छिपी हुई लोक कलाओं को आपके सामने लाने की लगातार कोशिश करते हैं।

















