केले की खेती में लागत कम करने लिए अपनाएं सकर प्रबंधन की नई तकनीक

Divendra Singh | Jun 10, 2020, 16:46 IST
#banana farming
लखनऊ। पिछले कुछ वर्षों में उत्तर भारत में किसानों का रुझान केले की खेती की तरफ तेजी से बढ़ा है, किसान इससे अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं। लेकिन कई बार कमाई से ज्यादा लागत लग जाती है। सकर (नए कल्लों) के प्रबंधन में भी काफी लागत लग जाती है।

कृषि विज्ञान केंद्र, सीतापुर के अध्यक्ष व प्रधान वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह केला की खेती में सकर प्रबंधन की जानकारी दे रहे हैं। डॉ. आनंद बताते हैं, "एक मजदूर एक दिन में एक बीघा केला की खेत में लगे सारे पौधों के सकर (नए कल्लों) को आसानी से नष्ट कर सकता है। व्यवसायिक खेती के रूप में केले की खेती का व्यापक तरीके से विस्तार हो रहा है।"

भारत में महाराष्ट्र, तमिलनाडु, यूपी, केरल, बिहार, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय और मध्य प्रदेश समेत मुख्य उत्पादक हैं। महाराष्ट्र में भुसावल, बिहार के हाजीपुर और यूपी के बाराबंकी-बहराइच में बड़े पैमाने पर केले की खेती होती है।

346662-banana-28289051920
346662-banana-28289051920

वो आगे कहते हैं, "किसान टिश्यू कल्चर के पौध लगाकर 12-13 में महीने में अच्छा लाभ कमा रहे हैं। लेकिन टिश्यू कल्चर केला की खेती में सकर प्रबंधन किसानों के लिए बहुत कठिन काम होता है। किसान बहुत अच्छे तरीके से केले की खेती करते हैं। लेकिन उसे सकर प्रबंधन में बहुत परेशानी होती है। आज हम एक नए यंत्र के बारे में किसानों को बता रहे हैं। अभी तक कई तरह के यंत्रों का इस्तेमाल करता आ रहा है। ये यंत्र साइकिल में हवा भरने के यंत्र की तरह होता है। इसमें किसान पौध के आसपास जहां पर नए कल्ले उग रहे होते हैं, उसपर ये यंत्र प्रेस करता है।

"इससे ये यंत्र 12-20 इंच तक अंदर जाता है, जो आसानी से सकर को निकाल देता है। इससे किसानों का समय भी बचेगा और लागत भी कम होगी, "डॉ आनंद ने आगे बताया।

क्या होता है सकर

पौधे के आसपास कंद से लगी हुई छोटी –छोटी शाखाएं निकल जाती हैं, जिन्हें सकर कहते हैं। ये पौधे की उचित वृद्धि में बाधक होते हैं। इसलिए इनको निकाल देना चाहिए। सकर निकालते समय यह ध्यान रखें कि मुख्य प्रकंद में चोट न लगने पाए। सूखी पत्तियां भी समय–समय पर काटते रहना चाहिए। केला फल के घेर में से जो फूलों का गुच्छा लगा रहता है, उसे भी काट देना चाहिए।

346663-341716-avp5069-scaled
346663-341716-avp5069-scaled

जून-जुलाई में लगा सकते हैं नई फसल

केले की रोपाई के लिए जून-जुलाई सटीक समय है। सेहतमंद पौधों की रोपाई के लिए किसानों को पहले से तैयारी करनी चाहिए। जैसे गड्ढ़ों को जून में ही खोदकर उसमें कंपोस्ट खाद (सड़ी गोबर वाली खाद) भर दें। जड़ के रोगों से निपटने के लिए पौधे वाले गड्ढे में ही नीम की खाद डालें। केचुआ खाद अगर किसान डाल पाएं तो उसका अलग ही असर दिखता है।

सिंचाई का करे उचित प्रबंधन

केला लंबी अवधि का पौधा है। इसलिए जरुरी है सिंचाई का उचित प्रबंध हो। बेहतर किसान पौध रोपाई के दौरान ही बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली स्थापित करवा लें। मोर ड्राप पर क्रॉप के तहत एक तरफ सरकार जहां 90 फीसदी तक सब्सिडी दे रही है वहीं सिंचाई में काफी बचत होगी। पानी कम लगेगा और मजदूरों की जरुरत नहीं रह जाएग। ड्रिप सिस्टम लगा होने पर कीटनाशनकों आदि छिड़काव के लिए भी ज्यादा मशक्कत नहीं करनी होगी।

इन बातों का भी रखें ध्यान

केले को पौधों को कतार में इन्हें लगाते वक्त हवा और सूर्य की रोशनी का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए कई किसान केले में मल्चिंग करवा रहे है, इससे निराई गुड़ाई से छुटकारा मिल जाता है। लेकिन जो किसान सीधे खेत में रोपाई करवा रहे हैं, उनके लिए जरुरी है कि रोपाई के 4-5 महीने बाद हर 2 से 3 माह में गुड़ाई कराते रहे। पौधे तैयार होने लगें तो उन पर मिट्टी जरुर चढ़ाई जाए। पोषण प्रबंधन केले की खेती में भूमि की उर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नत्रजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है।

Tags:
  • banana farming
  • kvk
  • banana cultivation
  • video

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.