झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को देती हैं मार्शल आर्ट की मुफ्त ट्रेनिंग

#Amita marwah

राजन नाथ, कम्‍युन‍िटी जर्नलिस्ट

पंचकूला (हरियाणा)। जहां देश में नृत्य और मार्शल आर्ट जैसे खेलों का बाजार बना हुआ है, जहां ऐसी कला को सीखने के लिए लोग हजारों, लाखों रुपये तक पानी की तरह बहा देते हैं, वहीं हरियाणा के पंचकूला में एक महिला 450 बच्‍चों को मुफ्त में नृत्य और मार्शल आर्ट सीखा रही हैं। इनके कई छात्रों ने देश ही नहीं विदेशों में भी गोल्‍ड मेडल लेकर आए हैं। इन्‍होंने खुद मार्शल आर्ट में डबल ब्लैक बेल्ट हासिल किया है।

हरियाणा के पंचकूला की 42 साल की अमिता मारवाह अपने दम पर ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को नि: शुल्क कथक, मार्शल आर्ट, कला और शिल्प सीखा रही हैं। अमिता मारवाह अपने स्थापित किये गए गैर सरकारी संगठन- अमिता मारवाह एक्टिविटी टीम के जरिए ग्रामीण क्षेत्र के उन बच्चों को चुनती हैं, जो कड़ी मे‍हनत कर सके।

अमिता पिछले कई सालों से इस संस्थान के तहत चंडीगढ़, पंचकूला के ग्रामीण क्षेत्र के बीच जा कर झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों को मार्शल आर्ट सि‍खाती हैं। अमिता के पास मार्शल आर्ट में खुद के कुल 46 मेडल हैं, जिसमें से 13 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हासिल किये हुए है। मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग देने के साथ ही अमिता बच्चों के लिए खुद किट भी खरीदती हैं। इस काम में उनके पति पीसी मरवाहा उनका पूरा सहयोग करते हैं।

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छात्र कमलेश बताते हैं कि मैं पिछले 4 साल से अमिता जी के साथ जुड़ा हूं। मैंने तीन बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तायक्वोंडो खेला है। इनसे जुड़ने के बाद ऐसा लगतार है मानो मेरी जिंदगी बदल गई हो। वहीं आशीष बताते हैं कि मैं पहले मजदूरी करता था, फ‍िर मैं यहां मार्शल आर्ट सीखने लगा। यहां आने के बाद मुझे इस खेल में मकसद मिल गया। वहीं छात्रा दामिनी कहती हैं कि लोग लड़कियों को कम समझते हैं और घर का काम करवाते हैं। अमिता एक्टिविटी टीम से जुड़ने के बाद मुझे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने का मौका मिला।

बता दें कि अमिता की 2 बेटियां हिमांशी (19) और इशानी (13) हैं। दोनों बेटियां तायक्वोंडो, कला और शिल्प में माहिर हैं। वहीं हिमांशी के पास कुल 35 मेडल हैं, जिसमें से 7 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हासिल किये हुए है। हिमांशी का कहना है कि मुझे बहुत अच्छा लगता है, कि मेरी मम्‍मी ऐसा काम करती हैं, मम्‍मी सबके बारे में सोचती है. सिर्फ मैं ही उनकी बेटी नहीं हूं, यहां आ रहे सभी बच्चे उनके बच्चे हैं। ऐसे में इस मुहिम को शुरू करने को लेकर अमिता ने कहा कि बहुत सारे बच्चे ऐसे होते हैं, जो लायक होते हैं पर पैसे की वजह से पीछे रह जाते हैं, इसलिए मैंने सोचा था कि, जब मैं शिक्षक बनूंगी, तब मैं बच्चों को नि: शुल्क शिक्षा दूंगी।

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