गांव कनेक्शन सर्वेः घर की महिलाओं के बाहर निकलने पर सुरक्षित नहीं महसूस करते हैं लोग

सर्वे में 63.8 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके घर की महिलाओं को दिन ढल जाने के बाद डर लगता है और असुरक्षा की भावना बढ़ जाती है।
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लखनऊ। छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले में रहने वाली 18 साल की आदिवासी युवती गीता टेकाम को मजबूरन पढ़ाई छोड़नी पड़ रही है। वह बारहवीं में थी लेकिन सुरक्षा के कारण अब आगे की पढ़ाई जारी नहीं रख पाएंगी।

“हमारे लिए सुरक्षा एक बहुत बड़ा मसला है। कई ऐसी लड़कियां हैं जो पढाई में अच्छी हैं लेकिन अब घर पर बैठी हैं। कई लड़कियों की शादी करा दी जा रही है। ऐसा नहीं है कि यहां लड़कियों के साथ रोज़ कोई हादसा होता है। लेकिन घर वालो का डर भी जायज है।” गीता टेकाम गांव कनेक्शन से कहती हैं।

गीता टेकाम अकेली ऐसी महिला नहीं हैं, जिनको अपनी सुरक्षा की चिंता है। महिला सुरक्षा को लेकर गांव कनेक्शन ने देश के 19 राज्यों के 18267 लोग सेे बात की। ग्रामीण भारत के इस सर्वे में लोगों से पूछा गया कि क्या आपकी घर की औरतें और लड़कियां घर से बाहर निकलते वक्त खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं? इस सर्वे में 63.8 फीसदी लोगों ने कहा कि उनके घर की महिलाएं दिन के वक्त तो बाहर निकलने में सुरक्षित महसूस करती हैं लेकिन दिन ढल जाने के बाद असुरक्षा बढ़ती जाती है। जबकि 11.8 फीसदी लोगों ने कहा कि वे कभी सुरक्षित नहीं महसूस करतीं।


असुरक्षा और डर की वजह से छोड़नी पड़ती है पढ़ाई

सीमा (15) प्राथमिक विधालय, बयारा, संत कबीर नगर (उत्तर प्रदेश) में आठवीं कक्षा की छात्रा है। उसे नहीं पता कि आगे की उसकी पढ़ाई जारी रह पाएगी या नहीं क्योंकि उसके गांव के आस-पास कोई भी ऐसा स्कूल नहीं है जो 8वीं की ऊपर की शिक्षा दे। सीमा के घर से निकटतम इंटर कालेज की दूरी पांच किलोमीटर है।

भारत में हर साल सुरक्षा की वजह से महिलाओं को बीच में ही पढ़ाई या नौकरी छोड़नी पड़ती है। असर (Annual Status of Education Report) की रिपोर्ट के अनुसार 15 से 18 साल की आयुवर्ग की लड़कियों में 13.5 प्रतिशत लड़कियों का नामांकन ऊपर की कक्षाओं में नहीं हो पाता है। कई लड़कियों का नामांकन तो हो जाता है लेकिन उनकी उपस्थिति का रिकॉर्ड काफी खराब रहता है।


अहमदाबाद में महिला सुरक्षा से जुड़े एक एनजीओ के साथ काम करने वाले धवल चोपड़ा बताते हैं, “कई गांव ऐसे हैं, जहां आठवीं के बाद स्कूल ही नहीं है। इसलिए बहुत कम ऐसी लड़कियां हैं जो दूसरे गांव में जाकर पढाई जारी रख पाती हैं। ज्यादातर लड़कियां पढाई छोड़ ही देती हैं क्योंकि उनके और उनके परिवार के सामने सुरक्षा एक अहम मुद्दा है।”

2017 के एक रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण भारत की 23 फीसदी लड़कियों को स्कूल सिर्फ इसलिए छोड़ना पड़ता है क्योंकि स्कूल में माहवारी और शौचालय के लिए उचित व्यवस्था नहीं होती। जो लड़कियां पढ़ाई जारी भी रखती हैं, उसमें से 38 फीसदी माहवारी के समय स्कूल नहीं जाती।

कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार

विश्व बैंक की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार 2005 से 2017 के बीच भारत में लगभग 2 करोड़ महिलाओं को नौकरी छोड़नी पड़ी। इस रिपोर्ट में ही बताया गया कि 2016 में कार्य स्थल पर 539 महिलाओं के साथ यौनिक दुर्व्यवहार की घटनाएं हुई जो कि 10 साल पहले के 2006 के रिकॉर्ड से 170 प्रतिशत अधिक थी। यह आंकड़ें उनके संबंध में हैं जिन्होंने अपने साथ हुई हिंसा का रिपोर्ट दर्ज कराया।


कार्य स्थल पर महिलाओं के साथ बढ़ रहे दुर्व्यवहार का असर कामगार महिलाओं की संख्या पर भी पड़ रहा है। जहां 1993-94 में 42 प्रतिशत महिलाएं किसी भी तरह के रोजगार का हिस्सा थीं, 2011-12 में यह घटकर सिर्फ 31 प्रतिशत रह गई। ग्रामीण इलाकों में जहां महिला श्रम बल प्रतिशत ऊंचा रहता है, वहां पर महिला श्रमिकों की संख्या 49 से 37.8 फीसदी रह गई।

नहीं दर्ज हो पाती है शिकायत

प्रयागराज के करछना ब्लॉक की रीना (41) (बदला हुआ नाम) पर लगातार 18 साल से घरेलू हिंसा और शोषण हो रहा था लेकिन वह भय की वजह से इस मामले में अपने पति और ससुराल वालों पर केस नहीं दर्ज करा रही थी। उन्होंने हाल ही में इस मामले में मुकदमा दायर किया है, जब वह ‘महिला सामख्या’ नामक एक महिला सशक्तिकरण संगठन के संपर्क में आईं।

महिला सुरक्षा से जुड़े एनजीओ में काम करने वाले धवल चोपड़ा बताते हैं, “यह एक बहुत बड़ी दिक्कत है। भारत में लोग अक्सर जब कोई हादसा होता है तो रिपोर्ट दर्ज कराने में हिचकिचाते है। जब उन्हें बार-बार पूछ जाता है तब ही वे खुल के सामने आते है। महिलाओं के साथ यह खास तौर पर होता है। ज्यादातर बलात्कार और यौनिक हिंसा के मुद्दे घरों से ही निकल कर आते हैं।”


एनसीईआरबी, 2017 की रिपोर्ट बताती है कि 70 प्रतिशत से अधिक महिलाएं उनसे हुई किसी भी प्रकार की शोषण और हिंसा के मामले में शिकायत दर्ज ही नहीं कराती हैं। ऐसा वे भय, लोकलाज या लंबी न्यायिक प्रक्रिया की वजह से करती हैं। जिन मामलों में शिकायत भी दर्ज होती है उनमें सिर्फ 25 फीसदी मामलों में ही अंतिम रूप से फैसला आ पाता है और दोषियों को सजा हो पाती है। बाकी के मामलों को आम भाषा में कहें तो ‘मामला रफा-दफा’ कर दिया जाता है। अंग्रेजी अखबार मिंट की एक रिपोर्ट बताती है कि 99 प्रतिशत बलात्कार के मामलों में केस दर्ज नहीं होता।

‘महिला सामख्या’ की प्रयागराज इकाई की प्रमुख पंकज सिंह बताती हैं कि ऐसा सिस्टम की उदासीनता के कारण होता है। वह कहती हैं कि घरेलू हिंसा एक्ट के तहत ऐसे मामलों का निस्तारण दो महीने में ही करना होता है लेकिन ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि किसी मामले का निपटान दो महीने में हो गया हो। वह कहती हैं कि घरेलू हिंसा के मामलों के निपटान के लिए एक अलग इकाई हर जिले में बनना चाहिए जिसकी प्रमुख कोई महिला ही हो।

शौचालय ना होना भी महिलाओं के साथ हिंसा का एक कारण

सानोती कावड़े 22 साल की एक आदिवासी महिला हैं। वह छत्तीसगढ़ के एक नक्सल प्रभावित जिले नारायणपुर की रहने वाली हैं। सानोती बताती हैं, “हमारे यहां महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई मुद्दे हैं। यह एक नक्सल प्रभावित इलाका है। घर में जब कोई पुरूष नहीं रहता तो हमें काफी डर लगता है। दूसरा बहुत कम घरों में शौचालय है इसलिए शौच के लिए सभी को बाहर ही जाना पड़ता है। सुरक्षा की दृष्टि से हम समूह बनाकर शौच के लिए जाते हैं लेकिन फिर भी डर लगता है।”


नेशनल क्राइम ब्यूरों के रिपोर्ट के मुताबिक गांवो में शौच के लिए बाहर निकलते वक्त महिलाएं सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। मिशिगन विश्वविधालय के शोधार्थियों द्वारा 2016 में किए गए एक शोध में बताया गया है कि जो महिलाएं खुले में शौच के लिए जाती हैं उनके खिलाफ बलात्कार की संभावना दोगुनी रहती है। 2016 के इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में लगभग 30 करोड़ महिलाएं खुले में शौच जाती हैं। हालांकि हालिया सरकार द्वारा स्वच्छ भारत योजना के तहत लगभग 11 करोड़ घरों में शौचालय (इज्जत घर) का निर्माण कराया जाना है।

जनवरी, 2019 तक स्वच्छ भारत योजना के तहत 9 करोड़ घरों में शौचालय का निर्माण कराया गया। हालांकि ये सरकारी आंकड़ें हैं। इसमें से उन शौचालयों की संख्या भी है जो पूरी तरह से निर्मित नहीं है या जो प्रयोग करने के लिए अभी तक तैयार नहीं है। उम्मीद है कि इस योजना के बाद नई रिपोर्ट में शौच के लिए बाहर जाने वाली महिलाओं की संख्या में गिरावट आएगी।

नाबालिग लड़कियां सबसे अधिक शिकार

फतेहपुर की गरिमा (21) जब 12 साल की थीं तभी उन पर किसी व्यक्ति ने तेजाब फेंक दिया था। इस मामले में बहुत समय तक शिकायत नहीं दर्ज हो पाई। जब शिकायत दर्ज हुई तो अज्ञात लोगों के खिलाफ दर्ज हुई क्योंकि पुलिस अपने जांच में पहचान नहीं कर पाई कि गरिमा पर दिन-दहाड़े सड़क किनारे किसने तेजाब फेंका था।

गरिमा बताती हैं कि अभी भी इस मामले में ‘अज्ञात’ पर मुकदमा चल रहा है क्योंकि कोई भी गवाही देने को तैयार नहीं हुआ। गरिमा को नहीं पता कि इस ‘अज्ञात’ को कभी सजा और उसे कभी न्याय मिलेगा भी या नहीं। गरिमा के साथ काम करने वाली रूपाली के साथ भी कुछ ऐसा ही घटित हुआ था। वह जब 10 साल की थीं तब उन के साथ बाजार में छेड़छाड़ की घटना हुई थी। लेकिन अभी भी इस मामले में अज्ञात पर ही मुकदमा दर्ज है।


यौनिक हिंसा और बलात्कार के मामले में 40 प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं जिसके शिकार नाबालिग होते हैं। 2016 के राष्ट्रीय आपराधिक (NCRB) आंकड़ों के अनुसार ऐसे कुल 36,022 मामले पॉस्को एक्ट के अन्तर्गत दर्ज किए गए। यह भी एक प्रमुख कारण है कि लड़कियों की आगे की पढ़ाई रूक जाती है।

इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि नाबालिगों के साथ दुर्व्यवहार की घटनाएं अधिकतर जान-पहचान के लोग और रिश्तेदार ही करते हैं। रि‍पोर्ट के मुताबिक, “ज्यादातर बलात्कार या यौनिक हिंसा के मुद्दे घरों से ही निकल कर आते हैं। बलात्कार और यौन हिंसा के मामलों में 94.6 फीसदी आरोपी जान-पहचान के होते हैं। वे दोस्त, पड़ोसी या रिश्तेदार होते हैं। दो प्रतिशत मामलों में महिला का पति भी आरोपी होता है जो जबरन यौनिक अत्याचार करता है।”

एसिड अटैक भी महिला सुरक्षा का एक अहम पहलू

फराह खान (33) उत्तर प्रदेश के फर्रूखाबाद की रहने वाली हैं। 19 साल की उम्र में उनकी शादी हुई। छः साल बाद उन्हें पता चला कि उनके पति का संबंध किसी अन्य महिला से है। इसके बाद वह उनसे तलाक मांगने लगी। फराह को तलाक तो नहीं मिला लेकिन गुस्से में उनके पति ने उन पर एक दिन तेजाब डाल दिया।

फराह ने इसके बाद अपने पति की कानूनी लड़ाई लड़ी लेकिन चार साल मुकदमा लड़ने के बाद फराह के पति को साढ़े तीन साल की सजा मिली। अब फराह के पूर्व पति ने दूसरी शादी कर परिवार बसा ली है, जबकि फराह को जिंदगी भर जूझने की सजा मिल गई है।


एसिड अटैक भी महिलाओं की सुरक्षा से जुड़ा एक अहम मसला है। समाज के कुंठित लोग महिलाओं पर अत्याचार करने में इसका प्रयोग करते हैं जिसका जख्म उस महिला को जिंदगी भर सहना पड़ता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में सबसे अधिक एसिड अटैक की धटनाएं दक्षिण एशिया में होती हैं और पाकिस्तान, बांग्लादेश के बाद भारत का स्थान आता है। औसतन हर साल एसिड अटैक के 300 मामले दर्ज होते हैं।

महिला सुरक्षा के जानकारों के मुताबिक एसिड अटैक से जुड़े हजारों मामले हर साल दर्ज नहीं हो पाते हैं और लोग उससे अनभिज्ञ रह जाते हैं। एसिड अटैक के खिलाफ भारत में कड़े कानून हैं। आरोपियों के लिए दस साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है लेकिन रिपोर्ट कहती है कि 40 फीसदी मामलों में आरोपी फरार ही रहते हैं और अदालत में पेश नही होते। जो पेश होते हैं उसमें से भी सभी को सजा नहीं मिल पाती है। वे सबूतों और गवाहों के अभाव में बच जाते हैं।


अलीगढ़ की जीतू शर्मा (21) ने ऐसे ही तंग आकर अपना केस वापस ले लिया था। जीतू जब 16 साल की थीं तो उन पर उनके एक 55 वर्षीय पड़ोसी ने तेजाब डाल दिया था। लेकिन गवाहों के अभाव में जीतू इसे कोर्ट में साबित नहीं कर पाईं। जीतू कहती हैं, “मेरे ऊपर तेजाब फेंका गया। मैं ही इसकी सबसे बड़ी सबूत और गवाह हूं। लेकिन कानून को मेरे चेहरे का घाव नहीं दिखता।”

एसिड अटैक सर्वाइवर्स पर काम करने वाले ‘छांव फाउंडेशन’ के रोहित कहते हैं कि कानून की धीमी प्रक्रिया निराश कर देने वाली है। वह कहते हैं कि उनके पास 80 फीसदी से अधिक मामले हैं जिनके केस अभी भी अदालत में पेंडिंग हैं, जबकि ऐसे मामलों में त्वरित कार्यवाही की बात की जाती है। जिन मामलों में सजा होती भी है वह किए गए दोष के हिसाब से काफी कम होती है। रोहित कहते हैं कि यह सब काफी निराशाजनक है।

“भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश”

थामसन रॉयटर्स की एक रिपोर्ट (जून, 2018) के अनुसार महिला सुरक्षा के लिहाज से भारत विश्व का सबसे खतरनाक देश है। बलात्कार, यौनिक हिंसा, एसिड अटैक, बाल विवाह, भ्रूण हत्या और इन मामलों में त्वरित न्याय नहीं मिल पाने के कारण भारत की ऐसी दशा बनी और भारत ने इस सूची में हिंसा और युद्ध ग्रस्त अफगानिस्तान और सीरिया जैसे देशों को पछाड़ दिया।

थॉमसन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बाल विवाह प्रतिबंधित है लेकिन फिर भी दुनिया में सबसे अधिक बाल विवाह भारत में ही होती है। एक तिहाई लड़कियों की शादी 18 साल से पहले हो जाती है।

हालांकि अगर औसत या प्रतिशत के मामले में देखें तो भारत यूरोप और अमेरिका से बेहतर स्थिति में है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या काफी अधिक है, उस हिसाब से यहां पर यौनिक हिंसा और बलात्कार की घटनाएं भी अधिक होती रहती हैं। 2011 में हुए इसी सर्वे में भारत चौथे स्थान पर रहा था।

लगातार बढ़ रही हैं बलात्कार की घटनाएं

2012 में निर्भया कांड के बाद देश भर में महिलाओं के प्रति हिंसा और बलात्कार के खिलाफ क्रोध का गुबार उठा था। इसके बाद बलात्कार के खिलाफ कठोर कानून भी बनाए गए और आरोपियों के लिए मौत की सजा का भी कानून लाया गया। फास्ट ट्रैक कोर्ट में त्वरित कार्रवाई की बात की गई। लेकिन महिलाओं के प्रति हिंसा रूकने का नाम नहीं ले रही।

नेशनल क्राइम ब्यूरो की (एनसीईआरबी) एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2007 से 2016 के दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा मे 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर घंटे में कम से कम चार बलात्कार की घटनाएं होती हैं। 2016 के आंकड़ों के अनुसार भारत में कुल 38, 947 बलात्कार की घटनाएं हुईं। वहीं महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में 2016 में कुल 3,38,954 मामले दर्ज किए गए।


महिलाओं के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाली वकील रेनू मिश्रा कहती हैं कि आम लोगों के साथ पुलिस की मानसिकता में जेंडर संवेदनशीलता की कमी है। इसलिए ऐसे मामलों में मुकदमे दर्ज नहीं होते। अगर दर्ज भी होते हैं तो कार्रवाई की प्रक्रिया काफी धीमी होती है। केस को कमजोर बनाने की कोशिश होती है। इसलिए पुलिस की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए। पुलिसिया कार्रवाई में पारदर्शिता आनी चाहिए।”

रेनू कहती हैं कि अगर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित हो जाए और उनमें सुरक्षा की भावना आ जाए तो इस विकासशील देश के विकास गति में और तेजी आ जाएगी। 

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