बिहार में एमएसपी से आधी कीमत पर मक्का बेचने वाले किसानों का दर्द कौन सुनेगा ? #GaonYatra

देश में मक्के की सरकारी कीमत 1700 रुपए है। एमपी समेत कई राज्य इस पर बोनस भी देते हैं। लेकिन बिहार में सरकार मक्का खरीदती ही नहीं है। यहां औने-पौने दामों पर व्यापारी इसकी खरीद कर लेते हैं। मक्का लाखों लोगों के रोजगार का प्रमुख जरिया है, लेकिन सरकार की उदासीनता के चलते मक्का किसान नुकसान उठा रहे हैं। गाँव कनेक्शन ने अपनी सीरीज गाँव यात्रा की तीसरी कड़ी में इन्हीं मक्का किसानों की बात की है।

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अरविंद शुक्ला/मिथिलेश धर दुबे

पूर्णिया/किशनगंज (बिहार)। बिहार के चार जिलों पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया को सीमांचल कहा जाता है। इस पिछड़े इलाके में सबसे ज्यादा मक्के की खेती होती है। मक्का यहां की प्रमुख फसल है। हर खेत में मक्का मिलेगा, साल में दो बार भी मक्के की खेती होती है। लेकिन यहां मक्के की खरीद सरकारी दर यानी एमएसपी पर नहीं होती। त्रासदी ये है कि 69 लाख मतदाता वाले सीमांचल में मक्का कभी चुनावी मुद्दा नहीं बना ही नहीं।

पटना से करीब 450 किलोमीटर किशनगंज के तूलिया गांव के पूर्व मुखिया और किसान बीएन ठाकुर बताते हैं, "मक्का हमारी मुख्य फसल है। लेकिन दुर्भाग्य ये कि किसानों को इसका अच्छा रेट नहीं मिलता। हमारे यहां सरकारी खरीद (एमएसपी) नहीं होती। तो मजबूरी में जब फसल कटती है किसान 900 से लेकर 1000 रुपए प्रति कुंतल तक में उसे बेच देता है।"

मक्का उनके लिए कितना महत्वपूर्ण है ये पूछने पर बीएन ठाकुर अपने गांव का उदाहरण देते हैं। "15 हजार की आबादी वाले मेरी ग्राम पंचायत में 6 हजार वोटर हैं। 4 हजार लोग सीधे तौर पर मक्का से जुड़े हैं। पिछले साल (2018 मेँ) नीतीश कुमार ने कहा था सरकारी खरीद केंद्र बनेंगे। लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब चुनाव हो रहे हैं लेकिन मक्के की कोई बात नहीं कर रहा है। जबकि ये लाखों लोगों की रोजी-रोटी से सीधे तौर पर जुड़ा है।"

मक्का दुनिया की सबसे ज्यादा खाई जाने वाली फसल है। मक्के की रोटी और भुट्टे के अलावा पॉप कॉर्न, स्वीट कॉर्न, बेबी कॉर्न, कॉर्न फ्लेक्स जैसे तमाम रूपों में मक्का दुनिया का पेट भरता है। मक्के को जहां इंसान खाते हैं, वहीं इससे पशुओं के लिए चारा, और मुर्गियों और सूकरों के लिए दाना बनाया जाता है।

नेशनल ज्योग्राफिक की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा मक्का अमेरिका में पैदा होता है, जिसके बाद चीन और ब्राजील का नंबर आता है। भारत में मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और बिहार में भी मक्के की बड़े पैमाने पर खेती होती है।


भारत सरकार ने 2018-2019 के लिए मक्के का समर्थन मूल्य 1700 रुपए प्रति कुंतल घोषित किया था। मध्य प्रदेश में मक्के पर सरकार बोनस भी देती है। लेकिन बिहार में मक्के की सरकारी खरीद नहीं होती। बिहार में सीमांचल के चार जिले मक्के का गढ़ हैं लेकिन यहां जो सबसे ज्यादा फसल उगती है उसके खरीददार नहीं हैं और जो खरीदादार मिलते हैं वो आधे-पौने दाम पर खरीद करते हैं।


पूर्णिया जिले के श्रीनगर प्रखंड में श्रीनगर गांव के माधव झा चार भाई हैं। उनके पास पांच एकड़ खेती है जिसमें वे मक्का और धान उगाते हैं। माधव के मुताबिक अगर सही रेट मिले तो मक्का इस इलाके के किसानों की किस्मत बदल सकता है। "न्यूनतम समर्थन मूल्य से आधे कीमत पर 800-900 रुपए कुंतल पर हमारा मक्का बिकता है। लोकल व्यापारी अपनी मर्जी से रेट तय करते हैं। अगर सरकारी रेट पर खरीद शुरू हो जाए, या मक्का आधारित यहां को कोई उद्योग लगे तो इलाके के लोगों का भला हो जाएगा।'

इस साल पूर्णिया में 39,765 हेक्टेयर, कटिहार में 45,603, अररिया में 52,600 और मधेपुरा में 45,523 हेक्टेयर में मक्के की खेती की गयी। वहीं अगर मक्के की कीमतों की बाद करेंगे तो उसमें बढ़ोतरी का अनुपात बहुत धीमा रहा है। 2015 में किसानों को एक कुंतल के लिए जहां 1,050-1,150 रुपए मिल रहा था तो 2016 में ये कीमत थोड़ी बढ़ी और ये 1,150-1,250 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंची। 2017 में कीमत 1,250-1,300 रही और 2018 में 1,500-1,600 तक पहुंची। ये बिहार और केंद्र सरकार की रिपोर्ट कहती है।

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बिहार का ये इलाका पहले जूट की खेती करता था। लेकिन उद्योंग और मजदूरों की कमी के चलते उत्तर बिहार के किसानों ने जूट की जगह मक्का उगाना शुरू कर दिया। लेकिन सरकारी उदासीनता से एक बार फिर इन किसानों के सामने संकट है। जबकि मक्का का क्षेत्र संभावनाओं से भरा हुआ है। भारत पूरी दुनिया के कुल मक्का उत्पादन में सिर्फ 2 फीसदी भागीदारी रखता है। जबकि भारत की बात करें तो बिहार का महत्वपूर्ण स्थान है। देश का 10 फीसदी मक्का उत्पादन बिहार अकेले कर रहा है। बात अगर बस सीमांचल और कोसी क्षेत्र की करेंगे तो यहां अभी सालाना 17 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हो रहा है। इसमें से 14 लाख मीट्रिक टन बाहर जा रहा जबकि तीन लाख मीट्रिक टन की घरेलू खपत है।

बिहार में मक्के पर एमएसपी न मिलने से किसानों को हो रहा भारी नुकसान

पूर्णिया समेत सीमांचल में जो मक्का होता है उसका बड़ा हिस्सा तमिलनाडु जैसे दक्षिण भारत के राज्यों में जाता है जहां पोल्ट्री उद्योग तरक्की पर है। मुर्गी पालन और पोल्ट्री फीड (मुर्गियों का चारा) भारत का बढ़ता हुआ उद्योग है लेकिन इसका फायदा बिहार को नहीं मिल पा रहा।

पूर्णिया के किसान और पत्रकार गिरींद्र नाथ झा कहते हैं, "यही बिहार की त्रासदी है कि जो स्थानीय मुद्दे चुनावी मुद्दा नहीं बनते। मक्का लाखों लोगों की आजीविका का आधार है बाजवूद इसके कोई पार्टी इस पर बात नहीं कर रही।"

बिहार में मुद्दे क्या हैं ये किशनगंज के बीएन ठाकुर की बातों से समझा जा सकता है। "देखिए किशनगंज मुस्लिम बाहुल्य इलाका है 75 फीसदी आबादी यहां मुस्लिम है। दो साल पहले बाढ़ में टूटी सड़कें अभी तक नहीं बनी हैं। चुनाव में शुरुआत में सब विकास की बात करते हैं लेकिन वोटिंग तक मुद्दा धर्म पर आकर टिक जाता है। पहले यूपीए और एनडीए दो धड़े हुआ करते थे, अब बार ओवैसी की पार्टी (ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन AIMIM) आ गई है तो तीन गुट हो गए हैं। लेकिन किसी के भी एजेंडे में मक्के की बात नहीं है।"

खेती राज्य का विषय है, कोई भी राज्य अपने हिसाब से खेती की योजनाओं को लागू करने के स्वतंत्र है। बिहार में औपचारिक रूप से सिर्फ धान की ही सरकारी रेट पर खरीदी होती है। बाकी चीजें कागजों पर है।

भागलपुर में कृषि विभाग के डिविजनल ज्वाइंट डायरेक्टर शंकर चौधरी मक्का खरीद की बात पर कहते हैं "हमारे जिले में मक्के की पैदावार होती है लेकिन खरीद नहीं होती। किसान पूर्णिया भी ले जाकार बेंच देते हैं।" यहां जिला कृषि प्राधिकरण में सदस्य केके झा कहते हैं, मक्का की सरकारी खरीद हमारे यहां नहीं होती। न ही खरीद में कोई सरकारी हस्तक्षेप होता है।


बिहार के बारे में सोचने वाली बात ये भी है कि देश के कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह बिहार से ही आते हैं। वो पूर्वी चंपारण जिले से सांसद हैं। देश के सूक्ष्म एवं लघु उद्योग मंत्री गिरिराज सिंह भी संसद में बिहार का प्रतिनिधित्व करते हैं। वो नवादा लोकसभा क्षेत्र से सांसद हैं।

लेकिन बिहार में न तो मक्का की सरकारी खरीद होती है और न ही उससे संबंधित किसी उद्योग के लिए कोई जमीन तैयार हो पाई। यही वजह है कि अब मक्का का भी विकल्प तलाशना चाहते हैं। पूर्णिया के माधव झा कहते हैं "हमारे यहां मक्का तो सरकार खरीदती नहीं। साथ ही कभी कोई सरकारी अधिकारी या वैज्ञानिक ये भी बताने नहीं आता कि आप दूसरी खेती कौन सी करें?"

एक और बात करने वाली ये है कि नवंबर से लेकर अप्रैल तक बिहार के खेतों में मक्का लहलाहती है। इन दिनों बालियां आनी शुरू हुई हैं यानि फसल पकने में समय है तो किशनगंज में कीमत 1700-1800 रुपए प्रति कुंतल पहुंच गयी है लेकिन इस समय किसानों के पास मक्का है ही नहीं।

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इस पर किशनगंज के किसान बीएन ठाकुर कहते हैं, "इस समय तो मक्का का रेट अच्छा है लेकिन किसान के घर में मक्का नहीं। अब बिचौलिए और बड़े आढ़ती कमाई कर रहे हैं। अगर फसल पैदा होना पर इतना हो जाए कि न्यूनतम समर्थन मूल्य या अब वाला रेट (निजी कारोबारी) से 100-150 रुपए ज्यादा पर भी मक्का की खरीद हो तो लाखों किसानों की किस्मत बदल सकती है।"

मक्के से क्या क्या बनता है।

दुनिया का पेट भरने वाली पांच फसलों में मक्का अहम है। मनुष्य और पशुओं के खाद्य पदार्थों के अलावा मक्के का इस्तेमाल एल्यूमिनियम, बैटरियों, प्रसाधन सामग्री, विस्फोटक, इंक, कीटनाशक, इन्सुलेशन, कार्डबोर्ड, कालीन, वॉलपेपर और टूथपेस्ट जैसे कई उत्पादों में भी होता है।

बिहार के सीमांचल के मक्के का रकबा (हेक्टेयर में)

पूर्णिया- 39,765

कटिहार- 45,603

अररिया- 52,600

मधेपुरा- 45,523

साल दर साल कीमत (प्रति कुंतल)

2015- 1,050-1,150

2016- 1,150-1,250

2017- 1,250-1,300

2018- 1,500-1,600

उत्पादन

17 लाख टन सीमांचल और कोसी में

14 लाख टन का निर्यात

3 लाख टन की घरेलू खपत

(आंकड़े प्रदेश और केंद्र सरकार की रिपोर्ट के अनुसार)

   

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