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कैसे बनते हैं कश्मीर में मशहूर विलो बैट

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श्रीगर (जम्मू-कश्मीर)। 30 मई से 14 जुलाई तक इंग्लैंड और वेल्स की क्रिकेट पिच पर हो रहे वाले क्रिकेट वर्ल्ड कप पर दुनिया भर की नजरें हैं, क्या आप जानते हैं कि इंग्लैंड के साथ ही भारत के जम्मू-कश्मीर में भी विलो बैट बनते हैं।

श्रीनगर से पहलगाम जाते वक़्त रास्ते में बहुत सी दुकानों और रोड के किनारे बैट टंगे मिल जाएंगे जो विलो के पेड़ से बनाये जाते हैं। वहां के कारीगर नसीर अली बताते हैं, ”इन पेड़ों को तैयार होने में लगभग 10 से 12 साल लग जाते हैं फिर इनको सुखाया जाता है, इसमें लगभग डेढ़ साल का समय लगता है फिर बैट तैयार कर के बाज़ार में उतारा जाता है।”


इंग्लैंड के बाद कश्मीर दूसरा सबसे बड़ा राज्य है, जहां विलो का पेड़ उगता है और इसी पेड़ को काटकर सूखाकर उसी से क्रिकेट बैट का निर्माण किया जाता है। कश्मीर देश का एक मात्र विलो पेड़ की उत्पत्ति का राज्य है। इंग्लिश विलो पेड़ की पांच प्रजातियां होतीं हैं। जिस प्रजाति का क्रिकेट बल्ला तैयार किया जाता है उसे ‘सेलिक्स अल्बा ‘केरुलिया’ कहा जाता है ये विलो पेड़ का साइंटिफिक नाम भी है। विलो पेड़ ठंडे जगहों पर ही पाए जातें हैं।


कश्मीर से विलो के पेड़ बैट बनाने के लिए पूरे भारत में सप्लाई किया जाता है। नसीर अली आगे बतातें हैं, ”एक पेड़ से लगभग 100 से लेकर 200 तक बैट निकल जाते हैं बाकी पेड़ जितना मोटा होता है उस हिसाब से बैट भी निकलता है।” कश्मीर की जलवायु भी विलो पेड़ को प्रभावित करती है, वहां की जलवायु के कारण इंग्लैंड के मुकाबले यहां के बैट भारी होते हैं। 

ये भी देखिए : कश्मीरी कालीन उद्योग पर हावी हो रही मशीन निर्मित, ईरानी, चीनी और अफ़गानी कालीनें


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