“शहद में मिलावट के खेल से हमारी, आपकी सेहत तो खराब हो ही रही है, किसानों की आमदनी भी घट रही है। लगातार कम होती कमाई के कारण किसानों का मधुमक्खी पालन से मोह भंग हो रहा है और वे इसे छोड़ने की बात कर रहे हैं, अगर ऐसा होता तो बस शहद उत्पादन ही नहीं, पूरे कृषि क्षेत्र पर ही इसका विपरीत असर पड़ेगा।” ये कहना है सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (CSE) की महानिदेशक सुनीता नारायण का।
सुनीता यह भी कहती हैं कि अगर हमें शुद्ध खाना चाहिए तो किसान के पास जाना होगा। कंपनियों के पास जाएंगे तो वही होगा जो हमारी रिपोर्ट में निकलकर सामने आया है।
सीएसई ने दो दिसंबर 2020 को एक रिपोर्ट जारी किया है जिसके अनुसार देश में बिकने वाली बंड़ी कंपनियों के शहद में शुगर युक्त सिरप मिलाया जा रहा है। 13 में 10 कंपनियों के शहद टेस्ट में फेल पाये गये।
यह पूरी रिपोर्ट सुनीता नारायण और उनकी टीम ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट को तैयार करने में किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा? यह रिपोर्ट हमारे-आपके लिए क्यों जरूरी है और इसका क्या असर पड़ेगा? इन्हीं सब मुद्दों पर गांव कनेक्शन के संस्थापक और देश के सबसे चहेते स्टोरीटेलर नीलेश मिसरा ने सुनीता नारायण से अपने बेहद खास और चर्चित शो ‘दी स्लो कैफे’ में बात की।
पूरी बातचीत का वीडियो आप खबर की शुरुआत में ही देख सकते हैं। शो में पूछे गये सवाल और उनके जवाब आप यहां पढ़िये-
नई रिपोर्ट में क्या है और ये क्यों जरूरी है?
सुनीता नारायण: हमारा खाना, पानी तो दूषित है ही। हमारे घरों से निकली गंदगी नदी में बहाई जा रही। हम नदी को लेकर रोते जरूर हैं, उसकी बातें भी करते हैं लेकिन नदियों की स्थिति को हम देख ही रहे हैं। गोमती और यमुना की स्थिति जैसे पहले थी, जैसे अब है, दोनों में जमीन आसमान का फर्क है। हमारी कोशिश रहती है कि कुछ न कुछ समाज के लिए किया जाये। कुछ बदलाव लाये जाएं।
कुछ दिनों पहले हमें खबर मिली कि मधुमक्खी पालन करने वाले किसानों की हालत बहुत खराब है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा सहित कई जगहों से हमें ऐसी रिपोर्ट मिली। इन जगहों पर सरसों की खेती ज्यादा होती है जिस कारण मधुमक्खी पालन भी इन क्षेत्रों में ज्यादा होता है। कोविड-19 के समय जब सब अपनी सेहत को लेकर फिक्रमंद हैं और अपनी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए शहद का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं तो जाहिर सी बात है कि शहद की खपत बढ़ी। और दूसरी और किसान थे, जिन्हें इसका लाभ मिल ही नहीं रहा था। तो हम इसे लेकर चिंतित थे कि आखिर हो क्या रहा है।
जब हमने लोगों से बात करनी शुरू की तो एक दम साफ तो नहीं, लेकिन लोगों ने बताना शुरू किया कि शहद में चीनी मिला देते हैं, बाहर से मंगाई सिरप मिलाई जा रही है। हम तो इसे अफवाह ही मान रहे थे, लेकिन हमने इस पर काम शुरू कर दिया। मेरी पूरी टीम ने कड़ी मेहनत की। जांच के लिए बाजार से पहले हमने 8 ब्रांड के शहद खरीदे फिर इसे बढ़ाकर 13 कर दिया। हमारे लैब में इतने साधन नहीं थे जिससे हम इनकी जांच कर सकें।
इसके बाद जब हमने पता किया तो पता चला कि एनडीडीबी (राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड) गुजराज की लैब बहुत अच्छी है और इसे सरकार ने हनी टेस्टिंग के लिए स्पेशल बनवाया है। हमने उन्हें सैंपल भेजा। उनकी टेस्ट रिपोर्ट में जो आया उसके अनुसार तो सब ठीक था। कोई मिलावट नहीं थी। टेस्ट के मानकों में सब पास हो गये। कुछ छोटे ब्रांड थे जिनमें मिलावट की बात सामने आई।
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उस समय जब हमारी खोजबीन चल रही थी, तब हमें ऐसा लगा कि कहीं न कहीं सरकार जानती है कि दाल में कुछ काला है। जैसा कि मेरे साथियों ने कहा, सरकार ही हमारे लिए मुखबिर बनी। एफएसएसएआई ने ही बताया कि मिलावट के लिए तीन सिरप का आयात भारत में हो रहा है। फिर हमने सोचा कि अब तो आयात-निर्यात का डेटा भी मिल जाना चाहिए।
तीनों सिरप का नाम हमें आयात-निर्यात के आंकड़ों में मिला ही नहीं। हमारा काम फिर अटक गया। फिर हमने चीन की ई-कॉर्मस कंपनियों जैसे अलीबाबा को जब खंगाला तो वहां बड़े धड़ल्ले से एक दम खुलेआम कंपनियां कह रही हैं कि आप हमारे इस सिरप को शहद में मिलाइये, यह जांच के हर मानकों को पार कर जायेगा। फिर वहां से हमें दूसरा क्लू मिला कि वे तो कह रहे हैं यह फ्रक्टोस सिरप है। हमने फिर डेटाबेस चेक किया। अब जब चेक किया तब पता चला कि चीन से फ्रक्टोस सिरप का आयात हो रहा है, और जो कंपनियां भारत को ये सिरप एक्सपोर्ट कर रही हैं, वहीं कंपनियां अलीबाबा की साइट पर यही सिरप बेच रही हैं और कह भी रही हैं कि हमारे पास ऐसा सिरप है जो शहद मिलाने के बाद भी पकड़ में नहीं आयेगा।
फिर भी हमें लगा कि अगर हम ऐसे ही लोगों को बताएंगे तो लोगों को विश्वास नहीं होगा, और घेरे में बड़ी कंपनियां आ रही थीं, तो हमें और फैक्ट्स की जरूरत थी। तो मेरी एक साथी ने फेक ई-मेल आईडी बनाकर चीन की एक कंपनी से संपर्क किया और ऐसे सिरप की मांग की जो शहद में मिलाने के बाद भी हर मानकों को पास कर जाये। उधर से बड़ी जल्दी जवाब आ गया और बताया गया कि हमारे पास तो ऐसा सिरप है कि हम गारंटी लेते हैं कि इसे शहद में 80 फीसदी में मिला देंगे तो ये पकड़ में नहीं आयेगा और जांच के सारे मानकों को पास कर जायेगा।
इसके बाद उन्होंने हमें सैंपल भी भेजा लेकिन हम उसे ले नहीं पाएं क्योंकि हमारे पास फूड लाइसेंस नहीं था। फिर दूसरे कंपनी ने भेजा। चीइनीज कंपनियों को भारत के बारे में इतनी समझ है जितनी हमें आपको नहीं है। उस कंपनी ने हमसे कहा कि देखिये आजकल भारत-चीन का विवाद चल रहा है, तो हम आपको हांगकांग के रास्ते भेजेंगे।
कंपनी ने पेंट पिगमेंट के रूप में तीन बॉटल सिरप सैंपल में हमें भेज भी दिया। इसके बाद हमें यह भी पता चला कि यह तो इंडिया में भी हो रहा है क्योंकि जब हमने मधुमक्खी पलकों से बात की थी उन्होंने बताया था कि चाइनीज कंपनी से लोग शूटबूट पहनकर आये थे। शूटकेस लेकर आये और उन्होंने यहां कंपनी बना ली है, और बार-बार नाम आ रहा था उत्तराखंड के जसपुर का। हमने इंपोर्ट-एक्सपोर्ट डेटा में भी जसपुर का नाम देखा था।
मेरे साथियों ने फिर फोन मिलाया। जसपुर में बात की और वहां पहुंच गये। वहां हमें इसका कोड पता चला ‘ऑल पास सिरप’, जब आप खरीदने जाइये तो कहिये ऑल पास सिरप। अब हमारे पास बोतले थीं। इसके बाद हमने शहद की बोतल में 50 और 75 प्रतिशत सिरप मिलाया। इतनी मिलावट के बाद भी लैब ने उसे बतौर शहद पास कर दिया। इसके बाद हमने जांच के लिए सैंपल जर्मनी भेजा। तब तक पता चला कि भारत ने एनएमआर टेस्ट को जरूरी कर दिया है तो हमें लगा कि क्यों न ये जांच हम भी कराएं। वहां की जांच में हमें पता चला कि डाबर, झंडू, पतंजलि, वैद्यनाथ, सारे फेल हो गये।
इस स्तर पर अगर मिलावट हो रही है तो सोचिए हमारे स्वास्थ्य से कितना बड़ा खिलवाड़ हो रहा।
ये जांच जरूरी क्यों है? पहला कि हमारा स्वास्थ्य, दूसरा किसान जो मधुमक्खी पालता है। अगर उसकी आमदनी नहीं होगी तो वह यह मधुमक्खी पालना ही बंद कर देगा, और अगर किसानों ने मधुमक्खी पालना बंद कर दिया तो पूरे कृषि क्षेत्र पर इसका असर पड़ेगा क्योंकि खेती में मधुमक्खयों की महती भूमिका होती है। ऐसे में मैं तो यही अपील करूंगी कि आम लोग सामने आएं और जोर लगाएं कि मिलावट का यह काम बंद होना चाहिए।
खराब शहद खाने का असर हमारी सेहत पर क्या पड़ेगा?
सुनीता नारायण: शहद भी चीनी ही है। हम सब जानते हैं। कैलोरी लेवल भी लगभग समान है, लेकिन शहद के फायदे बहुत हैं। प्राकृतिक मधु (शहद) एंटीऑक्सीडेंट है। समझने वाली बात यह भी है कि मधुमक्खी शहद की निर्माता है। यह कोई फैक्ट्री नहीं बना सकती। हमारे लिए ऐसे समय ऐसा खुलासा बहुत मुश्किल था। पूरी दुनिया का ध्यान अलग-अलग जगहों पर है। लेकिन हमने यह इसलिए किया क्योंकि लोग इस समय शहद ज्यादा खा रहे हैं। कोविड के कारण लोगों को डर है और उन्हें लग रहा है कि शहद से उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी, लेकिल लोग शहद नहीं चीनी खा रहे हैं। इससे मोटापा बढ़ेगा।
अब कोविड का कनेक्शन समझ लीजिये। बीबीसी की रिपोर्ट कहती है कि जो लोग मोटे होते हैं, ओववेट हैं, उनके ऊपर कोविड का अटैक ज्यादा होता है। इस समय हम ज्यादा शहद ले रहे हैं, उस शहद से हम मोटे होंगे और हमारे ऊपर कोविड का खतरा बढ़ेगा। इसीलिए हमने इस समय यह खुलासा किया।
चाइना से जो सिरप आ रहा है, क्या यह बस चीनी है या कुछ और भी?
सुनीता नारायण: इस पर कुछ कहना अभी मुश्किल है क्योंकि लैब की अपनी लिमिट है। अगर हमारा खाना ऐसा हो जायेगा कि हमें लैब से पता करना पड़ेगा तो हम खराब खाना ही खाएं, क्योंकि लैब की लिमिट होती है और मिलावट का काम करने वाले बहुत आगे हैं। खाने का तेल हो शहद, हमें इमसें हो रही मिलावट को रोकने की मांग करनी पड़ेगी। हमें किसान और खाने के बीच का जो संबंध है उसे जोड़ना पड़ेगा। जब हमें खाना कंपनी देंगी तब हम उन्हें नहीं रोक सकते। यह एक बड़ा सवाल है जिसके अंदर किसानों की आमदनी और जो हम खाना खाते हैं, उसके अंदर क्या कनेक्शन होना चाहिए, इस पर चर्चा होनी चाहिए।
शहद पर जो चर्चा हो रही है, इसे और आगे कैसे ले जाया जा सकता है?
इस पर दो-तीन स्तर पर काम होने हैं। सरकार के स्तर से कुछ न कुछ होना चाहिए। हमने सरकार से तीन मांगें भी की हैं। पहला चीन से आयात बंद हो, दूसरा एफएफएसआई से कहें टेस्ट जोरों से हो। बहुत सी कंपनियों के शहद का टेस्ट होना अभी बाकी है। सरकार के पास गुजरात में लैब है, वहां टेस्ट हो सकता है। मुंबई एनएमआर (न्यूक्लियर मैग्नेटिक रेजोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी) मशीन है वहां भी टेस्ट कर सकते हैं। सरकार को एक प्रोटोकाल बनाकर टेस्ट करने चाहिए। इसके बाद सरकार कंपनियों का नाम लेकर लोगों को सही-गलत बताए।