भारत के अधिकांश प्रान्तों में छींद का पेड़ पाया जाता है। खेत खलिहानों की बाड़ और सड़कों के किनारे इसे अक्सर उगता हुआ देखा जा सकता है। इसकी पत्तियां नुकीली, कंटीली और कठोर सी होती है।
ऐसा माना जाता है कि छींद के पेड़ों की प्रचुरता होने की वजह से ही मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा शहर का नाम रखा गया है। इसके परिपक्व पेड़ पर गुच्छों में लदे नारंगी फल लगते हैं जो खजूर के जैसे स्वाद लिए होते हैं। इसके बीज भी खजूर के बीजों की तरह दिखते हैं।
गले के छालों में राहत दिलाने के लिए इसके फल बेहद असरदार होते हैं। जीभ और गले के आंतरिक घावों और अल्सर में ये काफी असरकारक होते हैं।
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छींद के बीजों का चूर्ण पाचक होता है और इसके पके हुए फल शरीर में ताकत और रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। छींद का कच्चा फल कसैला होने के कारण गले में खराश लाता है।
जब भी कभी आप गाँव देहात की ओर जाएं तो देसी फलों को जरूर खाएं। देसी फलों के बारे में मेरा मानना है कि इन्हें कभी भी हम लोगों ने महत्व नहीं दिया। इन्हें डायनिंग टेबल पाए सजाने में लोग संकोच करते हैं जब कि विदेशी फलों की तुलना में ये ज्यादा पोषक होते हैं।
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