अनूपपुर, मध्य प्रदेश। लोक गायक गया प्रसाद केवट अपनी पत्नी और तीन साल के पोते के साथ बेलगाम गांव में जंगल के किनारे अपने घर में गहरी नींद में सो रहे थे। अचानक से आधी रात को हाथियों का एक झुंड इस इलाके से गुजरा और पूरे परिवार को कुचल कर चला गया। यह 25 अगस्त की घटना है।
तीन साल के बच्चे की मां अपने बेटे की मौत से अभी भी बेसुध हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “मुझे इलाके में हाथियों की आवाजाही के बारे में पता नहीं था। अगर पता होता तो मैं अपने बेटे को वहां नहीं छोड़ती। ” घटना स्थल से उनका घर लगभग तीन किलोमीटर दूर है।
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मध्य प्रदेश के अनूपपुर जिले में केवट परिवार के तीन सदस्यों की मौत से स्थानीय गांवों में दहशत का माहौल है।
केवट के पड़ोसी सुग्रीव कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, “वह सब बड़ा डरावना था। सुबह जब मैं वहां से गुजरा तो उनका घर टूटा पड़ा था। उन्हें देखकर मेरा दिल दहल गया। तीनों में से कोई नहीं बचा था।” उन्होंने आगे कहा, “अब तो दिन के उजाले में भी घर से निकलने में डर लग रहा है। हम खेतों में काम करने भी नहीं जा पा रहे हैं।”
मध्य प्रदेश के जंगलों में हाथी कम ही पाए जाते हैं। गांव वाले भी जंगलों में हाथियों को देखने के आदी नहीं हैं। लेकिन, पिछले कुछ सालों में छत्तीसगढ़ से सीमा पार कर हाथी मध्य प्रदेश के जंगलों में प्रवेश कर रहे हैं।
एक जनवरी, 2020 से लेकर अब तक मध्य प्रदेश में हाथी-मानव मुठभेड़ों में दस लोगों की जान गई है।
मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक, रजनीश सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “पिछले साल दो अप्रैल को अकेले अनूपपुर में हाथी के हमले में तीन लोगों की जान चली गई थी। दस दिन बाद,12 अप्रैल को, उत्तरी सिवनी में एक और व्यक्ति को हाथियों ने मार डाला था।”
उन्होंने कहा, ‘इस साल, अब तक हाथियों के मुठभेड़ में छह लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से तीन अनूपपुर से थे और तीन सीधी जिले से।” उन्होंने आगे बताया कि कोई हाथी नहीं मारा गया है।
दूसरे राज्य की सीमाओं में घुस रहे हैं हाथी
वन अधिकारियों और स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, मध्य प्रदेश में हाथियों का प्रवेश एक हालिया घटना है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा के बीच कान्हा टाइगर रिजर्व, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व और संजय नेशनल पार्क स्थित हैं।
मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक ने कहा, “हाथी, 1980 के दशक में ओडिशा और झारखंड से छत्तीसगढ़ की ओर पलायन करने लगे थे। और अब छत्तीसगढ़ से उन्होंने मध्य प्रदेश में प्रवेश करना शुरू कर दिया है।”
रजनीश सिंह ने आगे बताया, “2018 में छत्तीसगढ़ से चला चालीस हाथियों का एक झुंड मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ के जंगलों में भटक गया था। उसके बाद यह झुंड वापस नहीं गया और वहीं रुक गया। ”
उन्होंने कहा, “हाथियों को रहने के लिए पांच हजार वर्ग किलोमीटर तक के जंगल की जरूरत होती है। वे रोजाना पच्चीस किलोमीटर का रास्ता तय करते हैं।” सिंह समझाते हुए कहते हैं, “नतीजतन, वे कई बार बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के पास रिहायशी इलाकों में घुस आते हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान सात सौ वर्ग किलोमीटर में फैला है।”
भोपाल में वन्यजीव विशेषज्ञ अजय दुबे के अनुसार, बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में मौजूद बांस, फसल और पानी हाथियों के लिए एक प्राकृतिक आकर्षण है। जिस वजह से वे इस इलाके की ओर रुख करते हैं। उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया, “मध्य प्रदेश में वनवासियों के लिए हाथियों की मौजूदगी असामान्य है। वह इसके आदी नहीं हैं। इसीलिए यहां हाथी-मानव संघर्ष बढ़ रहा है।”
खनन के चलते छत्तीसगढ़ से मध्य प्रदेश की ओर आ रहे हैं हाथी
राज्य की सीमा के दूसरी ओर चल रही गतिविधियां मध्य प्रदेश में हाथियों की आवाजाही को बढ़ावा दे रही हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार के खनिज संसाधन विभाग के अनुसार, राज्य में लगभग 56 लाख टन कोयले का भंडार है, जो भारत में कुल कोयला भंडार का 16 प्रतिशत है।
रायगढ़, सरगुजा, कोरिया और कोरबा जिलों सहित उत्तरी छत्तीसगढ़ में स्थित बारह कोयला क्षेत्रों में लगभग 44,483 मिलियन टन कोयले का उत्पादन होता है।
राज्य का लौह अयस्क भंडार कुल 4,031 मिलियन टन है, जो भारत के कुल लौह अयस्क भंडार का लगभग 19 प्रतिशत है। दक्षिण छत्तीसगढ़ में कोंडागाव, नारायणपुर, जगदलपुर और दंतेवाड़ा लौह अयस्क खनन के प्रमुख स्थान हैं।
इस क्षेत्र में जहां खनिजों का खजाना है, वहीं दूसरी तरफ यह हाथियों, तेंदुओं और शेरों (जानवरों की 350 से अधिक प्रजातियों) के लिए एक प्राकृतिक आवास भी है।
राज्य के वन विभाग के अनुसार, छत्तीसगढ़ के उत्तरी राज्य में कम से कम 4,900 हेक्टेयर जंगल को लौह अयस्क खनन के लिए डायवर्ट किया गया है। इसकी वजह से हाथियों के आवाजाही के रास्तें काफी हद तक प्रभावित हुए हैं।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने गांव कनेक्शन को बताया, ” हसदेव अरण्य क्षेत्र में आमतौर पर हाथी आजादी से घूमते थे। लेकिन जब से खनन शुरू हुआ है, जंगल तहस-नहस हो गए हैं। “
उन्होंने कहा कि जिस क्षेत्र में हाथी पारंपरिक रूप से घूमते थे, वह सिकुड़ गया है। वह आगे कहते हैं, “यहां पर्यावरण खतरे में है क्योंकि सरकार इस जमीन की समृद्ध जैव विविधता की बजाय खनिजों के खनन में ज्यादा व्यस्त है, क्योंकि इससे राज्य को फायदा होता है।”
2019 में, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में लेमरू हाथी रिजर्व की स्थापना करने की घोषणा की थी। सूरजपुर, कोरबा और सरगुजा में पड़ने वाले इस हाथी अभ्यारण्य के लिए 400 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र प्रस्तावित किया गया था।
लेकिन अदानी समूह हसदेव अरण्य क्षेत्र में एक बड़ी कोयला खदान संचालित करता है। यहां खनन किए गए कोयले की आपूर्ति राजस्थान सरकार के राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड को की जाती है। 2020 में प्रकाशित अडानी एंड द एलिफेंट्स ऑफ द हसदेव अरण्य फॉरेस्ट नामक अडानीवॉच रिपोर्ट ने संकेत दिया था कि हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन कार्य शुरू करने के दौरान एक लाख से अधिक पेड़ काटे गए थे।
छत्तीसगढ़ जल संसाधन परिषद की प्रमुख और एक कार्यकर्ता मीतू गुप्ता ने गांव कनेक्शन को बताया, “ऐसी कोयला खदानें हसदेव अरण्य क्षेत्र में रहने वाले इन हाथियों को निचले दर्जे में रखती हैं और उन्हें दूसरी जगहों पर जाने के लिए मजबूर करती हैं।”
वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया ने भी कुछ ऐसी ही चिंता जाहिर की है। यह एक प्रमुख भारतीय प्रकृति संरक्षण संगठन है। राइट ऑफ पैसेज, एलीफेंट कॉरिडोर ऑफ इंडिया शीर्षक वाली उनकी इस रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर जगह प्रकृति से छेड़-छाड़ कर, जंगलों को तहस-नहस किया गया है। हाथियों और इंसानों के बीच होने वाली मुठभेड़ की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। जिसकी वजह से देश में हर साल लगभग 400-450 इंसानों और 100 हाथियों की मौत हो जाती है।
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बढ़ता मानव-हाथी संघर्ष
छत्तीसगढ़ में, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, साल 2018 से लेकर 2020 के बीच 204 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा जबकि 45 हाथियों ने अपनी जान गंवाई। कुल 66,582 फसलों, 5,047 घरों और 3,151 संपत्ति के नुकसान के मामले दर्ज किए गए।
छत्तीसगढ़ वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, इस महीने 19 सितंबर तक हाथियों ने 11 लोगों की जान ले ली है।
पड़ोसी देश मध्य प्रदेश में भी यह टकराव बढ़ता ही जा रहा है।
मध्य प्रदेश के कोतमा निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस विधायक सुनील सर्राफ ने गांव कनेक्शन को बताया, ” 2018 से मेरे निर्वाचन क्षेत्र में तीन घटनाएं हुईं हैं जहां हाथियों ने रिहायशी इलाकों में घुसकर फसलों और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है।” उन्होंने कहा, ” यह वन विभाग, उप-मंडल मजिस्ट्रेट और स्थानीय प्रशासन की विफलता है।”
वन्यजीव विशेषज्ञ अजय दुबे के अनुसार, “विभिन्न राज्यों के वन अधिकारियों के बीच कोई समन्वय तंत्र नहीं है और वे अपने राज्य की सीमाओं में हाथियों की आवाजाही की जांच नहीं करते हैं।
हाल ही में बेलगाम गांव में जहां मानव-हाथी मुठभेड़ के एक मामले में तीन ग्रामीणों की मौत हो गई थी, वहां कोई महत्वपूर्ण निगरानी नहीं थी।
अनूपपुर के जंगलों और उसके आसपास रहने वाले लोगों को अब अपनी जान का डर सता रहा है। वे शिकायत करते हैं कि हाल की घटना वन अधिकारियों और ग्राम पंचायत सदस्यों के बीच तालमेल और संवाद करने में विफलता का कारण थी।
बेलगाम के सरपंच राजभान सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, “मुझे घटना की रात को हाथियों की हरकत के बारे में जानकारी दी गई थी। गांव के कुछ लोगों को फोन से इसकी सूचना भी दी गई।” हालांकि, अधिकांश ग्रामीणों का यही कहना है कि उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं सुना और न ही उन्हें इसकी कोई जानकारी थी।
अनुवाद : संघप्रिया मौर्या