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कृषि वैज्ञानिकों से जानिए बदलते मौसम में कैसे बचा सकते हैं गेहूं की फसल

अगर लगातार ऐसा ही मौसम रहा तो गेहूं उत्पादन पर भी असर पड़ सकता है। इसलिए किसान अभी से कृषि वैज्ञानिकों की सलाह मानकर नुकसान से बच सकते हैं।
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बढ़ते तापमान और तेज हवाओं ने गेहूं किसानों की परेशानी बढ़ा दी है, ऐसे में किसान क्या करें, जिससे उत्पादन भी बढ़िया मिले और लागत भी ज्यादा न बढ़ जाए। भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के कृषि विशेषज्ञों की सलाह मानकर किसान नुकसान से बच सकते हैं।

मौसम में बदलाव और तेज हवाओं के बारे में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल, के निदेशक डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह गाँव कनेक्शन को बताते हैं, “अभी जो तापमान में थोड़ा बहुत बदलाव हुआ है, ये बहुत ज्यादा चिंता का विषय नहीं है। क्योंकि हमारे शोध से ये पता चला है कि दिन के तापमान में एक या दो सेंटीग्रेड की वृद्धि होती है, उसका गेहूं की फसल पर कोई असर नहीं होता है, जितना कि रात के तापमान के बढ़ने से होता है। अभी दिन में थोड़ी गर्मी महसूस हो रही है, लेकिन रात अभी भी ठीक ही है, जिससे दाने के भरने में कोई समस्या नहीं आएगी।”

वो आगे कहते हैं, “दूसरी बात ये है कि भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान समय-समय पर किसानों को एडवायजरी भी जारी करता रहता है, जिसमें यहां के वैज्ञानिक किसानों को बताते रहते हैं, अगर ऐसी कुछ घटना घटती है, जैसे तापमान का बढ़ना या फिर बारिश के होने पर फसलों को बचाने के लिए किसानों को क्या कार्य करना है, वो सुझाव देते रहते हैं।”

हवाओं के चलने और तापमान के बढ़ने से खेत की मिट्टी सूखने लगती है, जिससे दाने बनने की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है। सही समय पर सिंचाई के बारे में भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल के प्रधान वैज्ञानिक (कृषि प्रसार) डॉ. अनुज कुमार बताते हैं, “मैं किसान भाईयों को ये बताना चाहूंगा एक जो आम अनुशंसा है, सिंचाई को लेकर वो 21 से 45 दिन की होती है, जोकि दोमट मिट्टी वाले क्षेत्र के लिए होती है। दूसरी कई जगह बलुई मिट्टी होती है, कहीं पर भारी मृदा भी होती है। ऐसे में 45 दिन के बाद हर 20 दिन के बाद सिंचाई करते रहें, क्योंकि अभी हवा चल रही है और तापमान भी ज्यादा है तो मृदा से नमी जाने की संभावना बढ़ जाती है।”

इस समय किसानों निश्चित समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए, मिट्टी सूखनी चाहिए, क्योंकि अगर बहुत ज्यादा मिट्टी सूखती है और फिर आप देर से पानी देते हैं और मार्च में जब पछुआ हवा चलती है, तब नुकसान हो जाता है।

कृषि मंत्रालय के अनुसार इस रबी सत्र में 325.35 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हुई है, जबकि पिछले सत्र में 313.95 लाख हेक्टेयर गेहूं की बुवाई हुई थी। इस बार मध्य प्रदेश में (10.32 लाख हेक्टेयर), बिहार (2.33 लाख हेक्टेयर), महाराष्ट्र (1.59 लाख हेक्टेयर), राजस्थान (2.87 लाख हेक्टेयर) और उत्तर प्रदेश (2.1 लाख हेक्टेयर) में गेहूं की बुवाई हुई है।

वो आगे कहते हैं, “किसान भाईयों को ध्यान देना चाहिए जब हवा चल रही होती है, उसका प्रभाव धीरे-धीरे कम होता है। तो आप अगर सिंचाई भी करना चाहते हैं तो दोपहर के बाद ही करें। अगर खेत में स्प्रिंकलर की सुविधा हो सकती है, इससे फसल को काफी सुरक्षा मिल जाता है। अगर रात का तापमान अधिक होता है, तभी नुकसान होगा। इसलिए हल्की सिंचाई करते रहें, मिट्टी सूखने न पाए। किसान भाइयों को घबराने की जरूरत नहीं है। बिना कुछ जाने दवाईयों का स्प्रे नहीं करना है। अगर आपने सिंचाई कर दी है तो घबराने की जरूरत नहीं है, इस समय जमीन में उंगली धंसा कर देखिए, अगर एक-दो सेमी के बाद भी नमी है तो आपको कहीं भी परेशान होने की जरूरत नहीं है।”

अगर तापमान बढ़ता ही जाता है, तब किसान कुछ उपाय कर सकते हैं। डॉ. सिंह आगे कहते हैं, “अगर किसान को ऐसा लगता है कि अब तो नुकसान हो ही जाएगा, ऐसे में हम किसानों को सुझाव देते हैं कि पोटेशियम क्लोराइड का घोल बनाकर अगर हम छिड़काव करते हैं तो हम तापमान रोधी क्षमता डाल सकते हैं। लेकिन एक बात हमें जरूर ध्यान रखनी चाहिए कि जो भी जाड़े (रबी) की फसल है, उसे एक निश्चित तापमान मिलता रहना चाहिए।”

कई बार किसान बुवाई के समय सही किस्मों का भी चयन नहीं करते हैं। “गेहूं की तीन अवस्थाओं में बुवाई होती है, एक तो अक्टूबर के प्रथम सप्ताह से लेकर 20 नवंबर तक होती है, जिसे हम समय से बुवाई मानते हैं। दूसरी अवस्था जिसमें हम 25 नवंबर से 25 दिसम्बर तक बुवाई करते हैं और तीसरी अवस्था में 25 दिसम्बर से जनवरी तक बुवाई करते हैं, इसमें वो क्षेत्र आते हैं जहां पर आलू खुदाई के बाद या फिर कई जगह पर गन्ने की कटाई के बाद गेहूं की बुवाई होती है। इस स्थिति में किस्मों का चयन बहुत जरूरी हो जाता है, क्योंकि अगर हम देर से बुवाई करने वाली किस्मों की बात करेंगे तो उनमें एक तापमान रोधी क्षमता पहले से होती है। परेशानी तब होती है, जब हम सामान्य अवधि में बोई जाने वाली किस्मों को देर से बोते हैं तब बहुत दिक्कत होगी, इससे बुवाई के समय किस्मों का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है, “डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने आगे बताया।

अभी किसानों को लगता है कि फसल पर रतुआ जैसी बीमारी हो सकती हैं, जबकि तापमान बढ़ने से कुछ नुकसान है तो फायदा भी है, तापमान बढ़ने से सारी बीमारियां चली जाती हैं।

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