तालाबों पर अवैध कब्ज़े की गंभीरता को नहीं समझ रहे आम लोग

Pragya BhartiPragya Bharti   13 July 2019 8:18 AM GMT

गोंडा (उत्तर प्रदेश)। "आम लोग रोज़ ज़मीन से पानी निकालते हैं पर वो कभी नहीं सोचते कि ये पानी कहां से आ रहा है, कल को उन्हें मिलेगा या नहीं। उनके बगल में तालाब है पर उन्हें नहीं पता कि ये तालाब उनके लिए कितना ज़रूरी है। ज़मीन के नीचे जो पानी है वो तालाब ही नीचे पहुंचा रहा है, ये बात वो नहीं सोचते हैं, "गोंडा के समाजसेवी और भूजल बचाने के लिए प्रयासरत अभिषेक दुबे कहते हैं।

साल 2019 में अभी तक उत्तर प्रदेश में सामान्य से 55 फीसदी कम बारिश हुई है। पूरे देश में पूर्व मानसून (मार्च से मई के मध्य) सामान्य से 23 प्रतिशत कम रहा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड वेबसाइट की एक खबर के अनुसार, इस साल सूखे की प्राथमिक चेतावनी कहती है कि देश में 40 प्रतिशत से अधिक जगहों पर सूखा पड़ सकता है। ये चेतावनी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, गांधीनगर द्वारा जारी की गई है। बारिश की कमी और गिरते भूजल स्तर के चलते पानी की कमी लगातार बढ़ती जा रही है।

गोंडा में लगभग 30 तालाब थे लेकिन अब धीरे-धीरे कर के सब पाट दिए गए हैं। उन पर अवैध कब्ज़ा हो गया है। इन तालाबों की खासियत ये थी कि ये सभी आपस में जुड़े हुए थे। इस कारण इनमें हमेशा पानी भरा रहता था, ये तालाब कभी सूखते नहीं थे।


अभिषेक बताते हैं, "लगभग 200 साल पहले जब राजा-महाराजाओं का शासन था तब यहां तालाब खोदे गए थे। गोंडा में बनाए गए सभी तालाबों को एक-दूसरे से जोड़ा गया था। इनके रख-रखाव और देखभाल की ज़िम्मेदारी तालाबों के आस-पास रहने वाले आम लोगों की थी। वे तालाबों की सफाई करते थे, वे ही श्रमदान कर के बंधों का निर्माण करते थे। आज़ादी के बाद इन तालाबों का स्वामित्व सरकार के पास चला गया। जिला प्रशासन के अंतर्गत इनकी देखरेख होनी थी तो लोगों ने माना कि अब तालाबों की ज़िम्मेदारी प्रशासन की ही है, उनकी नहीं है।

समय के साथ गांवों से शहरों की ओर पलायन होने लगा, लोग शहरों में आकर अपने घर बनाने लगे। उन्होंने सबसे पहले जो तालाब एक-दूसरे के साथ जुड़े (interlink) थे उन्हें पाटना शुरू किया। उन पर अपने घर बनाए, फिर वो तालाबों के किनारे बसने लगे। इसके बाद उन्होंने तालाबों को पाटना शुरू किया, इस तरह ये कब्ज़े का सिलसिला शुरू हुआ।

पिछले दो-तीन दशकों में ये अवैध कब्ज़ा तेज़ गति से बढ़ा है। बिल्डर्स ने बड़ी-बड़ी ज़मीनें खरीदकर, उन पर प्लॉट बनाकर बेचना शुरू किया तब से ये सिलसिला बढ़ता गया है।

कृषि एवं कल्याण मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, data.gov.in एक रिपोर्ट पेश करती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2015 से 16 के बीच उत्तर प्रदेश के 50 से भी अधिक जिले सूखे की चपेट में थे। इसमें गोंडा और आस-पास के जिले, बलरामपुर, बस्ती, गोरखपुर भी शामिल हैं।


सूखा पड़ने और फसल बर्बाद होने के कारण किसानों की आत्महत्या लगातार बढ़ी है। एनसीआरबी की साल 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक, 1995 से 2005 के दो दशकों में दो लाख 96 हज़ार 438 किसानों ने आत्महत्या की।

तालाबों पर अवैध कब्ज़े को लेकर लोग सजग नहीं हैं। उन्हें इस मसले की गंभीरता की समझ ज़रा सी भी नहीं है। लोग जिला प्रशासन तक शिकायत नहीं करते। अभिषेक बताते हैं कि जो इन तालाबों पर कब्ज़ा कर रहे हैं वो यहां के स्थानीय नेता हैं, उनके करीबी लोग हैं, माफिया हैं। जिला प्रशासन इन माफियाओं के खिलाफ नहीं जाना चाहता इसलिए वो आंख मूंद कर बैठा रहता है।

"दूसरी बात ये है कि जो प्रशासनिक लोग हैं उनके अंदर इतनी इच्छाशक्ति भी नहीं है कि वो तालाबों को बचाएं। उन्हें चिंता नहीं है कि तालाब खत्म होंगे तो भूजल संकट बढ़ेगा या किस तरह की परेशानियां लोगों को झेलनी पड़ेंगी। वो बस अपनी नौकरियां बचा रहे हैं और इस तरह से ये कब्ज़ा चलता जा रहा है। लोगों को लगता है कि सरकार और जिला प्रशासन की ज़िम्मेदारी है पर वो भी आम लोगों को समाझाने का प्रयास नहीं करते, बस हाथ पर हाथ धरे बैठे हुए हैं, "अभिषेक आगे कहते हैं।


बलरामपुर जिले के उतरौला कस्बे में भी तालाबों की यही हालत है। तालाबों के मुहाने तक रिहायशी इलाके पहुंच गए हैं। कई घर तो तालाबों को पाट कर ही बनाए गए हैं। तालाबों को पाटने और भूजल कम होने से गोंडा और आसपास के जिलों में लोगों के सामने पानी की दिक्कत सामने आना शुरू हो गई है। पिछले साल गर्मियों में गोंडा शहर में सैकड़ों घरों में पानी आना बंद हो गया था, हैंडपम्प में तक पानी आना बंद हो गया था।

अभिषेक बताते हैं, "बहुत सारे घरों में मोटरों को निकाल देना पड़ा क्योंकि वो ज़मीन से पानी को नहीं खींच पा रही थीं। ज़्यादा पावर वाली मोटर्स लगानी पड़ीं। इस वजह से भूमिगत जल का स्तर गिरता जा रहा है। पहले लगभग 30-40 फीट बोरिंग कर के हैंडपम्प में पानी मिल जाता था, आज स्थिति ये है कि 200 फीट बोरिंग करने पर भी हमको पानी नहीं मिलता है। अगर मिलता भी है तो वो पीला पानी होता है, यानि पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज़्यादा होती है।

अभिषेक कहते हैं, पानी का दोहन तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। जनसंख्या बढ़ रही है, शहरीकरण बढ़ रहा है तो इस स्थिति को देखते हुए मैं कह सकता हूं कि हो सकता है कि आने वाले पांच से दस सालों में गोंडा में ज़मीन के नीचे पानी बचे ही नहीं। नगरपालिका और प्रशासन को नहर से पानी लाकर शहर में आपूर्ति करनी पड़े। इस पानी को साफ कर पाइप के माध्यम से लोगों के घर पहुंचाया जा सकता है पर गोंडा की अधिकांश जनता गांवों में रहती है। यहां पर करीब 1000 से अधिक ग्रामसभाएं हैं। अगर शहरों में किसी तरह पानी पहुंचा भी दिया गया तो गांवों में पानी पहुंचाना बहुत मुश्किल है।

"अधिकतर लोगों का पेशा खेती है और खेती भूमिगत जल पर बहुत अधिक निर्भर करती है। जिस तरह से भूमिगत जल तेज़ी से नीचे गिरता जा रहा है, ये एक बड़ी समस्या है। खाद्यान्न ठप्प होने की कगार पर पहुंच जाएगा, लोगों को पीने का पानी भी नहीं मिलेगा। लोग भूखे, प्यासे मरने को मजबूर होंगे। ये स्थिति बहुत जल्द हमारे सामने होगी। एक दशक से भी कम में ये हमारे सामने मुंह बहाए हुए खड़ी होगी और हम में से कोई भी इसके लिए तैयार नहीं है। कोई इसके लिए विचार भी नहीं कर रहा है," - अभिषेक आगे कहते हैं।

ये भी पढ़ें : सूखे बुंदेलखंड में किसान ने एक गांव में खुदवाए 200 तालाब, लहलहा रही फसल


#video #Dry ponds #ponds 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.