कोरोना से फीकी पड़ी रामपुर के खुरचन की मिठास, मिठाई बनाने वाले 1000 परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट

कोरोना वायरस के चलते हुए लॉकडाउन का प्रभाव जहां बड़े उद्योगों पर पड़ा तो वहीं छोटे व्यापार भी इससे प्रभावित हुए हैं। मध्य प्रदेश के सतना जिले का खुरचन व्यापार भी चौपट होने के कगार पर पहुंच चुका है। व्यापारी भी परेशान हैं।

Sachin Tulsa tripathiSachin Tulsa tripathi   18 July 2020 9:21 AM GMT

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  • हाईवे की दुकानें भी छोड़ गए कारीगर और व्यापारी
  • एक हजार से ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी पर संकट

सतना (मध्यप्रदेश)। "तीन पीढ़ियों से खुरचन का व्यापार कर रहे हैं। बाबा जी के बाद पिता जी और अब हम चला रहे हैं। लॉकडाउन की वजह से व्यापार काफी प्रभावित हुआ है और समस्याएं भी आईं। घर में रहकर टाइम पास करते हैं।" यह बता रहे हैं चंद्रमणि मिश्रा (50) जो खुरचन बनाकर बेचने का काम करते हैं।

मध्य प्रदेश के सतना जिले के रामपुर बाघेलान नगर और इससे जुड़े आसपास के एक दर्जन से ज्यादा गांवों में खुरचन बनता है। दूध और पीसी चीनी को मिलाकर बनने वाली सतना की यह मिठाई पूरे प्रदेश में है। दुकानें हाईवे पर लगती हैं जिस कारण इसकी पहचान देश के दूसरे राज्यों में भी है। लगभग 80 सालों से इस क्षेत्र में खुरचन का व्यापार हो रहा है।

पीढ़ी दर पीढ़ी इस व्यापार से जुड़े 67 साल के गणेश पयासी कहते हैं " लॉकडाउन में तो हम लोगों की हालत इतनी पतली हो गई है कि कुछ पूछिए मत। अब चूंकि यह हम लोगों का बहुत पुराना व्यवसाय है खुरचन का और इससे हजारों लोग जुड़े हैं तो इसे बंद भी नहीं कर सकते। आज हालत यह है कि सब बंद है। दूध वाले तक परेशान हैं। अब आगे क्या होगा प्रभु जाने।"

खुरचन

रामपुर बाघेलान नगर पंचायत है। जनगणना 2011 अनुसार यहां की जनसंख्या 13 हजार 6 सौ 38 है। 15 वार्ड की इस नगर पंचायत में अधिकांश गांव जोड़े गए हैं। इन्ही गांवों में से एक नेमुआ है। इसी गांव के चंद्रमणि मिश्रा बताते हैं, " बाबा स्वर्गीय रामचरण मिश्रा ने खुरचन का काम शुरू किया था। वह दस साल आर्मी की सेवा कर सन 1956 में घर लौट आए थे। तब उनकी उम्र यही कोई 31 साल की रही होगी, यानी कि आज से करीब 80 साल पहले नेमुआ (अब रामपुर बाघेलान नगर पंचायत का वार्ड 15) में खुरचन का व्यापार शुरू हुआ। वर्ष 1987 में उनका स्वर्गवास होगा तो पिता जगमोहन प्रसाद मिश्र ने उनका काम काज संभाल लिया। इसके बाद से गांव के भी कई लोग खुरचन का काम करने लगे। जो अब भी जारी है।"

भले ही लोग खुरचन को रामपुर बाघेलान के नाम से जानते हों लेकिन इसकी असली शुरूआत सतना के ही नागौद नगर से हुई थी। व्यापार से जुड़े लोग बताते हैं कि स्वर्गीय रामचरण मिश्रा फौज से आने कर बाद बैलगाड़ी का काम करते थे। इस सिलसिले में नागौद आना जाना था। तब इनकी भेंट वहाँ के सेठ (नाम नहीं बता पाए) से हुई। जो खुरचन बनाते थे। यहां रामपुर बाघेलान के बस स्टैंड में सेठ दुद्धि के मिठाई की दुकान थी। जिसके लिए रामचरण खुरचन बनाया करते थे। इस तरह से ही रामपुर बाघेलान में खुरचन का व्यापार शुरू हुआ।

इन्हीं चूल्हों पर बनता था खुरचन।

खुरचन का काम आसपास के दर्जनभर गांव में होता है जिसमें विशेष कर नेमुआ, खारी, जमुना, सगौनी, तपा, बैरिहा, बगहाई, कुर्मिहा टोला, सेल्हना, कैडिला और सोनौरा आदि हैं। इन गांव के करीब 1000 हज़ार लोग इस व्यापार में जुड़े हुए हैं।

एक किलो खुरचन के लिए पांच लीटर दूध

खुरचन बनाने की विधि आसान नहीं है। खर्च कर परते बनाने से लेकर पिसी शक्कर डालने तक काफी बारीकी रखनी पड़ती है। इस बारे में राम ज्ञान तिवारी बताते हैं यह दूध से बना आइटम है। एक-एक पाव दूध को कड़ाई में पकाते हैं। 1 किलो खुरचन बनाने के लिए 5 से साढ़े पांच लीटर दूध लगता है। इसे पूरी तरह से बनने में 1 से 2 घंटे कम से कम लग जाते हैं।" वह कहते हैं कि लॉक डाउन की वजह से व्यापार नहीं चला। इसके अलावा और कोई काम भी नहीं आता।

   

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