मोईनुद्दीन चिश्ती, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
जोधपुर (राजस्थान)। जोधपुर से कोई 20 किलोमीटर दूर एक गांव है, जहां देसी गायों की नस्ल सुधार का काम किया जाता है। यहां गो उत्पादन के माध्यम से महिलओं को रोजगार दिया जाता है। गायों की नस्ल सुधार कर पूरे देश में यहां के नंदी (बुल/सांड) को भेजा जाता है।
इस गांव का नाम मोकलावास गांव है, जहां गोचर भूमि पर ‘गौ संवर्धन आश्रम’ संचालित किया जाता है। इस आश्रम में देसी नस्ल की थारपारकर गायों की नस्ल सुधार का काम किया जाता है। जो दूध उत्पादकों के लिए बहुत मददगार साबित हो रही है। वहां पहुंचा तो हफ्ते भर में ही उनकी हालत में बहुत सुधार हो गया था।”
गौसेवा से जुड़े राकेश निहाल ने गांव कनेक्शन को बताया, ” 2007 में मेरे ससुर जी को कैंसर हो गया था, उन्हें लेकर हम अहमदाबाद एम्स में गए। वहां डॉक्टरों ने कहा कि ये कुछ दिनों के मेहमान है घर ले जाकर इनकी सेवा कीजिए। वहीं किसी ने बताया कि गुजरात में एक जगह है जहां पंच तत्व से सभी रोगों का इलाज होता है।”
वे बताते हैं, “इसके बाद हमने इसका अनुसंधान करने का विचार बनाया। इसके बाद यहां के कई गांवों के साथ बैठक करके विचार बनाया कि इनकी गायों के माध्यम से ही अनुसंधान किया जाए। सबसे पहले हमने उन गायों को गांव-गांव जाकर खोजा जिनकी नस्ल खराब हो रही थी। इसपर हम लोगों ने काम करना शुरू किया। आज हमने सैकड़ों गायों की नस्ल में सुधार किया है।”
राकेश बताते हैं कि आज 30 से 40 गौ उत्पाद बना रहे हैं, जिससे गांव की महिलाओं को रोजगार से जोड़ा जा रहा है। दूध, घी बिक रहा है, प्राप्त आय आश्रम की बुनियादी सुविधाओं के लिए काम आ रही है। अब तक 107 नंदी (बुल/सांड) को निःशुल्क रूप से देशभर की कई ग्राम पंचायतों, संस्थाओं, गौशालाओं आदि को दे चुके हैं, ताकि गौवंश को सुधारा जा सके।
यह है देसी गाय की खासियत
यह गाय राजस्थान में जोधपुर और जैसलमेर में मुख्य रूप से पाई जाती है। थारपारकर गाय का उत्पत्ति स्थल ‘मालाणी’ (बाड़मेर) है। इस नस्ल की गाय भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है। राजस्थान के स्थानीय भागों में इसे ‘मालाणी नस्ल’ के नाम से जाना जाता है। थारपारकर गौवंश के साथ प्राचीन भारतीय परम्परा के मिथक भी जुड़े हुए हैं।