मिसाल: दिव्यांगता को बनायी अपनी ताकत, टीचर बन संवार रहीं देश का भविष्य

गाँव कनेक्शनगाँव कनेक्शन   28 March 2019 12:45 PM GMT

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अशोक दायमा

कम्युनिटी जर्नलिस्ट

उज्जैन (मध्य प्रदेश)। कुछ लोग जहां थोड़ी मुश्किलों से ही घबरा जाते हैं तो कुछ उन्हीं मुश्किलों को अपनी ताकत भी बना लेते हैं। उज्जैन की शिक्षक कमलेश राठौर की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। वे दिव्यांग हैं, देख नहीं सकतीं लेकिन सामान्य बच्चों के स्कूल में शिक्षक हैं और भविष्य संवार रही हैं।

मध्य प्रदेश का इंदौर जिसे मिनी मुंबई के नाम से भी जाना जाता है, उससे सटा हुआ ही धार्मिक जिला है उज्जैन। उज्जैन जिले से लगभग 50 किमी दूर नागदा तहसील में एक जगह है सिमरोल। यहीं के शासकीय माध्यमिक विद्यालय में टीचर हैं कमलेश राठौर। दृष्टिबाधित होने के बावजूद वे यहां सामान्य बच्चों को पढ़ाती हैं। उन्हें देखकर एक बार आपको भी नहीं लगेगा कि वे देख नहीं सकतीं।

उनके बारे में स्कूल की छात्रा सविता गुज्जर कहती हैं मैम को दिखाई नहीं देता लेकिन वे हमें अच्छे से पढ़ाती हैं। उनकी पकड़ हर विषय पर है, फिर चाहे वह हिंदी हो या गणित।

अपने बारे में कलमेश कहती हैं "दिव्यांगता अभिशाप नहीं हैं, बस मानसिक दिव्यांगता न हो। अगर हम मानसिक रूप से दिव्यांग हैं तो कभी जीत नहीं सकते। अगर हम अपनी इसी दिव्यांगता को किसी तरह ताकत बना लें तो हम कभी भी किसी से पीछे नहीं रहेंगे।"

कमलेश की कहानी तो इससे भी संघर्षभरी है। बाल विवाह के बादे उनके पति ने उन्हें कुछ दिन बाद ही छोड़ दिया। मायके में 10 लोगों का खर्च चलाने की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही थी। इसके लिए उन्होंने जी तोड़ मेहनत की और हार नहीं मानी। कठिन परश्रम से शासकीय नौकरी हासिल की।

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कमलेश कहती हैं "2005 में जब संविदा की भर्ती आयी थी तब उसमें कोशिश की थी और वहां मेरिट लिस्ट पर मेरा सलेक्शन हो गया था। 2006 से 2010 तक दूसरे प्राइमरी स्कूल में पोस्टेड थी, वहां चार साल बच्चों को पढ़ाया। उसके 2010 में वर्ग में मेरा चयन यहां हुआ। पिताजी मेरे खिलाफ थे फिर भी मैंने जैसे-तैसे डीएड किया।"

कमलेश आगे बताती हैं कि तब सरकार स्कूल में नौकरी के बारे में ज्यादा पता नहीं था। तब प्राइवेट स्कूल में पहले पढ़ाना शुरू किया।

कमलेश के बारे में उनके स्कूल के विकास बघेल कहते हैं "दिव्यांग होने के बावजूद कमलेश मैडम जैसा काम करती हैं उससे सभी को सीखना चाहिए। उनकी पॉजीटिव सोच से सबको सीखना चाहिए कि दिव्यांग होना एक अभिशाप नहीं है।


 

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