पोस्टमार्टम करने वाली महिला की कहानी ...

Tameshwar SinhaTameshwar Sinha   22 July 2019 8:13 AM GMT

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नरहरपुर (कांकेर, छत्तीसगढ़)। पोस्टमॉर्टम हाउस ऐसी जगह जहां जाने में अच्छे-अच्छे लोग भी घबरा जाते हैं, लेकिन वहीं पर एक महिला बिना झिझके और डरे लाशों का पोस्टमॉर्टम करती है।

छत्तीसगढ़ प्रदेश के उत्तर बस्तर कांकेर जिले के नरहरपुर ब्लॉक की संतोषी दुर्गा आज महिलाओं को लिए एक मिसाल बनी हैं। पोस्टमॉर्टम हाउस में काम करने के पीछे कहानी है, दरअसल संतोषी ने अपने पिता से शर्त लगायी थी कि वो बिना शराब पिए भी पोस्टमॉर्टम कर सकती हैं, इसी जिद व शर्त के चलते आज नरहरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वीपर पद पर कार्यरत 30 वर्षीय सन्तोषी दुर्गा 600 से अधिक पोस्टमॉर्टम कर चुकी हैं।

अपनी कहानी बताते हुए संतोषी के चेहरे पर गर्व भी था तो आंखों में आंसू भी थे। संतोषी दुर्गा बताती हैं, "मेरे पिता इसी काम के लिए शासकीय चिकित्सालय नरहरपुर में नौकरी करते थे। लेकिन जब भी पोस्टमॉर्टम के लिए लाश चीर घर में आते वह शराब के नशे में बेहोश-सा हो जाते। समझाने पर जिद करते कि लाश की चीरफाड़ होशो-हवाश में हो ही नहीं सकता।"

पिता की इस लत से परेशान संतोषी ने एक दिन शर्त लगा ली कि बिना नशा किए वो पोस्टमॉर्टम कर सकती हैं। वो कहती हैं, "मैंने पहला पोस्टमॉर्टम 2004 में किशनपुरी गाँव से पांच दिन पुरानी कब्र खोद कर निकाली गई छत-विक्षत लाश का किया था।"


शराब के प्रति नफरत और बाप से लगाई शर्त की वजह से लाश का सिर फोड़ते हुए ना तो उसके हाथ कांपे और ना ही बदबू की वजह से वह पीछे हटी। बाप ने बेटी के आगे झुककर शराब तो बंद कर दी पर कुछ ही दिनों के बाद दुनिया से चला गए और यह काम उसके लिए जीवन-यापन की मजबूरी बन गयी। सन्तोषी 14 वर्षों से नरहरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में पोस्टमॉर्टम का काम कर रही हैं।

पिता की मौत के बाद संतोषी पर अपनी छह बहनों के की जिम्मेदारी आ गई। उनके भी दो बच्चे हैं।

यही नहीं नरहरपुर तहसील के अमोड़ा और दुधावा के अस्पताल में भी पोस्टमॉर्टम के लिए स्वीपर नहीं होने के कारण संतोषी के ही हवाले है। संतोषी अब-तक 600 से अधिक लाश की चीर-फाड़ कर चुकी है।

संतोषी कहती हैं, "नरहरपुर चिकित्सालय में जीवन दीप योजना के तहत 26 सौ रुपए वेतन पर संविदा में रखा गया है। इन 14 वर्षों में उसने अपनी एक बहन की शादी भी है, जबकि शेष सभी की पढ़ाई उसने बंद नही होने दी। अभी हाल ही में एक बहन की और शादी होने वाली है।


संतोषी दुर्गा बताती है कि वर्ष 2004 में ही स्वीपर के पद पर नियुक्त किये जाने का सिफारिश पत्र भी मिला मगर जिले के अधिकारियों ने अब तक मुख्यमंत्री के आदेश को दरकिनार कर दिया।

सन्तोषी दुर्गा के घर जब हम पहुंचे तो घरों की दीवारें सन्तोषी को मिले सम्मानों से सजी हुईं थी। महिला सशक्तिकरण से लेकर नारी साहस तक सम्मान सन्तोषी को मिला हुआ है। सन्तोषी कहती हैं, "सम्मान से पेट नहीं भरता, घर चलाने के लिए कुछ चाहिए रहता है।"

सन्तोषी आगे बताती हैं, "मैंने कई मीडिया को अपना इंटरव्यू दिया है अब थक चुकी हूं।" सन्तोषी के पति और और उनकी छह बहनों को सन्तोषी के ऊपर गर्व है।

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