मानवता की मिसाल है यह परिवार, बीमार और घायल पशुओं की करता है देखभाल

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रामजी मिश्रा, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

शाहजहांपुर (उत्तर प्रदेश)। गायों की सेवा करने वाले इस परिवार को पशु प्रेम की मिसाल कहा जा सकता है, जहां पूरे देश में आवारा पशु एक बड़ी समस्या बने हुए हैं, वहीं कवींद्र और उनका परिवार पिछले कई वर्षों से सड़कों पर घायल लावारिस पशुओं की सेवा करने में लगा हुआ है। अब तक वह हज़ारों आवारा जानवरों को नया जीवन दे चुके हैं।

उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर जिले के इंद्रपुर गाँव के रहने वाले कवींद्र के परिवार का हर एक शख्स खुद से ज्यादा खयाल गायों का रखता है। कवीन्द्र ने एमएमसी करने के बाद बिजनेस शुरू कर दिया। इसी दौरान उनके दरवाजे पर एक दिन एक घायल गाय आ गई। कवीन्द्र ने मानवधर्म निभाते हुए उसकी सेवा शुरू कर दी। कवीन्द्र बताते हैं कि खेतों में कटीले तार जगह जगह बढ़ते ही चले गए। नतीजन छुट्टा जानवर अधिक संख्या में घायल होने लगे।

कवींद्र कहते हैं, "जब सभी गायों को छोड़ रहे हैं तो कोई तो होना चाहिए जो इनको ठिकाना दे। मुझे इसमें पूरे परिवार का सपोर्ट मिलता है, इसके पीछे की कहानी मैं बताना चाहूंगा, मैं ब्रह्म कुमारी विश्वविद्यालय से जुड़ा, तब मुझे लगा कि मुझे पशुओं की सेवा करनी चाहिए। इसमें मेरा पूरा परिवार भी लगा रहता है, सबके अंदर एक जैसी सेवा भावना है।"

इसमें कवींद्र की बहन सरोज जो खुद दिव्यांग हैं और एक निजी स्कूल में पढ़ाती हैं, जिससे उन्हें 15 सौ रुपए तनख्वाह मिलती है, पूरा पैसा वो गायों पर ही खर्च कर देती हैं और पूरी सहायता करती हैं, वो बताती हैं, "देखती हूं कि लोग खेतों में तार लगा देते हैं, जिससे गाय कट कटकर पड़ी रहती हैं, तो कटी हुई गायें हमसे देखी हुई नहीं जाती तो मैं और मेरे बड़े भाई कवींद्र ने उनकी सेवा शुरू की और कटी हुई गायों को घर लाना शुरू किया। उनका इलाज शुरू किया, धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ती गई आज पूरा परिवार इसी में समर्पित है।"


कवीन्द्र बताते हैं कि खेतों में कटीले तार जगह जगह बढ़ते ही चले गए। नतीजन छुट्टा जानवर अधिक संख्या में घायल होने लगे। कवीन्द्र से यह सब देखा नही जाता था। वह जिस किसी घायल गाय को देखते तो उसे अपने घर ले आते। कवीन्द्र के अनुसार उसके चारा पानी का इंतजाम करना और चिकित्सा करना उन्हें बहुत शांति देता है।

कवीन्द्र के पास देखते ही देखते कुछ ही दिनों में 55 घायल गाय और बैल हो गए। कवीन्द्र ने बताया, "इस काम में अब बहुत खर्चा होता है मैंने अपनी सेविंग और पत्नी के जेवर बेच दिए। इसके अतिरिक्त वह मैंने अपना एक प्लाट भी बेच दिया है।

जहां एक ओर लोग दूध दुहने के बाद गाय को बेसहारा छोड़ देते हैं वहीं कवीन्द्र जैसे लोगों की अपनी अलग सोंच है। कवीन्द्र के अनुसार एक बार वह जिसे सहारा दे देते हैं फिर उसे बेसहारा नही होने देते। जमा पूंजी समाप्त होने पर वह क्या करेंगे इस पर कवीन्द्र का कहना है कि आगे ईश्वर कुछ प्रबंध करेगा जैसे वह अभी कर रहा है। कवीन्द्र सारे काम छोड़ कर गायों की सेवा में लगे रहते हैं। एक तरफ गौ शाला में जहां सरकारी धन आने के बाद भी गायों की स्थिति खराब होती जा रही हैं वहीं दूसरी तरफ कवीन्द्र जैसे लोग अपने धन से गौ सेवा में लगे हैं।


गाँव वालों को डर है कि कवींद्र यह सब कब तक करेंगे और जब यह गाय वह छोड़ देंगे तो पूरे गाँव की फसल चौपट हो जाएगी। कवीन्द्र आगे कहते हैं कि जब तक गाय और बैल का पेट नही भर लेता हूँ तब तक मुझे भी कुछ खाने का मन नही होता है।

कवीन्द्र गायों के अतिरिक्त अन्य पशुओं की भी सेवा किया करते हैं। जिनमें कुत्तों की संख्या भी काफी अधिक है। वह मानते हैं कि लोग कुत्ते को भी भगाते रहते हैं उनको भी आश्रय की जरूरत होती है।

कवीन्द्र की बहन सरोज बताती हैं कि एक घायल गाय को हमने देखा और धीरे धीरे मुझे उसके प्रति दया पैदा हो गई। हम उसे कुछ खाने पीने को देते थे तो वह हमारे घर रोज आने लगी। हमने उसके चारे पानी की व्यवस्था करना शुरू कर दिया। धीरे धीरे यहां कुछ कुत्ते भी आने लगे तो मैंने उनको भी खिलाना पिलाना शुरू कर दिया। अब हमारे पास बारह कुत्ते हैं जबकि इसके अलावा सुबह सुबह गेट के बाहर भी बहुत से कुत्ते आ जाते हैं। इसके अलावा हमारे पास पचपन गाय और बैल हैं।

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