हर ग्राम प्रधान ऐसा करे तो, बुंदेलखंड में खत्‍म हो जाएगी पानी की समस्‍या

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अरव‍िन्‍द सिह परमार, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

ललितपुर(उत्‍तर प्रदेश )। गर्मी की शुरूआत में बुंदेलखंड के ज्‍यादातर गांवों में पुरुष और मह‍िलाएं कई-कई घंटे पानी भरने में गुजार देते हैं। पानी की आपूर्ति के लिए हर वर्ष पंचायतें लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी स्थायी समाधान नहीं कर पाती हैं ।

ललितपुर जि‍ला मुख्‍यालय से करीब 35 किमी पूर्व-उत्तर दिशा के बिरधा ब्‍लॉक की ग्राम पंचायत खिरिया छतारा के युवा प्रधान ने गाँव में पानी की समस्‍या को खत्‍म कर द‍िया है। लोगों को अब यहाँ कई किमी दूर पानी को नहीं भागना पड़ता, उन्हें अब घर के पास पानी मिलने लगा।

चार हजार की आबादी 55 हैण्डपम्पों के भरोसे थी, हर साल अधिकतर हैण्डपम्पों जल स्तर कम होने से दम तोड़ देते हैं। पानी के अभाव में महिलाओं और पुरुुषों को दो से तीन किमी दूर गाँव के बाहर से पानी लाना पड़ता था। पचास-पचास लोगों की भीड़ लगा करती थी, पानी को लेकर झगडे़ होना आम बात थी। मजदूर समय से मजदूरी नहीं कर पाते थे और बच्चों की पढ़ाई बाधित होती। हर साल पानी के टैंकरों से पानी सप्लाई पर लाखों खर्च होते हैं, समस्या विकराल थी पर पानी का स्थाई समाधान नहीं था।


इसी गाँव की हरिबाई के परिवार में दस सदस्य और मवेशी हैं इन्हीं की तरह पूरा गाँव पानी की समस्या से परेशान था, आधा समय पानी लाने में गुजरता था, हरिबाई (36 वर्ष) बताती हैं, "पानी की दिक्कत थी जानवर बंधे थे, बाल-बच्चों केे नहाने पीने के ल‍िए रात दिन पानी-पानी भरते थे एक कोस दूर से। पास में पानी नहीं था अब पानी की परेशानी खत्म हो गयी खूब पानी मिलने लगा।"

पानी की परेशानी को याद करते हुए सिया (35 वर्ष) बताती हैं, "चार बजे से पानी भरते थे लेकिन कम ही मिलता था। फसल काटने समय पर नहीं पहुँच पाते थे, बच्चे समय से स्कूल नहीं जाते थे। खाना नहीं बन पाता था पानी की वजह से, पानी मिलने से दिनचर्चा सही हो गयी।"

जनपद की 416 ग्राम पंचायतों में से अधिकतर छोटी-बड़ी पंचायतें साल के तीन चार महीने ग्रामीणों को टैंकरों से पानी सप्लाई करती हैं, अमूनन टैंकरो और पानी व्यवस्था पर हर वर्ष चौदहवें वित्त से तीन लाख से आठ लाख रुपए खर्च हो जाता है ऐसा करने से गाँवों में स्थाई व्यवस्था नहीं मिल पाती, लेकिन हर वर्ष ये खर्च बढ़ता ही है।

इस गाँव के ग्राम प्रधान मुकेश कुमार जैन के मन में पानी की स्थाई व्यवस्था करने का विचार आया कि पूरे गाँव में पानी सप्लाई हो सके, जिसके लिए बड़ी बोरिंग की जरूरत थी किसी अधिकारी कर्मचारी से कुछ नहीं पूछा और खुद के पैसे से गाँव के देहरे बाबा के पास 250 फिट गहरी बोरिंग करा दी। बोरिंग में अच्छा खासा पानी निकलने की बात कहते हुए मुकेश कुमार जैन ने कहा, "चौदहवें वित्त से स्टीमेट पास कराकर गाँव की हर गली मुहल्ले में पाइप लाइन डलवा दी जिससे गाँव की चार हजार की आवादी पर्याप्त पानी ले रही हैं। पानी की स्थाई व्यवस्था करने में लगभग सात आठ लाख का खर्चा आया , पानी की समस्या लगभग बीस वर्षो के लिए खत्म हो चुकी हैं।"


मुकेश जैन बताते हैं, "दो तीन माह में पानी की अस्थाई व्यवस्था में जो धन खर्च होता है, उन महीनों में गाँव का विकास कार्य रूक जाता हैं। हमने पाईप लाइन बनाकर गाँव में स्थाई व्यवस्था की है। आने वाले दस से बीस वर्ष कोई दिक्कत नहीं होगी।"

वो आगे बताते है, "अब पानी के टैंकरों पर खर्च होने वाला लाखों रुपए बचने लगा और वह रुपया गाँव के अन्य विकास कार्य में लगने लगा ऐसा होने से विकास कार्य में गति मिली है।"

मुकेश जैन बताते हैं, "पानी की स्थाई व्यवस्था के लिए कई प्रधानों से भी मैंने कहा अपने-अपने गाँवों में बोरिंग कराकर पाइप लाइन डलवा दो, हमेशा के लिए पानी की समस्या का निदान हो जायेगा पंचायतों पर होने वाली फिजूल खर्ची पर लगाम लगेगी, बचे पैसे से गाँव का विकास होगा। ऐसी व्यवस्था से हर गाँव में शुद्ध पानी ग्रामीणों को मिलेगा।

जब गाँव में पानी कि किल्लत थी उस समय लोगों ने शौचालय का उपयोग बंद कर दिया था, पर्याप्त पानी मिलने से गाँव वाले शौचालय का प्रयोग करने लगे।

प्रधान के कार्य की सराहना करते हुए गाँव के बुजुर्ग नन्नू राजा (62 वर्ष) बताते हैं, "प्रधान ने मोटर डलवाकर पाइप लाइन पूरे गाँव में बिछवाई हर 10 से 15 घरों के बीच में नल लगवा दिये गाँव वालों को अपने घर के पास पानी मिलने लगा। पानी को लेकर कोई परेशानी नहीं हैं गलियों में पानी ऐसे बहता है, जैसे बरसात हो।"

वो आगे बताते हैं, "पानी मिलने से गाँव के लोग शौचालय का उपयोग करने लगे, घर के खर्च और जानवरों को खूब पानी मिलने लगा। मजदूर वर्ग समय से पानी भरके हसी खुशी मजदूरी करने जाते हैं।"

प्रधान द्वारा किये गये स्थाई समाधान पर बंदू राजा (42 वर्ष) बताते है, "प्रधान ने पानी काईन लगवा दी ,घर के पास में पानी मिलने लगा अब सुकून हैं समय पर काम पर पहुँच जाते हैं, खेती किसानी के काम समय से हो जाते हैं, पानी को नही भटकना पड़ता।"

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