रामगढ़ (झारखंड)। पन्नालाल ने जैसे ही कौए की आवाज़ निकालनी शुरू की वैसे ही इनके इर्दगिर्द सैकड़ों कौए उड़ने लगे। ये नजारा इतना बताने के लिए काफी था कि इनका पक्षियों से कितना गहरा रिश्ता है।
पन्नालाल महतों (33 वर्ष) जब एक तालाब के किनारे कौए की आवाज़ निकाल रहे थे तो कौए उनके आसपास मंडराने लगे। पूंछने पर उन्होंने बताया, “अभी कौए की जो आवाज़ मैंने निकाली है उसका मतलब है एक कौआ किसी मुसीबत में है दूसरे कौए हमारी रक्षा करें। इसलिए सभी कौए मेरे आसपास आ गये। कौआ पहला पक्षी है जिसकी आवाज़ निकालना मैंने सबसे पहले सीखा था।”
कोई एक इन्सान एक पक्षी की आवाज़ निकाले और उसकी आवाज़ सुनकर सैकड़ों पक्षी उसके आसपास आ जाएँ ये दृश्य हमें और आपको हैरत कर सकता है लेकिन पन्नालाल के लिए ये सामान्य बात है। जब ये किसी पक्षी की आवाज़ निकालें और पक्षी इन्हें रिस्पांस कर दे तो इन्हें सबसे ज्यादा खुशी मिलती है। पक्षियों से इतना गहरा रिश्ता बनाने में इन्हें बहुत वक़्त लगा है। पन्नालाल महतों पहले किताबों में पक्षियों के बारे में पढ़ते हैं फिर जंगल में उस आवाज़ को सुनकर समझते हैं। कई बार विलुप्त हो रहे पक्षियों की आवाज़ सुनने में इन्हें कई महीने लग जाते हैं।
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झारखंड के रामगढ़ जिले के सरइयां कुंदरू गाँव के रहने वाले पन्नालाल महतो बिजनेस से वक़्त निकालकर अपने दिन के कई घंटे यहाँ के जंगलों में पक्षियों के संग गुजराते हैं। ये उनकी भाषा समझते हैं फिर उसे बोलते हैं। धीरे-धीरे इन पक्षियों से इनका इतना गहरा रिश्ता हो जाता है कि फिर ये समझने लगते हैं आखिर पक्षी अपनी आवाज़ में एक दूसरे से कहते क्या हैं। पक्षियों से प्यार तो इनका आठ साल की उम्र से रहा है पर वर्ष 2017 में इनके काम को एक खास पहचान मिली। अब आसपास के लोग इन्हें बर्डमैन के नाम से जानते हैं। ये अपनी कमाई का एक हिस्सा इन पक्षियों की देखरेख में खर्च करते हैं।
पक्षियों से इनका इस कदर का प्रेम हैं कि लोग इसको इन्हें इनका पागलपन कहते हैं। पर पन्नालाल को इसकी परवाह नहीं। पन्नालाल को फर्क पड़ता है जब वो किसी घायल पक्षी को कराहते हुए देखते हैं, इन्हें फर्क पड़ता है जब कोई शिकारी जंगल में पक्षियों का जाल बिछा जाता है, इन्हें फर्क पड़ता है जब कोई पक्षी किसी मुसीबत में होता है। पक्षियों को गर्मियों में पीने का पर्याप्त पानी मिले, घायल होने पर उनका इलाज कराया जाए, वो शिकारी के जाल में न फंसे और अगर फंस गये हैं तो उससे मुक्त कराया जाये ये सब करना इनको सुकून देता है।
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रामगढ़ के हरी–भरी सिकिदिरी जंगल घाटी में जब पन्नालाल के साथ हम पहुंचे तब वहां पन्नालाल का पक्षी प्रेम देखते ही बन रहा था। जंगल में जहाँ भी उन्हें किसी पक्षी के होने की आहट मिलती वो वहां ठहर जाते। धीरे से उसकी आवाज़ हमें सुनाते और फिर उसका मतलब बताते। एक जगह मोर बोल रहा था उसकी आवाज़ को सुनकर पन्नालाल ने बताया, “अभी ये किसी मुसीबत में है इसलिए अपने दोस्तों को याद कर रहा है। मोर की तरह सभी पक्षी जब किसी संकट में होते हैं तब ये अपने दोस्तों को ऐसे ही आवाज़ लगाकर सजग करते हैं और मदद की गुहार लगाते हैं।”
एक पक्षी अलग-अलग समय में कई तरह की आवाज़े निकालता है, इनकी भाषा में शब्द भले ही न हों पर पन्नालाल के लिए उनकी भावनाएं समझना अब कोई मुश्किल काम नहीं है। बीचोबीच जंगल में जब पन्नालाल ने खुद मोर की आवाज़ निकाली तो दूसरी तरफ से मोर ने आवाज़ देकर अपनी प्रतिक्रिया दी। इसपर उन्होंने बताया, “मैंने जो आवाज़ निकाली उसका मतलब था मैं किसी परेशानी में हूँ इसलिए उसने आवाज़ देकर ये बताया कि मैं तुम्हारे आसपास ही हूँ।” कौआ पहला पक्षी था जिसकी आवाज़ इन्होंने सबसे पहले सीखी और मोर दूसरा। धीरे-धीरे इन्होंने 40 पक्षियों की आवाज़ सीख ली और अभी लगातार सीख रहे हैं।
पन्नालाल आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि वो झारखंड में मौजूद ज्यादातर पक्षियों की आवाज़ पहचान लेते हैं जबकि 40 प्रकार के पक्षियों की आवाज़ हुबहू निकाल लेते हैं। पक्षी अब बिना डरे इनके पास आ जाते हैं। जब ये जंगल में पक्षियों के साथ वक़्त गुजारने जाते हैं तब इनके कपड़े हरे होते हैं और हाथ में स्टील की एक राड (छड़ी) रहती है। जिससे इन्हें कोई जानवर नुकसान न पहुंचा सके। हरे कपड़े इसलिए रहते हैं क्योंकि पक्षियों को इस रंग से लगाव होता है। पक्षियों से बातें करना, घंटों उनके साथ जंगल में वक़्त गुजारना इनकी दिनचर्या में शामिल है।
एक स्थानीय अख़बार के मुताबिक झारखंड नया राज्य बनने के बाद वन विभाग ने पहली बार वर्ष 2015 में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की रेकी करवाई। रेकी रिपोर्ट के अनुसार राज्य में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों को मिलाकर 71 हजार 134 मानी गयी है। जिसमें 78 प्रजाति के ऐसे पक्षियों का पता चला है जिसमें 62 वाटर वर्ड हैं और 16 प्रजाति के पक्षी कम पानी में रहने वाले हैं। विदेशी पक्षियों की 29 प्रजातियों का समूह हर साल रांची आता है। यहाँ की स्थानीय पक्षियों की प्रजाति 26 है जबकि 23 पक्षियों की प्रजातियों का ऐसा समूह है जो कभी रांची और कभी राज्य के अन्य जलाशयों में रहता है।
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पन्नालाल एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते हैं जहाँ हमेशा से पक्षियों को पालने की परम्परा रही है। बचपन में इन्होंने अपने घर में पले पक्षियों के साथ बहुत वक़्त बिताया है। उनकी आदतों को बहुत करीब से देखा और समझा है। घर से शुरू हुआ इनका शौक जंगल तक पहुंच गया। इतना ही नहीं 10 वीं के बाद इन्होंने पढ़ाई सिर्फ इसलिए छोड़ दी जिससे ये पक्षियों को ज्यादा वक़्त दे सकें। पन्नालाल कहते हैं, “जब मैं छोटा था तब पक्षियों के साथ समय बिताना अच्छा लगता था। पहले मेरा ये शौक था फिर आदत बन गया और अब मेरी पहचान। लोग मेरे नाम से ज्यादा अब मुझे बर्ड मैन के नाम से जानते हैं।” पन्नालाल के इस काम में उनके माता-पिता, पत्नी और मित्र सभी सहयोग करते हैं।