अरविंद शुक्ला/ दिति बाजपेई
जींद (हरियाणा)। “किसान भाइयों कीट किसानों के दुश्मन नहीं होते हैं, फिर चाहे वो शाकाहारी कीट हो या मांसाहारी… किसानों के दुश्मन तो कीटनाशक होते हैं। किसानों को कीटों के बारे में जानकारी बहुत कम है, इसलिए वो कीट दिखते ही दवा डालने लगते हैं, लेकिन इसकी जरुरत नहीं होती। अगर आप कीटों को पहचान जाएं तो हर साल कई हजार रुपए बचा सकते हैं।” कपास के खेत में चल रही कीट पाठशाला में सविता किसानों को समझाते हुए कहती हैं।
सविता और उनकी सहयोगी मनीषा हर हफ्ते अपने तरह की एक अनोखे तरह खेत क्लास चलाती हैं। इस क्लास में गांव के पुरुष और महिला किसान दोनों शामिल होते हैं। इस पाठशाला का मकसद किसानों को कीटों के प्रति जागरुक करना है ताकि को अपने खेतों में कीटनाशकों का इस्तेमाल न करें।
गांव कनेक्शन की टीम जब हरियाणा के जींद जिले के ललितखेडा गांव पहुंची तो यहां पर दो दर्जन से ज्यादा महिलाएं और इतने ही पुरुष किसान कपास के पौधों में कीड़ों की गिनती कर रहे थे। यहां पर साल 2012 से हर हफ्ते कीट पाठशाला चलाई जा रही है।
हरियाणा में कीटों के प्रति किसानों को जागरुक करने की कवायद कृषि विकास अधिकारी रहे डॉ. सुरेंद्र दलाल ने दो हजार के दशक में शुरु की थी। जिसे कीट साक्षरता मिशन नाम दिया गया। ललितखेडा जैसी क्लासेज हरियाणा के साथ ही पंजाब के कई गांवों में चलती है।
कीट पाठशाला में आने वाली महिलाएं किसी के बुलाने से आने वाली भीड़ नहीं है। उन्हें खेती की लागत, आय, कीटनाशक की तो जानकारी है ही, वो एक –एक कीट को पहचानती हैं। साथ ही उसके नफा-नुकसान भी।
“हम लोगों ने 43 प्रकार के शाकाहारी और 162 प्रकार के मांसाहारी कीटों की पहचान की है। इन कीटों किसान आसानी से पहचान सकें इसलिए हमने इन्हें कई वर्गों में बांटा है, जैसे बड़े वाले मेजर कीट, फिर सुबेदार मेजर कीट आदि। कीट यूं ही खेतों में नहीं आते। पौधे फूल या अलग-अलग गंध छोड़कर उन्हें बुलाते हैं। शाकाहारी कीट के मुकाबले मांसाहारी कीटों की संख्या तीन गुनी होनी चाहिए।’ मनीषा, कपास की पत्ते पर बैठे हरे रंग के कीड़े (टिड्डे) को दिखाते हुए कहती हैं।
कीटा साक्षरता मिशन से जुड़े रणवीर सिंह मलिक गांव कनेक्शन को पौधे, कीट और कीटनाशकों का संबंध समझाते हैं, “जिनते भी शाकाहारी कीट हैं, चाहे वो पत्ते खाने वाला हो या रस पाने वाला, हर प्रकार के कीट की पौधों को जरुरत है। इनसे नुकसान तब होता है जब इनकी संख्या एक स्तर (एटीएल लेबल) से पार हो जाती है। ये स्तर भी तब पार होता है जब किसान खेतों में छिड़काव करता है।”
हरियामा के जींद, हिसार, कैथल, करनाल समेत कई जिलों में बड़े पैमाने पर कपास की खेती होती है। साल 2001 में कपास की फसल में अमेरिकन सुंडी का भीषण प्रकोप हुआ। जिससे बचने के लिए किसानों ने 30-35 स्प्रे एक साल में किए, लेकिन पैदावार नहीं हुई। इसी दौरान हरियाणा के कृषि विभाग में तैनात एडीओ डॉ. सुरेंद्र दलाल ने कीटों पर शोध किया और लोगों ये बताया कि कीट किसानों ने दुश्मन नहीं होते हैं।
रणवीर आगे बताते हैं, “डॉ. सुरेंद्र दलाल तो समझ गए कि कीट किसानों के दुश्मन नहीं होते हैं। लेकिन उनकी ये बात न किसान मानने तो तैयार थे न कृषि वैज्ञानिक, जिसके बाद उन्होंने कीट साक्षरता मिशन के तहत किसानों के बीच खेतों में जा जाकर कीट पाठशाला शुरु की।”
सविता और मनीषा अब कीट ट्रेनर (कीट कमांडों) बन गई हैं। गांव ललितखेडा समेत दर्जनों गांवों में अब रोज कीट पाठशाला चलती हैं। रणवीर की माने तो जींद में हजारों किसान अब अपने कपास खेतों में कीटनाशक का छिड़काव नहीं करते।
हरियाणा में खेती और पशुपालन का बड़ा काम महिलाओं के जिम्मे है। इसलिए कीट पाठशालाओं में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा ही होती है। मनीषा बताती हैं, “शुरु में जब किसानों ने डॉ. सुरेंद्र दलाल के कहने पर पेस्टीसाइड का छिड़काव कम किया तो घर की महिलाओं ने ही सवाल उठाए, कि फसल नहीं होगी। महिलाएं कपास की बाड़ी (खेत) में ज्यादा काम करती हैं। इसलिए डॉक्टर साहब ने महिलाओं को ही इस मिशन से जोड़ दिया। उन्हें समझाया गया कि ये पेस्टीसाइड फसल और उनके पुरुषों की सेहत के लिए भी हानिकारक है। अब तो हजारों महिलाएं हमारे साथ हैं।”
कीटसाक्षरता मिशन से जुड़े लोगों के मुताबिक जब से किसानों ने कीटों का छिड़काव कम या बंद किया है। उनका ना सिर्फ उत्पादन बढ़ा है बल्कि प्रति एकड़ 6-7 हजार रुपए बचने लगे हैं।
कीट न मारने के आर्थिक फाायदे मनीषा बताती हैं, “कपास (नरमा) एक साल की फसल में किसान दर्जनों बार कीटनाशक का छिड़काव करता था, लेकिन उसकी जरुरत नहीं होती। जिन किसानों ने स्प्रे करना बंद किया उनके साल में प्रति एकड़ 6-7 हजार रुपए बचने लगे हैं। पर्यावरण, जमीन पानी, खराब होने से अलग बच रहे हैं।” मनीषा आगे जोड़ती है, अब दवा फसल में अपने आप तो छिड़क नहीं जाएगी छिड़केंगे हमारे घरों के पुरुष ही, दवा उन पर गिरी तो उनको भी नुकसान होगा, कई लोग दवा से बीमार होचुके हैं। बहुत बीमारियां हो जाती हैं, फिर ऐसी चीज से क्या फायद?
कीट पाठशाला में आने वाले किसान न सिर्फ कीटनाशक से दूर हुए हैं बल्कि वो संतुलित खादों का भी प्रयोग करने लगे हैं। मनीषा बताती है, पहले हमारे घरों में एक एकड़ कपास में एक बोरी नीचे यूरिया डाली जाती थी, उसके बाद 3-4 बोरी ऊपर से डालते थे। अब अब पानी में मिलाकर इनका छिड़काव करते हैं। 100 लीटर पानी का घोल बनाते हैं, जिसमें ढाई किलो यूरिया और ढाई किलो डीएपी और आधा किलो जिंक डालते हैं। ये पचास किलो यूरिया से ज्यादा फायदा करता है। इससे फसल भी अच्छी होती हैऔर खाद के पैसे भी बचते हैं।
कीट क्यों है जरुरी
महिला कीट कमांडों (मास्टर ट्रेन) सविता इस सवाल को उदाहरण से समझाती हैं।
आपने देखे होंगे कपास में सफेद और गुलाबी दो तरह के फूल होते है। जबकि गेहूं आदि में एक ही तरह का होता है। ये दो रंग के फूल कीटों को रिझाने (बुलाने) के लिए होते हैं। कीट आकर इन फूलों पर बैठते हैं, उसका कुछ हिस्सा खाते हैं, जिससे उनमें परागण (नर-मादा भाग का मिलना) होता है और फूल में टिंडा (कपास बनने की शुरुआत) बन जाता है।
दूसरा उदाहरण- टिड्डा नाम हरे रंग का ये कीट होता है। अक्सर ये पत्ती के बीच का हिस्सा खाता है। आपको लगता होगा ये पत्तियों को नुकसान कर रहा लेकिन ये फायदेमंद होता है। पत्तियों के बीच में छेद होने सूरज की रोशनी नीचे वाली पत्तियों तक जा पाती है। यानि टिड्डा हमारे लिए बहुत जरुरी है।
शाकाहारी कीटों को मांसाहारी कीट कैसे कंट्रोल करते हैं…
हरे रंग का एक कीट होता है क्राइसोपा, इसके जाल जैसे पंख होते हैं। ये पत्तियों को खाता है। अब क्राइसोपा का पौढ़ (बड़ा कीट) शाकाहारी होता है लेकिन इसके बच्चे मांसाहारी होते हैं। ये बच्चे सफेद मक्खी, हरा तिल्ला, चूरडा या कोई कीट जिसके अंडे छोटे होते हैं, उसमें डंक मारकर रस चूस लेते हैं। इसी तरह मकड़ी कई तरह के दूसरे कीटों को डंकमारकर बेहोश कर देती है फिर उनका रस चूस लेती है।
मिलबग का उदाहरण
“मिलीबग (कीट) के पीट के नीचे एक थैली होती है। जिसमें 250-300 अंडे होते हैं। जब हम कीटनाशक का छिड़काव करते हैं तो पौढ़ कीट मर जाते हैं लेकिन थैली के अंडे बच जाते हैं और 3-4 दिन में एक कीट से 300 कीट तैयार हो जाते हैं। फिर मारेंगे फिर हो जाएंगे। लेकिन अगर हम कीटनाशक न डालें तो खुद ही मर जाएंगे। क्योंकि इसी थैली में अंगीरा, जंगीरा नाम की चार परपेटियां होती हैं। जो इन कीटों को खा जाती हैं।”