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हर पल एक नई चुनौती का सामना करती हैं किसान आंदोलन में शामिल महिलाएं

दिल्ली की सीमाओं पर ढाई महीने से चल रहे आंदोलन में शामिल किसानों के सामने बिजली-पानी जैसी समस्याएं हैं। लेकिन इस आंदोलन का अहम हिस्सा बनी महिलाओं की चुनौतियां पुरुषों की तुलना में कहीं ज़्यादा हैं। सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक उन्हें हर पल एक नई चुनौती का सामना करना पड़ता है।
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“मैं पिछले दो महीने से बॉर्डर पर बैठी हूँ। यहाँ पहले से ही स्वच्छ शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं थी। हमें शौच के लिए खुले मे जाना पड़ता है,” पंजाब के संगरूर ज़िले के रटोना गांव से किसान आंदोलन में शामिल होने आई चरनजीत (45) कहती हैं। चरनजीत, पिछले 60 दिन से टिकरी बॉर्डर के पकौड़ा चौक पर किसान आंदोलन का हिस्सा बनी हुई हैं। साफ़ पानी , बिजली और स्वच्छ शौचालय की कमी के कारण महिला आंदोलनकारियों की चुनौती पुरुषों की तुलना में ज़्यादा कठिन है। चरनजीत बताती हैं कि उन्हें पुरुषों से पहले उठना पड़ता है। “हम सुबह चार बजे उठ जाती हैं। सभी महिलाएँ चार-पाँच के गुट मे इकट्ठा होकर मैदान में जाती हैं और खाली जगह ढूंढ़कर वहीँ शौच करती हैं,” उन्होंने बताया।

टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर और शाहजहांपुर बॉर्डर पर हजारों की संख्या में महिला किसान हैं प्रदर्शन में शामिल।

किसान आंदोलन में शामिल चरनजीत समेत सभी महिलाओं को अलग तरह की चुनौतियों से जूझना पड़ रहा है। सुबह उठकर शौच जाना, नहाना, कपड़े बदलना, रात में सोने के लिए जाना, इनके लिए हर काम चुनौती से भरा है। कईं महिलाओं को सिरदर्द और बदन दर्द की शिकायतें रहने लगी हैं। पीरिएड्स के दौरान तो इनकी मुश्किलें कई गुना बढ़ जाती हैं।

बॉर्डर पर पहले से ही महिलाओं के लिए शौचालय की कोई स्थाई और अलग व्यवस्था नहीं है। पेट्रोल पंप पर महिलाओं के लिए बने शौचालयों मे भी पुरुष चले जाते हैं। रात को अंधेरे के चलते महिलाओं को टेंट से बाहर नहीं आने दिया जाता। सुखप्रीत कौर (20 ) पंजाब के ही फ़रीदकोट ज़िले के दीपसिंह वाला गांव से आई हैं। उनके साथ उनके पुरुष साथी भी टिकरी बॉर्डर पर पिछले 70 दिन से आंदोलन मे बैठे हुए हैं।

किसानों के धरना स्थलों पर कई जगहों पर महिला किसानों ने अलग शौचालय के इंतजाम किए गए हैं लेकिन वो उनकी संख्या के हिसाब से पर्याप्त नहीं हैं।

सुखप्रीत बताती हैं कि रात को गुंडों और शरारती तत्वों का डर रहता है इसलिए लड़कियाँ सात बजे के बाद अपने-अपने टेंट और ट्रॉली मे ही रहती हैं। “रात को शौच आए तो महिलाएँ रोक लेती हैं। नींद टूट जाती है। पेट दर्द करता है लेकिन अंधेरा होने की वजह से खुले मे शौच जाना सुरक्षित नहीं है। यदि रात को किसी को जाना पड़ जाए तो बुज़ुर्ग औरतें साथ में जाती हैं। सभी कपड़ा ओढ़कर, मर्दों से नज़र बचाकर जाती हैं ताकि पुरुष उन्हें शौच करते न देख लें। रात को शौच के लिए दो मील तक चलना ही पड़ता है,” चरनजीत ने कहा।

बलजीत कौर (50 ) मेन स्टेज पर सबसे आगे बैठी हुई थीं। उनके साथ उनके गाँव खड़ीआल, पंजाब से कई और महिलाएँ पिछले 70 दिन से बॉर्डर पर हैं। अन्य और महिलाओं की तरह ही बलजीत को भी शौचालय और बिजली की समस्या का सामना करना पड़ता है। वो कहती हैं, “शौचालय का कोई ख़ास प्रबंध नहीं है। महिलाएँ ग्रुप मे साथ निकलती हैं। हम ईंट की दीवार बना लेते हैं और नहाती हैं। या फिर अपने टेंट मे ही कपडे बदल लेती हैं। ये बॉर्डर खुला है और मैदानी इलाका है। कुछ लोगों ने शौचालय के लिए टेंट बना लिए हैं। इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है।”

अमूमन महिलाओं की संख्या टिकरी बॉर्डर पर सबसे ज्यादा रहती है। साफ शौचालय और पानी की समस्या भी यहां गंभीर है। फोटो- शिवांगी सक्सेना 

रात को बॉर्डर पर बिजली नहीं होती। हर तरफ़ सन्नाटा रहता है। ठंड के कारण रात को सोने में भी दिक्कतें आती हैं। ऐसी परिस्थितियाँ महिलाओं के लिए बॉर्डर पर रहना और चुनौतीपूर्ण बना देती हैं। जसबीर कौर (60 ) पंजाब के बरनाला के गटु गांव से आई हैं और पिछले दो महीने से किसान आंदोलन मे हिस्सा ले रही हैं। वो रोज़ाना अपनी अन्य महिला साथियों के साथ एक घंटा पैदल चलकर पास बने मॉल मे जाती हैं। “हम पास ही बने मॉल मे जाते हैं। वहाँ नहा-धोकर और शौच कर के पैदल वापिस आ जाती हैं। वहीँ कपडे भी धुल जाते हैं,” जसबीर ने बताया।

रात को ठीक से न सो पाने के कारण कई महिलाओं को बदन दर्द की समस्या आ रही है। जसवंत कौर (65 ) बरनाला की रहने वाली हैं। वो रात भर सो नहीं पातीं जिसके चलते उन्हें सर दर्द की शिकायत रहने लगी है। वो कहती हैं, “कहीं भी जाने के लिए हमें कम से कम एक किलोमीटर चलना पड़ता है। अब पैर भी दुखने लगे हैं।”

कमलदीप कौर (20 ) फरीदकोट से टिकरी बॉर्डर आई हैं और पिछले दो महीनों से आंदोलन की सक्रिय प्रदर्शनकारी हैं। वो सुबह जल्दी उठ जाती हैं क्योंकि उन्हें सुबह के नाश्ते के बाद 10 बजे से मेन स्टेज पर वालंटियर की ड्यूटी करनी होती है। कमलदीप के साथियों ने एक अस्थाई बाथरूम का इंतज़ाम किया है जहां वो और उनकी साथी सुखबीर नहाने जाती हैं। कमलप्रीत बताती हैं, “हमने टिन का एक बाथरूम बनाया है जहां हम नहा लेते हैं। जब एक लड़की नहाने जाती है तो एक दूसरी लड़की बाहर खड़ी रहकर निगरानी करती है। नहाने के बाद हम उसमे ताला लगा देते हैं ताकि पुरुष उसका इस्तेमाल न करे।” 

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लड़कियों को हर महीने पीरियड्स के दौरान पेट दर्द और बदन दर्द जैसी शारीरिक समस्याएँ आती हैं। कमलप्रीत बताती हैं, “लड़कियों को पीरियड्स के दौरान उठने-बैठने की आदत हो जाती है। लेकिन आंदोलन के साथ-साथ हमे खाना बनाना होता है और ड्यूटी भी करनी है। पेट दर्द होता है तो हम अपने टेंट मे ही आकर सो जाती हैं।”

इसके अलावा एक मकान के ऊपर शौचालय की अस्थाई व्यवस्था की गई है। सीड़ी के सहारे चढ़कर ऊपर जाना पड़ता है। लेकिन शौचालय का कोई गेट नहीं है। पास रखी टंकी मे कभी-कभार गंदा पानी आता है। हालाँकि बॉर्डर पर पीने के लिए पानी की समस्या नहीं है। गाँव से आ रहे लोग पानी की बोतलें और टैंकर साथ लेकर आ आ रहे हैं। लेकिन कम विकल्पों के कारण महिलाओं को मजबूरन सुविधाओं के साथ समझौता करना पड़ रहा है। बदन दर्द से लेकर खुले मे शौच जैसी दिक्कतों के बावजूद महिलाएँ किसान आंदोलन का अभिन्न अंग बनी हुई हैं। कई अपने बच्चों को घर छोड़कर आई हैं।

इन तमाम समस्याओं और चुनौतियों के बावजूद इन महिलाओं का हौंसला कायम है। वो कहती हैं कि अब वो दिल्ली से वापिस तभी जाएंगी जब सरकार कानून रद्द करेगी। 

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