अंग्रेजी की प्रोफेसर बेकार सामान में फूल लगाकर बनाती हैं 40 से अध‍िक सजावटी सामान

Moinuddin Chishty | Nov 07, 2019, 07:49 IST
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जोधपुर। आपके घर में बहुत से सामान ऐसे होते हैं, जिनका उपयोग करना आप बंद कर देते हैं। ऐसे में उसे आप कबाड़ के रुप में देखने लगते हैं और आने वाले कल में उसे घर से बाहर फेंक देते हैं। वहीं जोधपुर में रहने वाली डॉ. रश्मि राजपाल सिंह की कहानी ही कुछ अलग है। रश्मि पेशे से अंग्रेजी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वह घर में पड़े बेकार सामान से 40 तरह से सजावटी सामान बनाती हैं।

डॉ. रश्मि अध्यापन और घर की जिम्मेदारियों के बीच मिले खाली समय का उपयोग करके रचनात्मक तरीके से लगभग 40 प्रकार की वस्तुओं का निर्माण कर चुकी हैं। वे सजावटी फूलों और घर में बेकार पड़ी वस्तुओं से घर में सजावट के ऐसे-ऐसे आइटम बना लेती हैं कि देखने वाले बस देखते ही रह जाएं।

वह बताती हैं, ''रोजमर्रा की दिनचर्या के अलावा आपके मन में किसी सकारात्मक कार्य को करने का शौक है तो आप सुबह जल्दी उठकर भी उसके लिए थोड़ा समय निकाल ही लेते हैं। जिस तरह से लोग अपने आप को फिट रखने के लिए सुबह जल्दी उठकर जोगिंग करते हैं, जोगिंग करना भी एक शौक हो सकता है, ठीक उसी प्रकार मैंने भी अपने शौक को पूरा करने के लिए कुछ समय निकालकर कलात्मक कार्य किए हैं जिनकी वजह से मेरी पहचान बनना शुरू हो गई है। आज मेरा यह शौक जुनून बन गया है।''

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रश्‍मि फूलों से करती हैं कलाकारी

लकड़ी, लोहा और कांच से बनते हैं सामान

रश्मि बताती हैं , ''उनके द्वारा बनाया जाने वाला सजावटी फूल के डेकोरेटिव आइटम लकड़ी, लोहा और कांच से बनता है। कुछ सामान तो बने बनाए बाजार में ही मिलते हैं लेकिन मैं उनपर भी फूलों की सहायता से अनूठा आइटम बनाने की कोशिश करती हूं। कई बार तो अपने मिलने जुलनों वालों के घर में बेकार, टूटा-फूटा या कबाड़ के सामान को मांगकर उनपर कलाकारी करती हूं।''

बताती हैं कि घर में टूटे अचार की बरनी (जार) पर गोल्डन स्प्रे कर गुलदस्ते के तौर पर इस्तेमाल कर लेती हूं। इसी तरह एक टूटी हुई फ्रेम के अंदर भी फूल सजाकर उसे दीवार पर टांग देती हूं। इन सब कामों की वजह से मेरी क्रिएटिविटी को पंख लग रहे हैं, वहीं इस हुनर की वजह से कुछ और लोगों को भी काम दे पा रही हूं। क्योंकि लकड़ियों के कई मॉडल बनाने के लिए बढ़ई की मदद लेनी होती है।

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रश्मि पेशे से अंग्रेजी की एसोसिएट प्रोफेसर हैं

किसी मॉडल पर नहीं करती हैं काम

रश्मि राजपाल बताती हैं कि कबाड़ से कैसा आइटम बनाना है, इस काम में हर रोज नए-नए विचार आते हैं और हर दिन नए आइटम बनते हैं। जैसे मेले से एक दिन लकड़ी की साइकिल और एक बैलगाड़ी ले आई। काफी दिन वे पड़े रहे पर एक दिन उन्हें फूलों से सजाकर उन्हें फिर से नया बना दिया।

लकड़ी के घोसले बना कर उसमें पक्षियों को कैद करने की बजाय उसे फूलों से भर दिया। पंछियों को पिंजरे के ऊपर बिठा दिया, ताकि एक सकारात्मक संदेश समाज में जाए की पक्षियों को रिहा करते हुए हम लोग फूलों से दिल लगा सकते हैं।

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ऐसे हुई शुरुआत

रश्मि बताती हैं, "मैं जब 6 साल की थीं, तभी पर्यावरण के बारे में पहली बार सुनने को मिला। बचपन में अपने पिताजी के साथ बगीचे में पौधों को पानी देने जाया करती थी। इसी बगिया में हरसिंगार और माधवीलता के फूल बिखरे रहते थे, जिन्हें मैं उठा लिया करती थीं। रुई को गीला करके उस पर उन फूलों को सज़ा दिया करती और छोटी कटोरियों में रखकर घर के सभी कोनों में रखकर स्कूल चली जाती। इस तरह पूरे दिन उन फूलों की महक घर में रहती थी। इसी आदत को मैंने शौक बना लिया।"

रश्मि के अनुसार कई प्रकार के सजावटी फूल ऐसे होते हैं जिन्‍हें देखकर लगता है कि वे असली हैं। इन फूलों की सबसे बड़ी खासियत यही होती है कि इन्हें बार-बार धोकर इस्तेमाल किया जा सकता है, यह खराब नहीं होते। सजावटी फूल दिल्ली, चेन्नई और मुंबई से आते हैं।

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100 रुपए से 3000 तक बिकते हैं सामान

वे बताती हैं कि आइटम के साइज पर निर्भर करता है कि उसे बनाने में कितना समय लगेगा। अमूमन एक आइटम बनाने में घंटे भर से सवा घंटे का समय लगता है। यह उत्पाद 100 से लेकर 3000 रुपये तक की रेंज में मिलते हैं।

रश्मि बताती हैं, "आज के दौर में बुके देने का प्रचलन जोरों पर है। एक दिन मुझे मेरी किसी परिचित ने कुछ सुझाव दिए कि बुके के फूल अगले दिन मर जाते हैं और जिसे भी वह बुके मिलता है वह उसे घर के बाहर फेंक देते हैं, लेकिन सजावटी फूलों वाले आइटम्स पर थोड़ी मेहनत करोगी तो वे लोगों के घर का हमेशा के लिए हिस्सा बन जाएंगे। इस तरीके से बहुत कम खर्चे में घर को डेकोरेट करने के इस शौक की शुरुआत ने आकार लिया।"

महिलाओं को सिखाएंगी यह काम

रश्मि बताती हैं कि उनके रिटायरमेंट में अभी दो साल बचे हैं, उसके बाद वे महिलाओं को अपने साथ जोड़कर इस काम को आगे बढ़ाने और उन्हें स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने का काम करेंगी। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'मेक इन इंडिया' और 'स्किल डेवलपमेंट' जैसी योजनाओं से प्रभावित हैं।

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