शहर की नौकरी छोड़कर युवती ने प्रधान बन बदल दी बुंदेलखंड के इस गाँव की तस्वीर

Arvind Singh Parmar | Apr 15, 2020, 06:00 IST
Mahila pradhan
ललितपुर(उत्तर प्रदेश)। भोपाल में अच्छी नौकरी छोड़ अपने गाँव में वापस लौटी रुचिका ने सबसे पहले गाँव वालों को विकास का भरोसा दिलाया, उसी भरोसे के साथ प्रधान बन रुचिका ने गाँव की दशा बदल दी।

इस गाँव की बदली हुई तस्वीर देखने के लिए आपको बुंदेलखंड के ललितपुर जिला मुख्यालय से 55 किमी दूर पूर्व - दक्षिण दिशा मडावरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत बगौनी (जमुनिया) में आना पड़ेगा।

ये कहानी ऐसी महिलाओं के लिए प्रेरणादायी है जो ग्राम प्रधान तो बन गई, लेकिन प्रधानी चलाने की बागडोर उनके प्रधान पति, प्रधान पुत्र, प्रधान ससुर या अन्य तक ही सीमित रही।

"जब मैं शुरू-शुरू में ब्लॉक जाती थी तो लोग बोलते थे कि आप कहां की प्रधान हैं तो मैने कहा मैं बगौनी (जमुनिया) की प्रधान हूं तो वो बोलते थे कि अरे, बड़ा नरक है। क्योंकि यहां पर न तो लाइट थी। ना रोड थी, ना शौचालय था, ना आवास थे, गरीबी बहुत ज्यादा थी, " यह कहना है मडावरा ब्लॉक की ग्राम पंचायत बगौनी जमुनिया की ग्राम प्रधान रूचिका बुंदेला का।

345137-img-20200409-wa0004
345137-img-20200409-wa0004

वो आगे कहती हैं, "मुझे लोगों से अब सुनने को मिलता है जो दूसरे गाँव के लोग आते हैं कि जमुनिया बगौनी देखते हैं, तो मुझे बहुत खुशी होती हैं कि वो बोलते हैं कि अब तो पूरी स्थिति बदल गई।"

रूचिका बुंदेला फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती हैं इस पंचायत की प्रधानी कोई और नहीं देखता वो स्वयं देखती हैं निडर होकर ब्लॉक से लेकर जिले तक की मीटिगों में प्रतिभाग करती हैं अधिकारियों से मिलती जुलती हैं। तेजतर्रार स्वभाव के चलते अधिकारियों से लड़ जाती हैं जिससे सरकार की योजनाओं का लाभ पंचायत के लोगों को ज्यादा मिल सके।

रूचिका बुंदेला की परवारिश शहर में हुई। ग्रेजुऐशन बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी से करने के बाद मुम्बई अपने चाचा जी फिल्म अभिनेता राजा बुंदेला के चली गई, जहां पर कम्प्यूटर में प्रोग्रामिंग कोर्स, फेशन डिजाईनिंग कोर्स, एन आईटी से एक्सपर्ट कोर्स किया कम्प्यूटर से। मैनेजमेंट का डिप्लोमा लेने के बाद 14 साल प्राईवेट सर्विस अच्छी पोस्ट पर भोपाल में की साल में दो बार गाँव आना जाना था।

345138-img-20200409-wa0006
345138-img-20200409-wa0006

"2015 में दीपावली के समय गाँव आई, चुनाव का माहौल था गाँव के सभी लोग पिता जी से पूछ रहे थे प्रधान के लिए किसी का नाम बताइए "जैसे गाँव की भाषा में बोलते हैं बब्बा और कक्का करके ऐसे ही मजाक मैं बोला दिया कि मैं कभी जिंदगी में आप लोगों के लिए कुछ करूंगी अपने जीवन में बिल्कुल भी राजनीति स्तर का स्वभाव भी नहीं हैं, लेकिन गाँव वालों की जिद थी उन्हे विश्वास भी था कि हम लोगों को मूलभूत सेवाएं जरूर मिलेगी।" रुचिका बुंदेला ने बताया।

एक पढी लिखी-लिखी शहर में रहने वाली और गाँव की राजनीति से दूर दूर तक नाता नहीं था। चुनाव जीतने के बाद रूचिका बुंदेला का अपने परिवार से मेरा खुद से अपने आप में प्रोमिस था कि अगर चुनाव जीतती हूं तो काम स्वयं देखूंगी, रूचिका बुंदेला ने अपने काम करने की बात करते हु कहा, "समझा इस फील्ड को जाना की काम कैसे शुरू कर सकते हैं, इसमें थोड़ा समय लगा, पर मुझे प्रशासनिक तौर पर मदद मिली।

345139-img-20200409-wa0011
345139-img-20200409-wa0011

रूचिका आगे बताती हैं कि प्रधानों को मदद निश्चित तौर पर मिलेगी, थोड़ा सा उनको शिक्षित होना जरूरी हैं अगर प्रधान शिक्षित हैं तो वो निश्चित तौर पर गाँव का विकास कर सकता हैं।

गाँव के पुराने हालातों को दोहराते हुए प्रधान रूचिका बुंदेला कहती हैं, "इस गाँव के अंदर आती थी, तो एक नकारात्मक उर्जा थी शाम होते ही पूरे गाँव में अंधकार, मुझे खुद के लिए चुनौती थी कि गाँव में कैसे रहूंगी, मैंने गाँव वालो को बोल तो दिया था कि मैं खुद देखूंगी खुद काम करूंगी। वो अपने आप से खुद को चुनौती थी। गाँव में काम कैसे लाऊंगी क्योंकि मैं गाँव परिवेश के लिए रही नहीं? इसलिए समझ नहीं थी।"

"मेरी शिक्षा इसमें बहुत बड़ा साथ देगी, शिक्षा मेरा अस्त्र बन जायेगी मैंने शिक्षित होने का फायदा ऐसे उठाया, "लोगों और प्रशासन से बातचीत हुई मुझे बिजली लानी थी, चुनौतियाँ आयीं ऑफिसर ने सर्पोट नहीं किया। जब जिलाधिकारी को इंग्लिश में पत्र लिखा और बात रखी उन्होंने एक सप्ताह के अंदर इस गाँव में खंभे डलवा दिये इंजीनियरों ने काम किया 2016 की धनतेरस के दिन बगौनी के दूसरे पार्ट जहां बस्ती हैं वहाँ करीब 65 प्रतिशत एससी, एसटी रहते हैं, उनके जीवन में रोशनी का उजाला आया "पहली चुनौती की बात करते हुऐ प्रधान रूचिका बुंदेला ने कहा।

345140-img-20200409-wa0010
345140-img-20200409-wa0010

"गाँव के बुजुर्ग 65 वर्ष के हैं उन्होंने कहा कि बिन्नूराजा हम मर जाते और बल्ब नहीं देख पाते इस गाँव में....आपकी वजह से हम ये रोशनी देख पाये। तो आप जुग-जुग जियो" सफलता का जिक्र करते हुऐ रूचिका बुंदेला के चहरे पर खुशी झलक रही थी।

देश की करीब 70 फीसदी आबादी गाँवों में आरक्षण के बाद पंचायत में महिला प्रधानों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन उनकी सहभागिता ना के बराबर हैं पूरे देश में दो लाख 39 हजार ग्राम पंचायतें हैं। पंचायती चुनाव में महिलाओं का 50 फीसदी आरक्षण हैं जो देश के 20 राज्यों में हैं जिसमें अभी उत्तर प्रदेश शामिल नहीं है।

कैसे काम लेकर आये, कैसे लोगों को मनाये, कैसे उनका सर्पोट लें।. गाँव के लोगों ने 30-40 साल से कोई काम देखा ही नहीं? इस चुनौती से निपटने के लिए रूचिका बुंदेला को आसानी हुई उन्होंने कहा," परिवार का गाँव से जुड़ाव है, लोगों की मदद करते देखा हैं जिस कारण कहीं ना कही मेरे ब्लड में हैं कि लोगों की मदद करे। गाँव वालों को देखकर दु:ख लगता था कि उनके पास शौचालय नहीं हैं जब प्रधान बनी, उस समय पूरी पंचायत में 12-15 शौचालय होंगे वो कहती हैं बच्चियों का कहना था बारिश में बाहर शौच जाने में बड़ी तकलीफ होती थी। कभी कोई बीमार हुआ तो रात 12 बजे जाना पड़े बडी विडम्बना थी इस गाँव की। अब गाँव ओडीएफ हैं, करीब 350 शौचालय बन चुके थे।"

345141-img-20200409-wa0031
345141-img-20200409-wa0031

गाँव के 90 बुजुर्गों को वृद्धा पेंशन, 46 विधवाओं को विधवा पेंशन साथ ही 5 लोगों को विकलांग पेंशन मिलती हैं। गाँव के हर जरूरत मंद को आवास दिये गये हैं।

लेकिन लोगों को उनमें जाने की आदत नहीं थीं, क्योकि वो कभी शौचालय में गये ही नहीं थे? उनका सुबह और शाम खुले में जाने का समय होता था और हमारा घूमने का। रूचिका बुंदेला बताती हैं, "पुरूष और महिला हमें देखते ही अपना लोटा फेक दिया करते थे, धीर-धीरे उन्हे आदत हुई और वो अब शौचालयों में जाने लगें। लेकिन बच्चियाँ खुश थी वो कहती हैं जीसाब आपने शौचालय बनवा दिये अब बारिश के कीचड़ में बाहर नही जाना पड़ता हैं।"

लोगों को विश्वास बढ़ने की बात कहते हुए प्रधान रूचिका बुन्देला कहती हैं, "वो लोग घेर के बैठते हैं, हँसी मजाक होता हैं बुढ़े-बुजुर्ग हो तो बुंदेलखंडी भाषा हैं हमारी कक्का काकी कहकर बातचीत होती हैं।"

345142-img-20200409-wa0002
345142-img-20200409-wa0002

साढे तीन हजार की आबादी वाली इस पंचायत में साढे ग्यारह सौ वोटर हैं। विद्यालयों के कायाकल्प होने से विद्यालय परिवेश की दिशा व दशा बदल गई वहीं से लेकर हर गली में लाईट और सोलर स्ट्रीट लाइटें लगी हैं। गाँव की हर गली में आरसीसी हैं।

प्रधान बनते जब हम सब शुरू-शुरू में आये लगभग हर चबूतरे पर जुआ खेलने की बात करते हुए प्रधान रूचिका बुंदेला आत्मविश्वास से कहती हैं, "पूरे गाँव में जुआ पूरी तरह से बंद है। जो भी जुआ खेलते मिलेगा उसकी पूरी पूँजी जब्त की जायेगी। साथ ही ग्यारह सौ रूपया का उन सभी पर दण्ड लगाया जाता है। जब से ये व्यवस्था अपनाई गई तब से गाँव में जुआ खेलना बंद हो गया।

सजनाम बाँध से गाँव वाले विस्थापित हैं, उनके पास जमीन कम हैं सजनाम बाँध की पट्टी पर खेती करते हैं। नई तरीके से खेती करने की बात करते हुऐ प्रधान रूचिका बुंदेला कहती हैं, "पिछले साल प्रेक्टीकल के रूप में एक एकड़ में लहसुन की खेती की थी, एक एकड़ गेहूं का फायदा और लहसुन का फायदे निकाला जाय तो मुझे ज्यादा फायदा हुआ था! इस तरफ किसानों का रूझान करूं।"

किसानों की आय दो गुना से अधिक करने के लिए किसान मेला में पतंजली के वैज्ञानिक किसानों से बात कर चुके हैं। वो आगे बताती हैं, "किसान तैयार होने का मन बना रहे हैं तुलसी, ऐलोवेरा, खस, सफेद मूसली आदि किसान लगाकर बडे़ स्तर पर पैदावार करेगें। निश्चित तौर पर आमदानी में इजाफा होगा। कौशिश हैं कि लोग कुछ अलग करें।"

हम महिला सशक्तिकरण उनकी बराबरी और समान दर्ज की बात करते हैं, लेकिन जब तक आप उठकर अपनी जगह से खड़ी नहीं होगी। फिर आप कैसे कर पाएंगी। आत्म विश्वास से भरी ग्राम प्रधान रूचिका राजा बुंदेला कहती हैं," मैं प्रधान हूँ, मैं बाध्य हूँ कि मैं अपनी ग्राम पंचायत का काम खुद करूं, मुझे उतनी समझ नहीं है तो आप मदद ले सकती हैं! पर काम की समझ खुद रखिये, आप खुद रखेगी तो आपके बच्चे उस समझ से आगे बढ़ेंगे आपके प्रतिनिधित्व के बारे में अलग पहचान बनेगी। आप खुद के नाम से जानी जाएंगी।

Tags:
  • Mahila pradhan
  • GramPradhan
  • bundelkhand
  • lalitpur
  • positive story
  • story

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.