किसान, व्‍यापारी या दुकानदार, नींबू की बढ़ी कीमतों से किसे हो रहा फायदा?

देश भर में नींबू की बढ़ी कीमतों के बीच, गाँव कनेक्शन ने किसानों, व्यापारियों और छोटे दुकानदारों से बात की और यह जानने की कोशिश की आखिर क्यों के दाम इतने ज्यादा बढ़ गए और इससे किसको फायदा हो रहा है।

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नींबू पानी का एक ठंडा गिलास विदेश्वरी देवी को तपती गर्मी से हमेशा राहत देता आया है, लेकिन 65 वर्षों में पहली बार वे गर्मी के मौसम में अपने पसंदीदा नींबू पानी की बूंद भी नहीं चख पाई हैं। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के बेलहारा गांव में रहने वालीं विदेश्वरी देवी ने गांव कनेक्शन को बताया, ""पसंद तो बहुत है, लेकिन कौनव दवाई तो है नहीं जरूरी है... जब मदा है नीमू तब लेबे।"... जब मदा है नीमू तब लेबे।" वे कहती हैं कि जब नींबू की कीमत होगी तब खरीदूंगी।

65 वर्षीय विदेश्वरी उन लाखों भारतीयों में से हैं जो इसके सेवन से परहेज कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पिछले कुछ दिनों से नींबू 10 रुपये प्रति पीस के हिसाब से बिका। इतनी कीमत कभी नहीं रही।

खराब मौसम, कम उत्पादन, बढ़ती कीमतें

बाराबंकी में विदेश्वरी देवी के घर से लगभग 300 किलोमीटर दूर, गाँव कनेक्शन ने जमीनी स्थितियों को समझने के लिए मध्य प्रदेश के सतना में एक किसान के नींबू के बाग की यात्रा की।

"मेरे बगीचे के साथ ही आसपास के किसानों के बागों में भी अभी तक फूल आया है। भीषण शीत लहर के बाद भीषण गर्मी की लहर ने नींबू के उत्पादन को प्रभावित किया है। पूरे क्षेत्र में नींबू का उत्पादन होता है, जिसके कारण सब्जी थोक विक्रेताओं को दक्षिणी राज्यों से नींबू मिल रहे हैं, जहां खुद इस साल कम उत्‍पादन हुआ है।" सतना के पोइंधाकला गांव के एक नींबू किसान अभयराज सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया।


"डीजल की बढ़ी कीमतों का भी नींबू की परिवहन लागत पर प्रभाव पड़ा है। इसलिए प्रतिकूल मौसम की स्थिति और उच्च ईंधन की कीमतों ने देश में नींबू की कीमतों में आसमान छू लिया है। मुझे उम्मीद है कि बारिश के बाद मेरे बगीचे फल देंगे अन्यथा मुझे 'गंभीर नुकसान सहना होगा, "सिंह ने कहा। इस बीच एक कृषि विज्ञान केंद्र के एक कृषि वैज्ञानिक ने गांव कनेक्शन को बताया कि देश में खराब मौसम और नींबू की कम उपज के बीच वास्तव में एक मजबूत संबंध है।

मूल रूप से, उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के बागों से तोड़े जाने के लिए नींबू अभी तक पके नहीं हैं। सर्दियों के दौरान सर्द हवाओं ने नींबू उत्पादन को प्रभावित किया, जिसके बाद मार्च के महीने में रिकॉर्ड तोड़ तापमान दर्ज किया गया था। मौसम की स्थिति में इस तरह के तेजी से बदलाव बागवानी उत्पादन पर कहर बरपाते हैं। नींबू उत्पादन के प्रमुख राज्य दक्षिण भारत के हैं।

वहां भी बाढ़ और ज्‍यादा तापमान के कारण कम उपज हुई है। उन्नाव के धौरा कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक धीरज तिवारी ने गांव कनेक्शन को बताया।

एपीडा (प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, आंध्र प्रदेश देश में नींबू का अग्रणी उत्पादक राज्‍य है। इसके बाद गुजरात, पंजाब और हिमाचल प्रदेश आते हैं। जब गांव कनेक्शन ने आंध्र प्रदेश की एक नींबू-व्यापारी से बात की उन्‍होंने जानकारी दी कि पिछले साल की बाढ़ और इस साल की समय से पहले गर्मी की लहरों ने राज्य में नींबू के उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।


उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की सब्जी मंडियों में से एक दुबग्गा सब्जी मंडी के थोक विक्रेता नीरज लोधी कहते हैं, "पहले के मुक़ाबले नींबू बहुत सस्ता हुआ है और 10 से 12 दिन में नींबू का दाम और भी कम हो जाएगा। मार्च से पहले मंडी में नींबू 40 से 50 रुपए किलो बिक रहा था। नींबू महंगा होने की वजह से बिक्री में थोड़ा बहुत असर तो पड़ा ही है। वैसे तो पूरा माल बिक जाता है लेकिन कभी कभार माल फंस भी जाता है।"

आंध्र प्रदेश के एलुरु में एक नींबू उत्पादन और कंपनी के प्रबंध निदेशक अरीताकुला प्रसाद ने गांव कनेक्शन को बताया कि इस साल हर साल की अपेक्षा केवल 40 प्रतिशत उत्‍पादन ही हुआ है। हम पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत के लगभग हर राज्य में नींबू की आपूर्ति करते हैं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि नींबू की ऊंची कीमतों का हमारी जैसी कंपनियों के मुनाफे पर बहुत कम प्रभाव पड़ता है। नींबू की बहुत अधिक मांग है और कीमतें आसमान पर पहुंच रही हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि लोग नींबू भी खरीदने को तैयार हैं।"

"किसी वस्तु की उच्च मांग और उच्च कीमतें हमारे जैसे आपूर्तिकर्ताओं के लिए बेहतर मुनाफे में तब्दील हो जाती हैं। हमें इस मामले को बारीकी से देखने और यह समझने की जरूरत है कि जब कीमतें इतनी अधिक होती हैं, तो व्यापारी अपने ऑर्डर कम रखते हैं क्योंकि अस्थायी रूप से महंगी कमोडिटी में बहुत अधिक पैसा निवेश करना एक जुआ है। कोई भी गारंटी नहीं दे सकता है कि एक सप्ताह के बाद नींबू की कीमतें ऊंची बनी रहेंगी और आंध्र प्रदेश से दिल्ली पहुंचने में लगभग एक सप्ताह का समय लगता है, "वे आगे बताते हैं।


यह समझने के लिए कि आने वाले दिनों में नींबू की कीमतें कैसे और कब गिरेंगी, गांव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के एक नींबू किसान जगतनारायण सिंह से संपर्क किया, जिन्होंने कहा कि बारिश के बाद उपज बढ़ने की उम्मीद है।

"अगले दो महीनों (मई-जून) के दौरान, हमारे राज्य [उत्तर प्रदेश] में नींबू की पैदावार भी स्थानीय बाजारों में योगदान देगी। साथ ही आस-पास के राज्यों में मानसून की शुरुआत के बाद उपज में वृद्धि की संभावना है। उम्मीद है कि कीमत कुछ हफ़्ते के बाद नीचे आ जाएगा, "सिंह ने कहा।

इसके अलावा जब गांव कनेक्शन ने उन विक्रेताओं के बारे में अधिक जानने के लिए संपर्क किया जो आपूर्ति श्रृंखला में सबसे नीचे हैं, उत्तर प्रदेश के सीतापुर के एक दुकानदार दीपक कुमार कश्यप ने कहा कि नींबू की उच्च मांग शहर की चर्चा है, लेकिन शायद ही लोग वास्तव में खरीद रहे हैं। "कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई व्यक्ति अमीर या गरीब है। एक नींबू के लिए दस रुपये खर्च करना एक ऐसी चीज है जिसके बारे में हर कोई दो बार सोचता है। मुझे नींबू से कम मुनाफा हो रहा है क्योंकि मेरा स्टॉक इस गर्मी में बिकने से पहले ही सूखने वाला है। मुझे आशा है कि कीमतें सामान्य हो जाती हैं क्योंकि यह हम जैसे सब्जी विक्रेताओं को प्रभावित कर रही है।"

लखनऊ से मानवेंद्र सिंह, बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह, उन्नाव से सुमित यादव, सतना से सचिन तुलसा त्रिपाठी, सीतापुर से रामजी मिश्रा और लखनऊ से प्रत्यक्ष श्रीवास्तव के इनपुट्स।

अंग्रेजी में खबर पढ़ें

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