बुंदेलखंड लाइव: चिलचिलाती गर्मी में भूखी प्यासी हजारों प्रवासियों की भीड़, गायों के शव और बसों का इंतजार

आपने ने कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान सड़कों पर शहरों से लौटती प्रवासी मजदूरों की भीड़ देखी है,लेकिन इनका सफर कितना मुश्किल रहा है, कैसे कैसे ये दर्द इन्होंने सहे हैं इस रिपोर्ट में देखिए..

Arvind ShuklaArvind Shukla   19 May 2020 12:29 PM GMT

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अरविंद शुक्ला/अरविंद परमार और यश सचदेव

अमझरा घाटी (ललितपुर)। चिलचिलाती धूप में लगभग उजाड़ पेड़ों के नीचे, तिरपाल के नीचे बैठे लोग बार-बार उठकर उस भगवा रंग से पुते कमरे की तरफ देख रहे थे, जहां लाउडस्पीकर पर एक व्यक्ति बता रहा था कि सामने खड़ी बस कहां को जाने वाली है और किस जिले और राज्य के यात्री अभी और इंतजार करें। इंतजार का शब्द सुनते ही कई लोगों के चेहरे मायूसी से लटक जाते तो कुछ के मुंह से सरकार और सिस्टम के गुस्सा भी जाहिर करते हैं।

पिछले कई दिनों से ये नजारा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित अमझरा घाटी में प्रवासी यात्रियों के लिए बनाए गए अस्थाई केंद्र में देखने को मिल रहा है। पिछले करीब एक महीने से यहां हजारों की संख्या में महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात के प्रवासी पहुंच रहे हैं, लेकिन लॉकडाउन-3 के आखिरी दिनों ये संख्या तेजी से बढ़ी और लॉकडाउन 4 में रोजाना करीब 5000 यात्री पहुंच रहे हैं।


राष्ट्रीय राजमार्ग 44 पर अलग-अलग राज्यों से आने वाले पैदल यात्री, बसों से आए यात्री, ट्रक और दूसरे वाहनों से आने वाले यात्री सागर जिले की सीमा में उतरते हैं, स्क्रीनिंग के बाद वो करीब 500 मीटर पैदल चलकर उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिले की सीमा में स्थित इस केंद्र में पहुंचते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्राम पंचायत नाराहट विकासखंड मडावरा में किनारे बृहद गौ संरक्षण केंद्र में प्रवासी केंद्र बनाया है, यहां से सरकारी वादों के मुताबिक उन्हें बसों उनके जिलों तक भेजा जाना है। लेकिन कई-कई दिनों की मुसीबत झेलकर यहां तक पहुंचे प्रवासियों की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं।

"हम महाराष्ट्र से ये सोचकर भागे कि अपना देश अच्छा है, अपने देश (राज्य-जिला) पहुंच जाएंगे तो सबकुछ सही हो जाएगा, लेकिन यहां आकर तो लग रहा है फंस गए हैं। दो दिन हो गए अभी तक हमारे जिले (संतकबीर नगर) की बस हमको नहीं मिली।" इतना कहते कहते गुस्से से भरी शांति देवी गोदी में बैठकर रो रहे अपने बच्चे को चुप कराने लगती हैं।

"पता नहीं कैसे तो यहां तक पहुंचे हैं, बच्चा लोग परेशान हो गए हैं, न खाना है न पानी, धूप को आप देख ही रहे हैं।" वो आगे जोड़ती हैं।

उनसे कुछ दूरी पर ही बिहार के गया को जाने वाला एक गुट बैठा है जिसमें 30 लोग हैं, ज्यादातर युवा हैं जो गुस्से में हैं, "उनमे से एक युवक ने खड़े होकर कहा- कैमरा पर फोटो दिखाने से कोई फायदा नहीं है, कुछ कराना है तो बस का इंतजाम करा दीजिए। इस गोबर की बदबू में बैठे-बैठे दिमाग फटा जा रहा है।"


युवकों का गुस्सा इसलिए भी बढ़ता जा रहा था क्योंकि जहां प्रवासियों का रुकने का इंतजाम किया गया था वो छुट्टा गायों (अन्ना पशु) के लिए बनाया गया है, जहां जगह-जगह गोबर और भूसा पड़ा था। गोशाला में टीन के 5 शेड हैं, जिनमें प्रवासी और गायों दोनों एक साथ नजर आ रहे थे।

गांव कनेक्शन की टीम 18 मई की दोपहर करीब डेढ़ बजे गोशाला पहुंची, तेज धूप में से ज्यादा लोग परेशान होकर छांव खोज रहे थे, पानी के लिए आए टैंकर के पीने के पानी के लिए भी लंबी लाइन गई थी तो सूचना केंद्र के पास अपनी बस जानने और अपना नाम लिखाने के लिए भीड़ उमड़ रही था।

पाली तहसील के तहसीलदार .... खुद माइक संभाले हुए थे। कोई खाली बस अंदर आती हो हजारों आंखें उसकी तरह देखती, दूर बैठे कई यात्री बस के लिए दौड़ भी पड़ते लेकिन तब तक लाउडस्पीकर पर आवाज गूंजती ये बस उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जाएगी.. सिर्फ वहां के यात्री सवार हों.. बिहार जाने वाले यात्री कृपया ध्यान दें.. उनकी बस शाम छह बजे आएगी।"

लाउडस्पीकर पर ये आवाजें कुछ लोगों को राहत दे रही थी लेकिन ज्यादातर लोगों का गुस्सा बढ़ रहा था। एक टीन शेड के नीचे बैठे बिहार के कई युवा गांव कनेक्शन की टीम को रोककर अपना दर्द बताते हैं, "लाठी-डंडे खाकर सूरत (गुजरात) से किसी तरह यहां पहुंचे हैं अब आगे कैसे पहुंचेगे पता नहीं, बस आ नहीं रही पैदल जाने नहीं दे रहे।" इसी ग्रुप में शामिल 11-12 साल के एक बच्चे ने बताया कि जबसे (17 की शाम) आए हैं, कुछ खाने को नहीं मिला, आज सुबह कुछ लोग आए थे तो दोने में खिचड़ी दे गए।" बच्चे की बात खत्म होने से पहले कई लोग एक साथ बोल पड़ते हैं कि हम लोग यहां भूखों मरे जा रहे, न खाने का इंतजाम है न पानी का।

प्रवासी कैंप में ऐसे सैकड़ों परिवार भी थे, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी थे। गर्म, थकावट, भूख से परेशान प्रवासी बार-बार काउंटर पर जाकर अपनी बस के बारे में जानने की कोशिश करते। लेकिन सुरक्षाकर्मी और प्रशासन के लोग उन्हें सांत्वना देकर इंतजार करने को कहते।


कई एकड़ में फैली इस गोशाला में कई जगह प्रवासी खुद के लिए खाना भी बना रहे थे। लकड़ी चलाकर अपने लिए चाय बनाती महाराष्ट्र के वर्धा से आई सन्नो को सहारनपुर जाना है। वो बताती हैं, हमने कल भी अपने आप से खाना बनाया था वो पतीली रखी है दे खोल कर देख लो, पिछले 24 घंटे में सिर्फ एक बार चार पूड़ी मिली हैं। अब तो बस किसी तरह घर पहुंच जाएं।"

इनमे कई प्रवासी पैदल जाना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने रोक दिया। कैंप में ये भी बताया जा रहा था कि लंबी दूरी के यात्रियों को ट्रेन से भिजवाया जाएगा, जिसका इंतजाम किया जा रहा है। बहुत सारे प्रवासी जो पहले ट्रक और दूसरे वाहनों से निकल रहे थे, औरैया के सड़क हादसे में 24 लोगों की मौत के बाद पुलिस-प्रशासन ने ट्रक से मजदूरों के आने पर रोक लगाने की कोशिश की है। लेकिन कई यात्री चोरी-छिपे निकल जाते हैं।

गोशाला के गेट पर मिले जिले के पुलिस वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ... अनौपचारिक बातचीत में बताते हैं, पुलिस-प्रशासन अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है लेकिन प्रवासी और मजदूरों की संख्या यकायक इतनी ज्यादा हो गई है, लेकिन सबको उनके गंतव्य तक भिजवाने की कोशिश की जा रही है।

ललितपुर यूपी के सबसे संवेदनशील जिलों में एक जहां से सबसे ज्यादा प्रवासी प्रदेश आ रहे हैं या फिर प्रदेश से गुजर रहे हैं। ललितपुर की झांसी के अलावा बाकी सीमाएं मध्य प्रदेश से लगी हैं, मध्य प्रदेश निवाड़ी, टीकमगढ़, सागर, अशोक नगर, गुना, शिवपुरी और छतरपुर जिलों की सीमाएं ललितपुर से जुड़ी हैं। इन जिलों में मुख्य मार्गों के अतिरिक्त हजारों प्रवासी खेतों और दूसरे रास्तों से भी ललितपुर पहुंच रहे हैं, जिन्हें संभालना जिला प्रशासन के लिए मुश्किल भरा काम है।

ललितपुर के जिलाधिकारी योगेश कुमार शुक्ला गांव कनेक्शन को बताते हैं, "हमारा जिला चारों तरफ से मध्य प्रदेश से घिरा है। दक्षिण भारत और मध्य भारत से रोजाना करीब 5 हजार प्रवासी पहुंच रहे हैं। अब तक एक लाख से ज्यादा प्रवासियों को ललितपुर से गुजारा जा चुका है। करीब 50 हजार प्रवासी सिर्फ ललितपुर आए, जो यहीं के निवासी हैं। हम लोग इनकी जांच और सबके रुकने खाने, उनके घरों तक पहुंचान का इंतजाम कर रहे हैं। ये आसान काम नहीं है, लेकिन हमारी कोशिश है कि अपने जो प्रवासी आएं हैं वो सुरिक्षत अपने घरों को पहुंचे और हमारा जिला भी सुरक्षित रह जाए।" डीएम ललितपुर ने ये भी बताया कि अब दूसरे राज्यों के लोगों को ट्रेनों से ही भेजा जाएगा। सरकार ने ललितपुर और झांसी जिलों से ट्रेनों का पर्याप्त इंतजाम किया है।

फिलहाल ललितपुर में कोरोना का कोई केस नहीं है। अप्रैल ललितपुर जिला अस्पताल में तैनात एक वार्ड ब्वॉय की मौत हो गई थी, जिसका रिपोर्ट उसकी मौत के बाद आई थी जो पॉटिजिव थी, वो दूसरी बीमारियों से भी पीड़ित था, उससे जुड़े आसपास के लोगों की जांच की गई थी निगेटिव आई थी। लेकिन अब जिस संख्या में प्रवासी जिले को लौटे हैं, प्रशासन भी चितिंत है। ललितपुर आने वाले ज्यादातर लोग इंदौर, अहमदाहबाद, सूरत, मुंबई जैसे शहरों से हैं जहां पर कोरोना के केस सबसे ज्यादा है। ऐसे में प्रशासन के साथ जागरुक ग्रामीण भी आशंका में हैं।

इसी बीच पीछे से आवाज आती है, ये मीडिया वाले इधर भी आकर देख लो. ये गाय मरी पड़ी है कोई उठाने वाला नहीं, कोरोना से मरे न मरे लेकिन गाय से बीमारी फैली जो जरुर मर जाएंगे। महाराष्ट्र के वासिम से आए शाहिद कहते हैं..


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