घर मिला तो वापस आने लगी गौरैया

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नेहा श्रीवास्तव/मोना सिंह

दिल्ली। “पहला घोसला जब मैंने लगाया तो हर दिन वहां बैठकर देखता था कि चिड़िया आती है कि नहीं, चिड़िया आयी और रहने लगी, अच्छा लगा कि चिड़िया को घर पसंद आ गया, “अब हजारों घोसले बना चुके राजीव खत्री कहते हैं।

बचपन में आंगन चिड़ियों की चहचाहट से भरा रहता था अब आंगन ही नहीं बचे न चिड़ियों का चहकना हमने अपने घरों को इतना संकुचित कर लिया की चिड़ियों ने भी पंख फैलाना छोड़ दिया, लेकिन राकेश खत्री ने चिड़ियों को वापस लाने के लिए जगह जगह घोसले बनाने शुरू किराए।


पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके के रहने वाले राकेश खत्री एक मल्टीमीडिया कंपनी की नौकरी छोड़ चिड़ियों के घोसले बनाते हैं उनका उद्देश्य चिड़ियों को वापस लाना है।

राकेश खत्री घोसला बनाने की शुरूआत को लेकर बताते हैं, “चिड़िया को वापस लाने की मुहिम की शुरुआत नब्बे के आखिरी दशक में हुई थी यानि 2001 के करीब तब लोग हरा नारियल खूब पीते थे और सड़क के किनारे फेंक देते थे मैंने सोचा की इसका कुछ यूज़ भी किया जाए तो उसके अंदर का हिस्सा खाली करके मैंने घोसला बनाना शुरू किया लेकिन वो जल्दी ही सूख जाता था फिर बेंत की डंडियों से घोसला बनाना शुरू किया।”

राकेश खत्री अभी तक 32000 घोसले बना चुके हैं उनका उद्देश्य एक लाख घोसला बनाने का है। राकेश खत्री ने अभी तक 17 राज्यों के 24 शहरों के एक लाख बच्चों को घोसला बनाना सीखा चुके हैं।


राकेश खत्री आगे बताते हैं, “तीलियों से घोंसला बनाने का उपाय सूझा जो एक घोंसले से शुरू हुआ सफर अब 34000 हजार से ज्याद घोसले पर पहुंच चुका है और लकड़ी वाले भी 40000 से ज्यादा की तादाद मैं बन चुके हैं।”

गैर सरकारी संस्था इको रूट्स फाउंडेशन पिछले 18 साल से दिल्ली में काम कर रही है अब डिपार्टमेंट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने भी इस मुहिम में साथ दिया है। राकेश खत्री ‘नीर नारी और विज्ञान’ नाम से भी जागरूकता अभियान चलाते हैं।

ब्रिटेन, इटली, फ्रांस, जर्मनी जैसे देशों में इनकी संख्या जहां तेज़ी से गिर रही है वहीं नीदरलैंड में तो इन्हें ‘रेड लिस्ट’ के वर्ग में रखा गया है। गौरेया को बचाने की कवायद में दिल्ली सरकार ने गौरेया को राजपक्षी भी घोषित कर दिया है।


राकेश खत्री अपनी सफलता को लेकर बताते हैं “मुझे डीएनडी फ्लाईओवर पर घोसला लगाने में दिक्कत हुई लेकिन जब चिड़िया सौ पचास की तादात में आने लगी तब लगा मैं कुछ हद तक सफल हो गया अब जगह जगह से फोन आते हैं की चिड़िया वापिस आ रही है तो बहुत ख़ुशी होती है।”

उनकी एनजीओ इको रूट्स फाउंडेशन को अपने बेहतर काम के लिए 2014 में इंटरनेशनल ग्रीन ऐपल के अवॉर्ड से नवाज़ा जा चुका है वहीँ 2017 में लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स से भी नवाज़े जा चुके हैं अर्थ डे नेटवर्क ने भी इसे एक पॉजिटिव शुरुआत के तौर पर दर्ज़ किया है। 

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