छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश)। महिलाएं घर के आसपास पड़ी जमीन में देसी तरीकों से खेती कर परिवार के लिए अच्छी सब्जियां उगा रही हैं तो ये उनके लिए कमाई का जरिया भी बन गया है।
हम बाजार में जाते थे तो हमें ऐसी सब्जियां मिलती हैं, जिसमें रसायन डाला जाता है, फिर हमने सोचा क्यों न हम अपनी बाड़ी में ही जैविक सब्जियों की खेती करें, “लक्ष्मी घागरे कहती हैं।
लक्ष्मी घाघरे मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के झामटा गाँव की रहने वाली हैं। वो और उनके समूह की महिलाएं अब जैविक का महत्व समझ चुकी हैं, तभी तो ये महिलाएं अपनी बाड़ी में जैविक सब्जियां और फल उगा रही हैं। खुद लक्ष्मी ने एक कदम बढ़ाया और देखते ही देखते उसके साथ गाँव की अन्य महिलाओं ने भी जैविक खेती शुरु की। अब यह इलाके में अभियान बन गया है।
गाँव की 80 महिलाएं इससे जुड़ चुकी है। महिलाएं घर में ही पोषण वाटिका लगाकर अपने घर के लोगों को स्वस्थ रखने के लिए जैविक सब्जी खिला रही हैं। सरिता सूर्यवंशी बताती हैं, “हमने घर में पोषण वाटिका लगाई है, जिससे हमें आमदनी भी हो जाती है, साथ ही एक हफ्ते में तीन से चार सौ रुपए घर में सब्जियों में खर्च हो जाते थे, वो भी बचत हो जाती है। हम जैविक तरीके से ही खेती करते हैं, जिससे कोई बीमारियां भी नहीं होती हैं।”
आज पूरे गांव में करीब 80 महिलाओं के घरों में पोषण वाटिका है। इससे महिलाओं को आय भी होती है और लोगों का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है। इन महिलाओं का समूह दूध, सब्जी और अनाज ही नहीं बनाता बल्कि जैविक खाद से लेकर जैविक कीटनाशक भी बनाकर बाज़ार में बेचता हैं।
पोषण वाटिका लगाकर लोगों को जैविक खेती के फायदे और स्वयं सहायता समूह से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की इनकी मुहिम की अधिकारी भी तारीफ कर रहे हैं।
लक्ष्मी घाघरे बताती हैं, “इसमें बहुत कम लागत आती है, हम तीन साल से सब्जियों की खेती करते आ रहे हैं, मैंने शुरू में दस दीदी लोगों को जोड़कर इसकी शुरूआत की थी। हम लोग घर पर ही नीम की पत्तियों और गोमूत्र से दवाइयां और कीटनाशक बनाते हैं उसके खर्चे भी बच जाते हैं। हम ये दूसरों को भी बेचते हैं, जिससे और आमदनी हो जाती है।”