जैविक मुर्गी पालन की इस तकनीक से किसान बढ़ा सकते हैं आमदनी

मुर्गी पालक जैविक तरीके से पोल्ट्री फार्म शुरू कर सकते हैं, इसमें मुर्गियों को पूरी तरह से जैविक आहार दिया जाता है। जैविक अंडे और चिकन को दूसरों के मुकाबले बाजार में ज्यादा बढ़िया दाम भी मिलता है।

Divendra SinghDivendra Singh   24 Nov 2020 6:38 AM GMT

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पिछले कुछ सालों में भारत ही नहीं दुनिया भर में जैविक खेती का दायरा बढ़ा है, खेती के साथ ही जैविक दूध और पोल्ट्री का बाजार भी बढ़ा है। प्राकृतिक तरीके से कैसे मुर्गी पालन करके अंडा उत्पादन और चिकन से किसान अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं? बता रहे हैं केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक।

केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर, बरेली के पूर्व निदेशक डॉ. वीके सक्सेना बताते हैं, "प्राकृतिक या जैविक तरीके से मुर्गी पालन करने से किसान ज्यादा दाम मिलता है, क्योंकि अब लोग जैविक की ज्यादा मांग करते हैं। इसके लिए मुर्गे-मुर्गियों को प्राकृतिक अवस्था में रखें और उन्हें वही दाना चारा खिलाएं जो बिना किसी पेस्टीसाइड या केमिकल्स के बिना प्राकृतिक तरीके से उगाया गया हो।"


वो आगे कहते हैं, "ऑर्गेनिक को अगर आप साधारण समझें तो प्राकृतिक की बात करते हैं और इसी तरीके से मुर्गी पालन को बढ़ावा देना चाहिए। क्योंकि आज कल मुर्गियों की ग्रोथ बढ़ाने के लिए कई तरह के केमिकल्स या एंटी बॉयोटिक्स वगैरह खिलाया जाता है, ये सब बिल्कुल भी नहीं देना चाहिए। मुर्गे-मुर्गियों को बरसीम, मोरिंगा (सहजन), गेंदा जैसे पौधे खिलाएं, इसी तरह जो अनाज खिलाते हैं वो भी प्राकृतिक तरीके से उगा हो।"

लॉकडाउन में जब ब्रॉयलर और लेयर मुर्गी पालने वाले किसानों को नुकसान हुआ था, उस दौरान देसी तरीके से मुर्गी पालन वाले किसानों को काफी फायदा हुआ था। मुर्गी पालन में दूसरी खेती के मुकाबले लागत भी कम लगती है। अगर चाहें तो बड़े स्तर पर पालन कर सकते हैं या फिर बैकयार्ड में 50 से 200 मुर्गियों से शुरूआत कर सकते हैं। मुर्गी की यही खास बात है इसे कम लागत में शुरू किया जा सकता है।


प्राकृतिक मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान और भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने 'गिरीग्राम तकनीक पार्क' मॉडल तैयार किया है। इसमें मुर्गियों के खाने में बरसीम, केंचुआ और मोरिंगा दिया जाता है। इस मॉडल के बारे में केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. वीके सक्सेना बताते हैं, "मुर्गी पालन देश में दो तरीके से हो रहा है, एक तो बैकायार्ड में और दूसरा व्यवसायिक तरीके से। एक बार फिर से बैकयार्ड पोल्ट्री फार्मिंग को बढ़ावा मिल रहा है, इस समय देश में तीस प्रतिशत बैकयार्ड मुर्गी पालन हो रहा है। इसमें कई तरीके के मॉडल बनाने की कोशिश की गई, बैकयार्ड मुर्गी पालन करने वालों को कम से कम लागत में पोल्ट्री के लिए घर तैयार कर सकें। आसानी से मिलने वाले सामान जैसे, बांस और पराली से घर बनाएं जा सकें। केंद्रीय मंत्री गिरीराज सिंह का भी यही मानना था कि इस तरह का कोई सिस्टम विकसित किया जाए। बस उन्हीं के प्रेरणा से हमने इस मॉडल की शुरूआत की है।"

केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान, लखनऊ ने एक नया प्रयोग भी किया है। लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र में किसानों को मुर्गी पालन करवाया जा रहा है। इसमें किसान आम के बाग में मुर्गी की देसी किस्मों का पालन करते हैं, इससे फायदा होता है कि आम के बाग में लगने वाले कई कीटों को मुर्गियां खा जाती है। इससे आम के पेड़ भी कीटों से सुरक्षित रहते हैं और मुर्गियों को आहार भी मिल जाता है। इसी तरह किसान दूसरे पशुओं के साथ भी मुर्गियों को पाल सकते हैं, इससे पशुओं में लगने वाले किलनी जैसे कीट को मुर्गियां खा लेती हैं।

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