मिलिए नीलम से, बंदिशों को तोड़ नेशनल खिलाड़ी बनी पारधी समुदाय की पहली लड़की

परंपरागत रूप से जंगल में शिकार करके अपनी आजीविका चलाने वाले पारधी समुदाय की कोई लड़की पढ़ाई के साथ खिलाड़ी के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाएगी, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। लेकिन 20 वर्षीय नीलम पारधी ने यह कर दिखाया है। अब यह जंगली लड़की युवाओं की रोल मॉडल बन चुकी है।

Arun SinghArun Singh   17 May 2022 2:08 PM GMT

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पन्ना (मध्य प्रदेश)

"समाज में सुधार आवे, सबसे बड़ा सपना सर यही है..."

अपने सामुदायिक छात्रावास के खेल के मैदान में खड़ी 20 साल की नीलम पारधी की आवाज़ में आत्मविश्वास था, जब उनसे उनकी जिंदगी आकांक्षाओं के बारे में पूछा गया। नीलम ने गाँव कनेक्शन से कहा, "हमारे समाज में ये होता है की पांच साल तक की उमर में लड़कियों की शादी कर देते हैं... हम चाहते हैं कि उन बच्चों का जल्दी विवाह न हो, वो पढें..."।

मध्य प्रदेश के पन्ना जिले के एक दूरदराज के कोने से राष्ट्रीय स्तर की कबड्डी खिलाड़ी, 20 वर्षीय एथलीट के समुदाय से पहली बार कोई बाहर निकला है। पढ़ाई के साथ खेलकूद में रुचि लेने वाली नीलम ने 78 फ़ीसदी अंकों के साथ 12वीं की परीक्षा पास की है। तब इसे स्पोर्ट्स एकेडमी भोपाल में प्रशिक्षण का मौका भी मिला था।

20 वर्षीय नीलम पारधी ने यह कर दिखाया है। अब यह जंगली लड़की युवाओं की रोल मॉडल बन चुकी है।

पारधी का बहेलिया समाज अभी भी जंगलों पर आश्रित हैं, जिन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा 1871 में एक आपराधिक जनजाति के रूप में 'अधिसूचित' किया गया था। जातिवादी कानून जिसे अंग्रेजों ने आपराधिक जनजाति अधिनियम के रूप में नामित किया - एक विशिष्ट जनजाति या समुदाय में उनके जन्म के आधार पर भारतीय लोगों को पीढ़ीगत अपराधियों के रूप में ब्रांड करने के उद्देश्य से एक कानून।

अंग्रेजों से आजादी मिलने के बाद केंद्र सरकार ने औपनिवेशिक अधिसूचना से 126 अन्य समुदायों के साथ पारधी समुदाय को 'निरस्त' कर दिया और ब्रिटिश अधिनियम को आदतन अपराधी अधिनियम, 1952 नाम के एक अन्य कानून के साथ बदल दिया, जिसने हालांकि जनजातियों को गैर-अपराधी बना दिया लेकिन फिर भी उन्हें वर्गीकृत किया।

पारधी समुदाय के मध्य भारत के जंगलों में शिकार के पारंपरिक व्यवसाय ने संरक्षण प्रयासों के लिए एक गंभीर चुनौती पेश की जिसके कारण 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर का निर्माण हुआ।

पारधी समुदाय की युवा पीढ़ियों को शिक्षित करने और अन्य व्यवसायों के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने के लिए उनके कौशल विकास को सुनिश्चित करने के लिए सरकार की पहल का पालन किया गया।

पारधी आवासीय विद्यालय राज्य सरकार द्वारा स्थापित एक ऐसा ही स्कूल था। स्कूल सह छात्रावास की सुविधा नीलम के लिए का बाहरी दुनिया के साथ घुलने मिलने का पहला मौका था, यह छात्रावास जिला मुख्यालय के पास कुंजवन में है, जबकि नीलम का गाँव खमतरा जिला मुख्यालय से लगभग 80 किमी दूर है।


"मैंने यहां बहुत कुछ सीखा है। मैं आठ साल की उम्र से यहां पढ़ रही हूं। मैंने लिखना, पढ़ना, गणित, विज्ञान और खेल सीखा। मुझे लगता है कि मेरे गाँव के हर बच्चे को ये मौका मिलना चाहिए, "नीलम ने गाँव कनेक्शन से बताया।

मुंबई स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन लास्ट वाइल्डरनेस फाउंडेशन लगभग एक दशक से पारधी समुदाय के बच्चों के लिए कौशल-विकास कार्यक्रम आयोजित कर रहा है। इसके एक सदस्य विद्या वेंकटेश ने गाँव कनेक्शन को बताया कि नीलम अपने पूरे समुदाय के लिए एक प्रेरणा रही हैं।

"मैं नीलम पारधी को पिछले दस वर्षों से जानती हूं। हमने उनकी नौवीं से बारहवीं कक्षा तक की पढ़ाई के लिए मदद की। वह समुदाय की इकलौती लड़की हैं, जिन्होंने खेलों में बढ़िया प्रदर्शन किया है। उन्होंने भोपाल स्पोर्ट्स अकादमी में ट्रेनिंग ली है, पहले उनके माता-पिता ने नीलम को पन्ना से उसे दूर भेजने से इनकार कर दिया।" गैर-लाभकारी संस्था के संस्थापक विद्या वेंकटेश ने गाँव कनेक्शन को बताया।

नीलम के पिता राकेटलाल पारधी (57 वर्ष) एक समय जाने-माने शिकारी रहे हैं। पन्ना सहित आसपास के जंगलों में वन्य प्राणियों का शिकार करना इनका पेशा था। लेकिन पिछले करीब 10 वर्षो से इन्होंने शिकार करना बंद कर जड़ी-बूटी बेचने का काम कर रहे हैं। नीलम की मां अजमेर बाई (52 वर्ष) गांव-गांव जाकर महिलाओं के श्रृंगार का सामान चूड़ी-बिंदी आदि बेचती हैं।

राकेटलाल पारधी अपनी बेटी के बारें में गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "बेटी से बड़ी उम्मीद है कि वह हमारे कुल का नाम रोशन करेगी। हमारा पूरा जीवन जंगल में यहां से वहां भटकते गुजरा है, बड़ी कठिन जिंदगी रही है। अब हमने जंगली जानवरों का शिकार करना छोड़ जड़ी-बूटी बेचकर गुजारा कर रहे हैं।"

"मेरी एक ही इच्छा है कि बेटी को अच्छी नौकरी मिल जाए और किसी पढ़े-लिखे लड़के से शादी हो जाए। हमने जिंदगी में जो परेशानी झेली है उससे नीलम दूर रहे और खुशहाल जिंदगी जिए, "नीलम के पिता ने कहा।

अपने परिवार के साथ नीलम

परिवार में 6 भाई व पांच बहनों में नीलम इकलौती सदस्य है, जो पढ़ पायीं हैं। बहनों में यह सबसे छोटी हैं, बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है और उनके बच्चे हैं। नीलम के भाई भी पढ़े-लिखे नहीं हैं, वे जंगल की जड़ी बूटियां बेचने का काम करते हैं।

नीलम की मां अजमेर बाई ने गाँव कनेक्शन को बताया कि यह सुनकर बहुत खुशी होती है कि मेरी बेटी अच्छी तरह पढ़ रही है। हमारे पास आमदनी का जरिया कुछ भी नहीं है, बहुत मुश्किल से खाने पीने की व्यवस्था हो पाती है। सरकार और आप सब लोगों की मदद से लड़की की नौकरी लग जाए, बस यही इच्छा है।

खेल के प्रति है गजब का जुनून

नेहरू एवं युवक कल्याण विभाग से नीलम सहित अन्य खिलाडी बच्चों को विविध खेल गतिविधियों की नियमित कोचिंग दी जा रही है। नीलम पारधी के कोच राहुल गुर्जर ने गाँव कनेक्शन को बताया कि नीलम में खेलों के प्रति गजब का जुनून और जज्बा है।

राहुल गुर्जर ने आगे बताया, "कबड्डी के अलावा यह सौ व दो सौ मीटर की दौड़ बहुत अच्छा कर रही हैं। फुटबाल, थ्रो व जम्प में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन करती हैं। नीलम कबड्डी नेशनल खेल चुकी है, जबकि ऐथलेटिक्स में स्टेट तक खेली हैं।"

लेकिन एक खिलाड़ी को जो पोषण मिलना चाहिए वो नीलम को नहीं मिल पा रहा है। गुर्जर बताते हैं, "खिलाडी को जिस तरह की डाइट मिलनी चाहिए वैसी डाइट नीलम को नहीं मिल पाती, नार्मल खाना से एक खिलाडी की रिक्वायरमेंट पूरी नहीं होती। यदि इस लड़की की मंथली डाइट की समुचित व्यवस्था हो जाय तो यह काफी आगे जा सकती हैं।"


पारधी समुदाय में बह रही बदलाव की बयार

पारधी समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने और उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का काम शुरू हुआ। ताकि पारधी समुदाय के लोग शिकार करना छोड़ कर आजीविका के लिए दूसरे कार्यों व गतिविधि से जुड़ने को प्रेरित हों।

लास्ट वाइल्डर्नेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला ने गांव कनेक्शन को बताया कि वर्ष 2007 में पन्ना टाइगर रिजर्व ने सर्व शिक्षा अभियान के सहयोग से पारधी समुदाय के बच्चों को शिक्षित करने के लिए ब्रिज कोर्स शुरू किया।

बुंदेला बताते हैं, "LWF संस्था ने पारधी बच्चों में कौशल उन्नयन के लिए सतत प्रयास किया। इसका परिणाम यह हुआ कि पारधी समुदाय के बच्चे पढ़ने लिखने लगे और विविध गतिविधियों में शामिल होकर समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाने लगे।"

उन्होंने आगे बताया, "पन्ना में पारधी समुदाय के बच्चे भारत के पहले नेचर गाइड बने हैं, जिन्हें शासन से भी मान्यता मिली है। बेंगलुरु की संस्था नेचुरलिस्ट स्कूल ने इन्हें गाइड का प्रशिक्षण कोर्स कराया है। मौजूदा समय 10 प्रशिक्षित पारधी गाइड हैं, जो "वॉक विद दि पारधीज" गतिविधि संचालित कर रहे हैं।"

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