गुजरात के इस गाँव में ग्रामीणों ने श्रमदान और चंदा इकट्ठा कर बना दिया पुल
Ankit Chauhan | Dec 26, 2019, 12:49 IST
अरवल्ली (गुजरात)। कई साल तक सरकारी दफ्तरों का चक्कर लगाने के बाद भी जब गाँव में पुल नहीं बन पाया तो ग्रामीणों ने चंदा इकट्ठा कर अपनी मेहनत से दस दिनों में पुल बना लिया।
गुजरात के अरवल्ली जिले के धनसुरा तहसील के छोटे सा गाँव खडोल चर्चा में आ गया है। खडोल गाँव के लोग पिछले तीस वर्षों से पुल बनाने की मांग कर रहे थे। जिससे आसपास की कई गांव के लोग यहां से आसानी से जा सके। यहां पर ब्रिज बनाने के लिए गांव वाले तीस साल से प्रशासन और सरकार में अपनी बात रख चुके थे। जब इनकी बात किसी ने नहीं सुनी तो गांव वालों ने एक फैसला लिया, और अपने दम पर एक छोटा सी मिट्टी की पुलिया बनाने का काम शुरू कर दिया।
गांव वालों ने अपने बलबुते पर लोगो से पैसे इकठ्ठे किया ओर काम शुरू कर दिया। जिसमें लोगों का बहुत सहयोग मिला, जिसके चलते यह काम आसान हुआ। लेकिन यह रास्ता सिर्फ आठ महीने ही चलेगा, जब बारिश का समय आता है तो यह कच्चा पुल बह जाएगा। उन्हें फिर से बनाना पड़ेगा। गाँव वालों इससे कोई मतलब नहीं है की बारिश के समय यह ब्रिज टूट जाये, इन्हें इस बात की ख़ुशी है कि, लोगों को आठ महीने यहां से आने-जाने में काफी सहूलियत होगी।
गाँव के अजय बताते हैं, "सभी गाँव वालों ने फैसला लिया कि हम सब को मिलकर काम करना होगा, इसमें दो लाख रुपए भी खर्च हुए और दस दिनों में पुल तैयार हो गया। हमने इस पुल के बारे में सारे अधिकारियों और शासन-प्रशासन से भी कहा, लेकिन किसी ने सुना नहीं। लेकिन हमने मिलकर पुल बना दिया है।"
गुजरात के अरवल्ली जिले के धनसुरा तहसील के छोटे सा गाँव खडोल चर्चा में आ गया है। खडोल गाँव के लोग पिछले तीस वर्षों से पुल बनाने की मांग कर रहे थे। जिससे आसपास की कई गांव के लोग यहां से आसानी से जा सके। यहां पर ब्रिज बनाने के लिए गांव वाले तीस साल से प्रशासन और सरकार में अपनी बात रख चुके थे। जब इनकी बात किसी ने नहीं सुनी तो गांव वालों ने एक फैसला लिया, और अपने दम पर एक छोटा सी मिट्टी की पुलिया बनाने का काम शुरू कर दिया।
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खडोल गाँव के सरपंच भलाभाई भरवाद कहते हैं, "पुल की जरूरत तो पिछले कई सालों से है, जब सरकारी मदद नहीं मिली तो हमने एक दूसरे से बात की। किसी ने सौ रुपए दिए तो किसी ने दो सौ रुपए, किसी ने ट्रैक्टर दिया, ऐसे गाँव वालों ने मिलकर ये पुल बना दिया। पुल न बनने से लोगों को 25 किमी. घूमकर जाना पड़ता था। जबकि ये रास्ता सिर्फ सात किमी का है। तहसील के जाने के लिए भी ये आसान रास्ता है।
गाँव के अजय बताते हैं, "सभी गाँव वालों ने फैसला लिया कि हम सब को मिलकर काम करना होगा, इसमें दो लाख रुपए भी खर्च हुए और दस दिनों में पुल तैयार हो गया। हमने इस पुल के बारे में सारे अधिकारियों और शासन-प्रशासन से भी कहा, लेकिन किसी ने सुना नहीं। लेकिन हमने मिलकर पुल बना दिया है।"