Lockdown: मिट्टी के बर्तन बनाने वालों की बढ़ीं मुश्किलें, नहीं बिक रहे घड़े और सुराही

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मोहित शुक्ला/वीरेंद्र सिंह

सीतापुर/बाराबंकी। साल भर मिट्टी के बर्तन बनाने वालों को गर्मी का इंतजार रहता है, जब घड़े और सुराही बेचकर उनकी अच्छी कमाई हो जाती है। लेकिन इस बार लॉकडाउन ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में महोली से बड़ा गाँव रोड पर छप्पर के नीचे मिट्टी के बर्तनों की दुकान लगाए जगदीश प्रजापति दिन भर ग्राहकों का इंतजार करते हैं, लेकिन कोई नहीं आता। जगदीश प्रजापति कहते हैं, "हमारे पास खेती तो है नहीं है, ऐसे में मिट्टी के बर्तन बनाने का करते हैं, जिसके सहारे परिवार चलता है। ऐसा पहली बार हुआ है। जब पहले सहालग में काम बंद हो गया, चाय वाले कुल्हड़ और अब घड़े भी नहीं बिक रहे हैं। सरकार राशन तो दे रही है, लेकिन और भी खर्चे हैं, छह बच्चे हैं घर का खर्च कैसे चलेगा।"


अप्रैल से शुरू होने वाली गर्मी से यह सीजन मिट्टी के बर्तन बनाने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। साल भर लोग इस सीजन का इंतजार करते हैं और फरवरी-मार्च से ही तैयारी शुरू कर देते हैं। अप्रैल से बाजारों में निकलने लगते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इनके घड़े बन कर तैयार हैं, लेकिन खरीददारी शुरू नहीं हो पाई है।


बाराबंकी के जैदपुर के रहने वाली कैसर जहां कहती हैं, "जब रोजी ही नहीं चलेगी तो घर कैसे चलेगा, छोटे-छोटे बच्चे हैं। इस बार तो हमें राशन भी नहीं मिला। कोटेदार ने मशीन खराब बता दी कि मशीन खराब है। अगर हमें राशन ही नहीं मिलेगा तो क्या खाएंगे। "


बहुत से ऐसे भी लोग हैं, जो साल पर कुल्हड़ बनाते हैं और उन्हें होटलों और चाय की दुकानों पर देते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से सभी दुकानें भी बंद हो गईं हैं। मोहम्मद हरून कुल्हड़ बनाते हैं और चाय की दुकानों पर बेचते हैं, लेकिन दुकानों के बंद होने से अब घर चलाना मुश्किल हो गया है। वो कहते हैं, "हमारा तो कुल्हड़ बनाने का ही धंधा है, जब होटल ही बंद हो गए तो कहां बेचेंगे। हम गरीब लोग हैं, छोटे-छोटे बच्चे हैं, इनको कहां से और क्या खिलाएंगे।

     

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