राजेन्द्र नगर (हैदराबाद)। एक समय था जब दक्षिण भारत और उत्तर भारत के कई राज्यों में मोटे अनाज की खेती होती थी, लेकिन कम उत्पादन, मार्केट की समस्या से किसानों ने मोटे अनाज की खेती से मुंह मोड़ लिया। लेकिन एक बार फिर किसान इसकी खेती की तरफ लौट रहे हैं।
भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक किसानों को सावां, कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाज से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दे रहे हैं। तेलांगना राज्य के हैदराबाद (राजेंद्रनगर) स्थित भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. संगप्पा बताते हैं, “हम किसानों को एक बार फिर ज्वार, बाजरा, रागी जैसे मोटे अनाजों की खेती की तरफ ले जा रहे हैं। इनसे चावल, गेहूं से बहुत पोषण मिलता है। जैसे कि आज महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं, साथ ही लोग डायबिटीज, मोटापा जैसी लाइफ स्टाइल वाली बीमारियों से भी पीड़ित हैं, ऐसे में मोटे अनाज से इन्हें कम किया जा सकता है।”
केंद्र सरकार भी पिछले दो सालों से इस पर खासा ध्यान दे रही है। इसी कड़ी में वर्ष 2018 में मोटे अनाजों (ज्वार, बाजरा, रागी, लघु धान्य अर्थात कुटकी, कोदो, सांवा, कांगनी और चीना) का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया गया। यही नहीं वर्ष 2018 को पूर्व केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष के रूप में मनाया था।
डॉ. संगप्पा आगे कहते हैं, “बड़े-बड़े शॉपिग्स मॉल में अब मोटे अनाज से बने प्रोडक्ट बिकने लगे हैं। हमारे यहां सावां, कोदो, कुटकी, ज्वार, बाजरा जैसे मोटे अनाजों की हार्वेस्टिंग के बाद इन अनाजों की प्रोसेसिंग का भी प्रशिक्षण भी दिया जाता है, जिससे किसान उसका वैल्यू एडिशन भी कर सकते हैं। इसके लिए हमने बहुत से प्रोडक्ट बनाए हैं। अभी तक गेहूं के आटे से बना पास्ता ही मार्केट में मिलता था, अब हमने बाजरे का पास्ता बनाया है। हमारे यहां मोटे अनाज से 60 से ज्यादा प्रोडक्ट बनाए गए हैं। हम इसकी पूरी ट्रेनिंग भी किसानों को भी देते हैं।”
तेलंगाना में दो जुलाई, 2018 को पांच साल के लिए मोटे अनाज की खेती के लिए एक मिशन भी शुरू किया गया है। इसमें यहां के छह जिलों के 36 मंडल शामिल हैं। परियोजना में मोटे अनाज के बुवाई से लेकर प्रोसेसिंग उसके बाद मार्केटिंग तक की पूरी मदद की जा रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी 02 जनवरी को कर्नाटक में आयोजित कृषि कर्मण पुरस्कार वितरण के लिए आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि साथियों, बागवानी के अलावा दाल, तेल और मोटे अनाज के उत्पादन में भी दक्षिण भारत का हिस्सा अधिक है। भारत में दाल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए बीज हब बनाए गए हैं, जिनमें से 30 से अधिक सेंटर कर्नाटका, आंध्रा, केरल, तमिलनाडु और तेलंगाना में ही हैं। इसी तरह मोटे अनाज के लिए भी देश में नए हब बनाए गए हैं, जिसमें से 10 साउथ इंडिया में ही हैं।”
जर्नल साइंस एडवांसेस की रिपोर्ट के अनुसार भारत में उपलब्ध भू-जल के कुल इस्तेमाल का 80 फीसदी खेती में उपयोग हो रहा है। मोटे अनाज की खेती से भारी मात्रा में पानी बचाया जा सकता है।
रागी में चावल के मुकाबले 30 गुणा ज्यादा कैल्शियम होता है और बाकी अनाज की किस्मों में कम से कम दोगुना कैल्शियम रहता है। काकुन और कुटकी (कोदो) जैसी उपज में आयरन की मात्रा बहुत होती है। इन अनाजों की पौष्टिकता को देखते हुए इन अनाजों को मोटे अनाज की जगह पोषक अनाज के नाम से संबोधित करना ज्यादा उचित रहेगा।
“उत्तर भारत में खासकर उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश में किसान बड़ी मात्रा में मोटे अनाज की खेती करते हैं, क्योंकि इसमें पानी की कम जरूरत पड़ती है। लेकिन इसमें सबसे बड़ी समस्या मार्केटिंग की आती है, इसलिए किसान इसमें वैल्यू एडिशन करके इसे मार्केट में आसानी से बेच सकते हैं। आज जो मोटे अनाज हैं जैसे रागी, सावां, कोदो, इनको खाने से हमें पोषण मिलता है, “डॉ. संगप्पा ने आगे बताया।
मोटे अनाज की प्रोसेसिंग की ट्रेनिंग के लिए यहां करें सपंर्क
डॉ. विलास ए टोनापी
भारतीय कदन्न अनुसंधान संस्थान
राजेंद्र नगर, हैदाराबाद, तेलंगाना
ईमेल : millets.icar@nic.in, director.millets@icar.gov.in
फोन : +91 – 040 – 2459 9301
डॉ. रवि कुमार
फोन: 040-24599379