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कॉरपोरेट सेक्टर की नौकरी छोड़ कर रहे कॉफी की खेती, अब लाखों में है कमाई

थिमइयाह पूरी तरह से जैविक तरीके कॉफी की खेती करते हैं, जिससे उनकी कॉफी कई बड़ी कंपनियां खरीदती हैं।
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कोडगू (कर्नाटक)। कभी सोचा है अगर आप कॉरपोरेट सेक्टर में 14 साल की आरामदायक नौकरी को छोड़कर खेती करने का फैसला लेते हैं तो लोग आपको क्या कहेंगे? यही न कि पागल हो गए हो क्या या ये कि दिमाग फिर गया है। कर्नाटक के रहने वाले मैडिएरा थिमइयाह ने 9 साल पहले ऐसा ही एक फैसला लिया और आज वे लोगों को रोजगार देने के साथ ही लाखों रुपये कमा भी रहे हैं।

दक्षिण भारत में कॉफी पीने का चलन आम है और दिन-ब-दिन इसकी खपत भी बढ़ रही है। यही वजह है कि बेहतर भविष्य के लिए अब अच्छी जॉब छोड़ कर युवा कॉफी की खेती करने की ओर आगे बढ़ रहे हैं। मैडिएरा थिमइयाह इनमें से एक हैं और कुर्ग जिले से 15 किलोमीटर दूर मडिकेरी तहसील के रहने वाले हैं। वे मल्टीनेशनल कंपनी में अच्छी जॉब करते थे, लेकिन अब नौकरी छोड़कर कॉफी की खेती मे अपना भविष्य संवार रहे हैं।

कॉरपोरेट कल्चर से परेशान होकर छोड़ी नौकरी

खेती की शुरूआत के बारे में मैडिएरा गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “मैं बैंकिंग और बीमा के क्षेत्र में अच्छी जॉब कर रहा था, लेकिन कॉरपोरेट कल्चर से परेशान मैंने जॉब छोड़ दी और खेती करने की ओर रुख किया। पिछले 9 सालों में हमने कॉफी की खेती में कई नए तरह के प्रयोग किए हैं और उन प्रयोगों की वजह से हमारी कॉफी बड़ी-बड़ी कंपनियों में जा रही है। इसके साथ ही कॉफी के शौकीन भी सीधे हमसे कॉफी खरीदते हैं।”

थिमइयाह खुद तो मुनाफा कमा ही रहे हैं, साथ ही दूसरे कई लोगों को रोजगार दिया है। फोटो: वीरेंद्र सिंह

सात एकड़ से 45 हेक्टेयर तक बढ़ा रकबा

थिमइयाह के मुताबिक 9 साल पहले जब उन्होंने कॉफी की खेती शुरू की थी तो मात्र 7 एकड़ का रकबा उनके पास था। आज वे अपनी कड़ी मेहनत के साथ 45 हेक्टेयर जमीन पर खेती कर रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने लोगों को रोजगार भी दिया। शुरुआत दौर में 5-6 लेबर काम करते थे, जिनकी संख्या आज 50 के करीब है।

35 से 40 लाख होती है सालाना कमाई

शुरुआती दौर में जब हमने नौकरी छोड़ी और कॉफी की खेती में हाथ आजमाना शुरू किया तो घरवाले और दोस्त यार भी कहते थे कि क्या कर रहे हो अच्छी खासी नौकरी कर रहे थे। अब खेती-बाड़ी करोगे। लेकिन हमने हिम्मत नहीं हारी और शुरू में जो सालाना 2-3 लाख कमाते थे आज वही कमाई बढ़कर 35 से 40 लाख रुपये सालाना हो गई है।

फोटो: पिक्साबे

पौधे की सही देख-रेख देती है ज्यादा फायदा

थिमइयाह ने बताया कि कॉफी का पौधा मानसून के पहले रोपित कर दिया जाता है या फिर ठीक मानसून के बाद में पौधे की रोपाई की जाती है। एक पौधे की रोपाई के बाद करीब 2 से 3 वर्ष के अंतराल पर कॉफी का उत्पादन होने लगता है। अगर पौधे की सही से देख की जाए तो लगातार 20 वर्षों तक एक ही पौधे से कॉफी का उत्पादन किया जा सकता है।

दुनिया भर में मशहूर है यहां की कॉफी

मैडिएरा थिमइयाह बताते हैं कि पूरी दुनिया में एक ही जगह है, जहां पर शेड ग्रोन कॉफी का उत्पादन किया जाता है और वह कर्नाटक के कुर्ग और चिकमंगलूर हैं। यहां शेड ग्रोन कॉफी का उत्पादन किया जाता है, जो दुनिया में कहीं पर भी नहीं किया है। हमारे यहां की दो वैरायटी काफी मशहूर है। एक अरेबिका और दूसरी रोबस्टा। आपको अच्छी कॉफी पीने के लिए इन दोनों वैरायटी का ब्रांड एक बहुत फ्लेवर देता है। यहां की कॉफी भारत ही नहीं विदेशों तक एक्सपोर्ट की जाती है।

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